कलीनगर। जनपद में हर साल शारदा नदी की बाढ़ से तबाही होती है। बाढ़ आने पर हर बार तटबंध बनाने की मुद्दा उठता है, लेकिन दो दशक बीतने के बाद भी तटबंध बनाने के लिए शासन और सिंचाई विभाग गंभीर नहीं है। ऐसे में बरसात के दौरान नदी का कटान को रोकने के नाम पर अस्थाई कार्यों पर करोड़ों रुपये फूंकने के बावजूद क्षेत्र को सुरक्षित नहीं किया जा सका। इस बार भी नदी तटवर्ती इलाकों में तेजी से कटान कर रही है।
कलीनगर और पूरनपुर तहसील क्षेत्र में हर साल शारदा नदी तबाही मचाती है। बरसात के दौरान हर साल बाएं और दाएं दोनों ही किनारों की हजारों एकड़ कृषि भूमि नदी में समा जाती है। बरसात के बाद नदी जब अपने पेटे में लौटती है तो जमीन पर रेत के ढेर छोड़ जाती है। इसके साथ ही कटान रोकने के बाद नाम कराए जाने वाले बाढ़ नियंत्रण कार्य भी क्षतिग्रस्त हो जाते हैं।
नदी की तबाही का यह आलम पिछले दो दशक से अधिक समय से जारी है। नौजल्हा क्षेत्र को बचाने के लिए चार साल पूर्व एक मजबूत बांध बनाया गया था। लेकिन कुछ स्थानों पर कार्य में लापरवाही बरतने के चलते दो साल बाद नदी ने बांध को भी क्षतिग्रस्त कर दिया। पिछले साल भी नदी ने नौजल्हा और नगरिया खुर्द कलां में कई महत्वपूर्ण बाढ़ नियंत्रण योजनाओं को नष्ट कर दिया था।
नेपाल ने ठोस योजना बनाकर अपना क्षेत्र किया सुरक्षित
नेपाल में शारदा नदी महाकाली के नाम से जानी जाती है। शारदा नदी नेपाल में भी तबाही मचाती थी। जिसको देख पूर्व वर्षों में नेपाल सरकार की ओर से विश्व बैंक की सहायता से योजना बनाकर ठोस कार्य करा दिए। इसके अलावा नोमैंस लैंड के ऊपरी हिस्से में नेपाली क्षेत्र में तटबंध बना लिए हैं। इसके अलावा नेपाली नागरिकों की सुविधा के लिए अंतरराष्ट्रीय सीमा पिलर नंबर 18, 19 और 21 के निकट मात्र पांच किलोमीटर के दायरे में तीन झूला बना लिए हैं। जिससे नेपाल में शारदा नदी से अधिक बर्बादी नहीं होती है।
वर्ष 1995 से 1989 तक हुए थे तमाम आंदोलन
शारदा नदी ने वर्ष 1995 से लेकर 1989 तक पीलीभीत और लखीमपुर जनपद की सीमा क्षेत्र में भारी तबाही मचाई थी। जिसके बाद तत्कालीन विधायक बीएम सिंह ने जोरदार आंदोलन किए थे। फिर स्थाई बाढ़ नियंत्रण कार्य कराने को लेकर प्रयास शुरू हुए थे। तत्कालीन सीएम मुलायम सिंह यादव ने भी आश्वासन देकर समस्या को रोकने के लिए सिंचाई विभाग से बड़ा प्रोजेक्ट मांगा था, लेकिन सिंचाई विभाग की लचर पैरवी से उसपर अमल नहीं हो सका था।
प्रोजेक्ट के सर्वे के लिए एक माह रुका था सेना का दल
नदी की तबाही को रोकने के लिए पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने भी प्रयास शुरू किए थे। उनके अनुरोध पर तत्कालीन केंद्रीय रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस ने सेना के अभियंताओं का दल सर्वे के लिए भेजा था। एक माह तक दल ने नदी की स्थिति को देखकर सर्वे किया था, लेकिन सत्ता परिवर्तन हो गया।
इसके बाद जनपद और लखीमपुर के नेताओं के प्रयास के बाद भाजपा सरकार के तत्कालीन सिंचाई मंत्री ओमप्रकाश सिंह ने सरकार के अंतिम कार्यकाल में तटबंध बनाने के आदेश किए थे। कमेटी बनाकर रिपोर्ट भी मांगी थी, लेकिन उसके बाद मामला ठंडे बस्ते में पड़ गया।
वर्जन
शारदा नदी के खतरे वाले स्थानों को मजबूत किया गया है। नौजल्हा क्षेत्र में भी कार्य कराए जा रहे हैं। नदी की स्थिति सामान्य है।