चारा घोटाले में 23 दिसंबर, 2017 को जेल जाने के बाद से राजद प्रमुख लालू प्रसाद चुप रहकर लगातार पर्दे के पीछे से ही राजनीति करते आ रहे थे। अब जमानत मिलने के बाद तमाम बंदिशों से मुक्त और मुखर होकर हस्तक्षेप करेंगे। लालू करीब साढ़े तीन साल तक रांची की जेल से रहने के बाद बाहर आएंगे। कोरोना के खतरे और खराब सेहत के कारण फील्ड में सक्रियता तो नहीं दिखेगी, लेकिन लालू की मौजूदगी मात्र से ही विपक्ष की राजनीति को नई धार जरूर मिलेगी। बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की हैसियत से तेजस्वी यादव ने अपना कद जरूर बढ़ा लिया है, लेकिन अब भी भाजपा एवं जदयू के बड़े नेताओं के मुकाबले विपक्ष की राजनीति को एक कद्दावर नेता की जरूरत महसूस की जाती है। लालू इसकी भरपाई कर सकते हैं। तीन दशक तक बिहार की राजनीति की धुरी बने लालू दिल्ली रहें या पटना-रांची या कहीं और, राजनीति उनकी रगों में है। लंबे अंतराल के बाद जेल से बाहर आकर राजनीति को पूरा समय देने का मनोवैज्ञानिक असर पडऩा लाजिमी है। विपक्षी खेमे के साथ-साथ सत्ता पक्ष भी लालू के असर से वंचित नहीं रह सकता है। विधानसभा चुनाव के नतीजे के बाद तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने के लिए सीमा से आगे जाकर लालू को अभियान चलाते हुए देखा जा चुका है। तब जेल अस्पताल में होने के कारण उन पर तमाम तरह के पहरे भी थे। फिर भी भाजपा-जदयू के शीर्ष नेताओं को लालू ने अपनी कोशिशों से कुछ समय के लिए हैरत में डाल दिया था।