उत्तर प्रदेश के जिला बागपत में एक गांव की कृषि भूमि से किसान प्रभाष शर्मा को खेती के लिए खुदाई के दौरान कुछ ऐसी चीजें मिलीं, जिससे वह प्रशासन के पास जाने को मजबूर हो गए. जब वह उन चीजों को लेकर प्रशासन के पास पहुंचे तो महसूस किया गया कि उस जगह की और खुदाई करने की जरूरत है.
इसी के बाद यमुना नदी से महज 8 किमी दूरी पर मौजूद सिनौली गांव में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की टीम की आमद शुरू हो गई. बता दें कि सिनौली गांव करीब 4,000 बीघे में फैला गांव है. इस गांव की आबादी करीब 11,000 है. इनमें सबसे बड़ी संख्या जाटों की है. ब्राह्मण यहां दूसरे नंबर पर हैं. इसके अलावा मिश्रित आबादी वाले सिनौली में दलित व मुस्लिम परिवार भी हैं.
देश भर में सिनौली गांव की चर्चा पहली बार 2005 में शुरू हुई. ग्रामीण प्रभाष शर्मा की जानकारी के बाद गांव में पहुंची एएसआई की टीम ने खुदाई में कई प्राचीन चीजें ढूंढ निकालीं. एएसआइ को यहां से 106 मानव कंकाल मिले. जब इनकी कार्बन डेटिंग की गई तो पता चला कि कंकाल 3,000 साल से भी ज्यादा पुराने थे. इसके बाद एक्सक्वेशन साइट को भरकर बंद कर दिया गया. इसके बाद 2017 में फिर खुदाई की गई. एएसआई को सबसे बड़ी सफलता 2018 में की गई तीसरे चरण की खुदाई में मिली. इसमें उन्हें एक से बढ़कर एक शानदार वस्तुएं मिलीं. एएसआई को पता चला कि सिनौली की जमीन में कई सभ्यताएं दफन हैं. इसके बाद स्थानीय लोग खुद को महाभारत काल से जोड़कर देखने लगे.
विशेषज्ञ कहते हैं कि सिनौली में मिले प्रमाण अंग्रेजों के लिखे इतिहास को बदलने के लिए पर्याप्त हैं. सिनौली की जमीन से निकले करीब 4,000 साल पुराने रथ, एंटीना तलवार और ताबूत पर एएसआई के पूर्व सुपरिंटेंडेंट आर्कियोलॉजिस्ट और इतिहासविद् कौशल किशोर शर्मा का कहना है कि सिनौली में ऐसी-ऐसी खास चीजें मिलीं, जो भारत में किसी भी उत्खनन साइट से नहीं निकलीं थीं. उनका दावा था कि सिनौली से मिले सबूत भारत में आर्यों के आक्रमण की मैक्समुलर थ्योरी को झुठलाते के लिए काफी हैं. अब ये प्रमाण लाल किला तक पहुंच गए हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि सिनौली की संस्कृति का संबंध उत्तर वैदिक काल और हड़प्पा सभ्यता के बीच की संस्कृति का लगता है.