आखिर क्यों सस्पेंड हुए संजय सिंह, विपक्षी सांसदों पर ही क्यों होती है कार्रवाई

भारत में संसद में किए गए किसी भी व्यवहार के लिए कोई सांसद किसी कोर्ट के प्रति उत्तरदायी नहीं होता है। ये ताकत उसे संविधान के आर्टिकल 105 (2) के तहत मिली हुई है। यानी संसद में कही गई किसी भी बात को कोर्ट में चैलेंज नहीं किया जा सकता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि सांसदों को संसद में कुछ भी करने की छूट मिली है।
एक सांसद जो कुछ भी कहता है वो राज्यसभा और लोकसभा की रूल बुक से कंट्रोल होता है। इस पर सिर्फ लोकसभा स्पीकर और राज्यसभा के सभापति ही कार्रवाई कर सकते हैं।
दरअसल, सोमवार को मणिपुर मुद्दे को लेकर राज्यसभा में आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह उप सभापति जगदीप धनखड़ के आसन यानी वेल के पास जाकर बहस करने लगे। उप सभापति ने उन्हें वापस जाने के लिए कहा, लेकिन वे नहीं माने। इसके बाद संजय सिंह को पूरे मानसून सत्र के लिए सस्पेंड कर दिया गया। संजय सिंह को पिछले साल भी सस्पेंड किया गया था।
भास्कर एक्सप्लेनर में जानेंगे कि संसद में विपक्षी सांसद ही क्यों सस्पेंड किए जाते हैं? उनकी किन हरकतों पर ऐसी कार्रवाई होती है? क्या सस्पेंशन के दौरान सैलरी मिलती है? सोमवार को विपक्षी सदस्यों के हंगामे के बीच सभापति जगदीप धनखड़ ने प्रश्नकाल शुरू करने की घोषणा की। हंगामे के बीच प्रश्नकाल कुछ मिनट तक चला। इसी बीच संजय सिंह वेल में आ गए और सभापति की ओर इशारा किया।
इसके बाद सभापति ने सबसे पहले उन्हें अपनी सीट पर वापस जाने के लिए कहा। जब उन्होंने ऐसा नहीं किया तो जगदीप धनखड़ ने कहा- मैं संजय सिंह का नाम लेता हूं। सत्तापक्ष उनके खिलाफ प्रस्ताव लाए।
इसके बाद पीयूष गोयल तुरंत उठे और कहा कि वह संजय सिंह को निलंबित करने के लिए एक प्रस्ताव लाना चाहते हैं। गोयल ने कहा- इस तरह का व्यवहार और सदन को बाधित करना सदन की नैतिकता और नियमों के पूरी तरह से खिलाफ है। सरकार संजय सिंह को निलंबित करने के लिए एक प्रस्ताव लाना चाहती है। इसके बाद पीयूष गोयल ने आसन से संजय सिंह के खिलाफ कार्रवाई करने का आग्रह किया।
आसन ने प्रस्ताव पेश करने की अनुमति दी। इसके बाद गोयल ने कहा- मैं प्रस्ताव पेश करता हूं कि संजय सिंह जिन्हें उप सभापति ने नामित किया है, उन्हें मानसून सत्र की शेष अवधि के आखिरी दिन तक सस्पेंड किया जा जाता है।
जिस संसद की कार्यवाही को आप टीवी में देखते हैं उसके लिए नियमों की पूरी एक किताब है। सदन को इसी रूल बुक के जरिए चलाया जाता है। इसी बुक के रूल 373 के तहत यदि लोकसभा स्पीकर को ऐसा लगता है कि कोई सांसद लगातार सदन की कार्रवाई बाधित कर रहा है तो वह उसे उस दिन के लिए सदन से बाहर कर सकता है, या बाकी बचे पूरे सेशन के लिए भी सस्पेंड कर सकते हैं।
वहीं इससे ज्यादा अड़ियल सदस्यों से निपटने के लिए स्पीकर रूल 374 और 374 ए के तहत कार्रवाई कर सकते हैं। कांग्रेस के सांसदों पर रूल 374 के तहत ही कार्रवाई की गई है।
लोकसभा स्पीकर उन सांसदों के नाम का ऐलान कर सकते हैं, जिसने आसन की मर्यादा तोड़ी हो या नियमों का उल्लंघन किया हो और जानबूझकर सदन की कार्यवाही में बाधा पहुंचाई हो।
जब स्पीकर ऐसे सांसदों के नाम का ऐलान करते हैं, तो वह सदन के पटल पर एक प्रस्ताव रखते हैं। प्रस्ताव में हंगामा करने वाले सांसद का नाम लेते हुए उसे सस्पेंड करने की बात कही जाती है।
इसमें सस्पेंशन की अवधि का जिक्र होता है। यह अवधि अधिकतम सत्र के खत्म होने तक हो सकती है। सदन चाहे तो वह किसी भी समय इस प्रस्‍ताव को रद्द करने का आग्रह भी कर सकता है।
5 दिसंबर 2001 को रूल बुक में एक और नियम जोड़ा गया है। इसे ही रूल 374ए कहा जाता है। यदि कोई सांसद स्पीकर के आसन के निकट आकर या सभा में नारे लगाकर या अन्य प्रकार से कार्यवाही में बाधा डालकर जानबूझकर नियमों का उल्लंघन करता है तो उस पर इस नियम के तहत कार्रवाई की जाती है
लोकसभा स्पीकर द्वारा ऐसे सांसद का नाम लिए जाने पर वह 5 बैठकों या सत्र की शेष अवधि के लिए (जो भी कम हो) स्वतः निलंबित हो जाता है।
स्पीकर को किसी सांसद को सस्पेंड करने का अधिकार है, लेकिन सस्पेंशन को वापस लेने का अधिकार उसके पास नहीं है। यह अधिकार सदन के पास होता है। सदन चाहे तो एक प्रस्ताव के जरिए सांसदों का सस्पेंशन वापस ले सकता है। सदन में व्यवधान पैदा करने के लिए सस्पेंड किए गए सांसद को पूरा वेतन मिलता है। केंद्र में लगातार सरकारों द्वारा ‘काम नहीं, वेतन नहीं’ की नीति दशकों से विचाराधीन है। हालांकि इसे अभी तक पेश नहीं किया गया है।
सांसदों के निलंबन का पहला उदाहरण 1963 में मिलता है। 1989 में सबसे बड़ी निलंबन कार्रवाई हुई थी। राजीव गांधी सरकार के दौरान सांसद पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या पर ठक्कर कमीशन की रिपोर्ट को संसद में रखे जाने पर हंगामा कर रहे थे
इसके बाद विपक्ष के 63 सांसदों को हंगामा करने पर निलंबित किया गया था। वहीं जनवरी 2019 में लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन ने 2 दिन में 45 विपक्षी सांसदों को सस्पेंड किया था।
13 फरवरी 2014 को लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार ने 18 सांसदों को सस्पेंड किया था। सस्पेंड हुए कुछ सांसद अलग तेलंगाना बनाने की मांग का विरोध कर रहे थे, जबकि कुछ अलग राज्य की मांग कर रहे थे।

इस दौरान बहुत ही अप्रत्याशित घटना देखने को मिली थी, क्योंकि सस्पेंड होने वाले एक सांसद एल राजगोपाल कांग्रेस के थे। राजगोपाल पर सदन में पेपर स्प्रे प्रयोग करने का आरोप लगा था।