बरेली – सिरौली थाना क्षेत्र के ग्राम चकरपुर गही में ब्रह्मदेव के मंदिर पर लगे मेले की है कुछ खास विशेषताएं।

आंवला – रामनगर ब्लाक रामनगर के अंतर्गत गांव चकरपुर गही में एक ब्रह्मदेव मंदिर पर लोगों की एक अटूट आस्था है जिसका प्रतीक हमने देखा कि जहां पर हर धर्म के लोग मंदिर पर प्रसाद एवं जल चढ़ाने आते हैं जल की व्यवस्था के लिए नल लगवाने के लिए एक विशेष परंपराएं बताते हैं बताया जाता है चकरपुर गही पर हिंदू पंचांग के अनुसार जैसे कि हिंदू वर्ष बदलता है उसी समय यहां पर लगभग 40 वर्षों से इस मेले का आयोजन होता आ रहा है आपको बता दें कि सन् 1987 से मेले का आयोजन होता आ रहा है जिसका प्रथम आयोजन पंडित रघुवीर शरण शर्मा के द्वारा कराया गया था लोग बताते हैं यहां पर हिंदू धर्म से अधिक मुस्लिम धर्म के लोग ब्रह्मदेव मंदिर पर आस्था रखते हैं जल एवं प्रसाद चढ़ाने आते हैं जिसका प्रतीक हमारे संवाददाता जब हरदासपुर से होते हुए गांव चकरपुर गही पहुंचे तो वहां देखा कि ब्रह्मदेव मंदिर पर उमड़ता जनसैलाब दिखा जिसकी एक झलक एक अटूट भाईचारे को बढ़ावा दे रही थी यहां पर देखा जा रहा था कि हिंदू धर्म से अधिक मुस्लिम धर्म के लोग ब्रह्मदेव मंदिर पर जल एवं प्रसाद चढ़ा रहे हैं जिसको लेकर हमने वहां पर मौजूद लोगों से वार्ता की जिसमें बताया गया कि यहां पर पुजारी नारायण काफी समय से मंदिर की सेवा करते आ रहे हैं और यहां पर हर वर्ष लगभग 40 वर्षों से एक मेले का आयोजन होता रहा है लोग बताते हैं कि दिन सोमवार को यहां पर लगभग दिल्ली हरियाणा पंजाब उत्तर प्रदेश उत्तराखंड एवं राजस्थान से लोग ब्रह्म देव मंदिर पर जल चढ़ाने का प्रसाद चढ़ाने आते हैं और अपनी मनोकामना मांगते हैं मनोकामना पूर्ण होने पर यहां पर नल लगाने की विशेष परंपराएं बताई जाती हैं इसका नजारा हमने उस समय देखा जिस समय हमें एक तरफ से 63 नलों की लाइन दिखाई दी जिसमें सभी लोग जल ग्रहण कर रहे थे मेले में हर वर्ष कराई जाती है बैल दौड़ प्रतियोगिता बताते हैं यह बैल दौड़ प्रतियोगिता हर वर्ष पुलिस प्रशासन की मौजूदगी में कराई जाती है हर वर्ष मेला लगाया जाता है जिसमें बैलों की भूमिका एक अलग बताई जाती है जहां पर उत्तर प्रदेश के कई जनपदों जैसे मुरादाबाद संभल रामपुर बदायूं शाहजहांपुर पीलीभीत बरेली आदि से अपने अपने बैल लेकर लोग पहुंचते हैं और बैल दौड़ प्रतियोगिता में शामिल होते हैं बैल दौड़ जीतने वालों को पुरस्कार से सम्मानित किया जाता है और यदि कोई बैल दौड़ में पराजित भी होता है तो उसे पीतल का एक ऐसा बर्तन भेंट किया जाता है जिसमें में बैल को जल पिला सके यह उपहार बैल मालिकों को उस समय दिया जाता है जिस समय वह लोग दौड़ समाप्त कर अपने अपने घरों को प्रस्थान करते हैं।

रिपोर्टर परशुराम वर्मा