बरेली – प्रथम शिक्षिका सावत्री बाई फूले की पुण्य तिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि- जगदीश चन्द्र सक्सेना।

आंवला – वो अपमान करते गए, सावित्री पढ़ती गई। वो कीचड़ फेंकते गए, सावित्री साफ करती गई। वो गालियां देते गए, सावित्री पढ़ाती गई। वो पत्थर मारते गए, सावित्री स्कूल बनाती गई। एक सावित्री चली गई, करोड़ो सावित्री बना गई। 10 मार्च को देश की पहली महिला शिक्षिका सावित्री बाई फुले की पुण्य तिथि है। विद्या बिना मति गई, मति बिना नीति गई,
नीति बिना गति गई, गति बिना वित्त गया, वित्त बिना चित्त गया,चित्त बिना शून्य भया।
शिक्षा के बिना अनेक अनर्थ होते हैं। भारतीय समाज की अंतिम पंक्ति की महिलाओं को शिक्षित,संस्कारित एवं जागरूक करने के प्रथम प्रयास के रुप में 14 जनवरी 1848 को पुणे शहर में देश की पहली कन्या पाठशाला की स्थापना ज्योतिबा फुले व सावित्री बाई फुले द्वारा की गई थी।
सावित्री बाई को इस काम में लगातार व्यवधानों,अड़चनों, लांछनो और घर- परिवार तथा समाज से भी बहिष्कार का सामना करना पड़ा था।
सावित्री बाई फुले जब बालिकाओं को पढाने व महिलाओं को जागरूक करने के लिए घर से पाठशाला तक जाती थी, तब रास्ते में खड़े लोग गालियाँ देते, ताना मारते, फब्तियां कसते ,थूकते, पत्थर मारते तथा गोबर व गंदगी उछालते थे।
ऐसी विकट एवं विषम परिस्थितियों में शिक्षा की वेदी पर अपने आपको समर्पित करते हुए अज्ञान , अंधविश्वास, कुरीतियों, पाखंड और पारम्परिक अनीतिपूर्ण रूढियों को ध्वस्त कर मानव कल्याण के लिए संघर्ष करते हुए 10 मार्च 1897 को इस संसार से विदा ली।
भारत के विगत 3000 वर्षों के इतिहास में, इस तरह का शानदार,जानदार और यादगार काम नहीं हुआ था।
मानवता के कल्याण के लिए आपके उपकारों और उपहारों को याद करते हुए हम आपके प्रति श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं।
जगदीश चन्द्र सक्सेना प्रदेशाध्यक्ष बेसिक शिक्षा समिति उत्तर तथा उपाध्यक्ष कायस्थ चित्रगुप्त महासभा उत्तर प्रदेश।

रिपोर्टर – परशुराम वर्मा