रठेरा । करीब 100 साल पुरानी परंपरा का निर्वहन करते हुए जिले के सबसे बड़े गांव रठेरा के लोग एकता की मिसाल पेश कर रहे हैं। 12 हजार की आबादी वाले गांव में आज भी एक ही स्थान पर जलने वाली होली में लोग आखत डालते हैं। मतभेद भुलाकर एक दूसरे को गले लगाकर शुभकामनाएं देते हैं।
गांव रठेरा के लोग वर्षों पुरानी परंपरा को आज भी निभा रहे हैं। परंपरा है कि आपस में चाहे कितने भी मतभेद क्यों न हों होलिका दहन एक ही स्थान पर मनाया जाएगा। ग्राम पंचायत ने गांव के बीच में यह स्थान होलिका दहन के लिए आरक्षित कर रखा है। इस जगह प्रत्येक साल होलिका दहन किया जाता है। गांव के बुजुर्ग हों या युवा सभी की मंशा है कि वर्षों पुरानी एकता की मिसाल कायम रहे। यादव बाहुल्य गांव में कठेरिया, धोबी, दलित, वाल्मीकि, बढ़ई, तेली, नाई आदि जातियों के लोग भी निवास करते हैं। होली पर सभी लोग एक ही स्थान पर आखत डालते हैं।
पांच दिन तक निकलती हैं हुरियारों की टोलियां
गांव में पांच दिन तक हुरियारों की टोलियां फाग गीतों के साथ घर-घर घूमती हैं। टोलियों के साथ सैकड़ों की संख्या में लोग होते हैं। घरों में उनका आदर सम्मान किया जाता है। पांचवें दिन शाम को होलिका दहन स्थल पर पहुंचकर टोलियां फाग कार्यक्रम का समापन कर देती हैं। पंचमी की रातभर गांव में लोग एक-दूसरे के घर बुजुर्गों का आशीर्वाद लेने जाते हैं।
बुजुर्गों के मार्गदर्शन में चलती हैं टोलियां
फाग टोलियों का मार्गदर्शन बुजुर्गों के हाथों में रहता है। गांव निवासी निरंजन सिंह, कप्तान सिंह, मुकेश सिंह, प्रमोद कुमार, रामवीर सिंह, अंगूर सिंह, सतेंद्र सिंह टोलियों का मार्गदर्शन करते हैं।
गांव की वर्षों पुरानी परंपरा है, जिसे टूटने नहीं दिया जाएगा। मुझे गर्व है कि मेरा गांव आज भी एकता का संदेश दे रहा है। और आगे भी ये परंपरा जारी रहे
निरंजन सिंह
गांव की पहचान है कि सभी लोग एक ही स्थान पर होली के दिन आखत डालने पहुंचते हैं। यह परंपरा आगे भी जारी रहेगी।
पुष्पेंद्र सिंह
बुजुर्गों से एकता का संदेश प्राप्त किया था। युवा पीढ़ी पूरी जिम्मेदारी के साथ इसे आगे बढ़ा रही है। और मुझे आशा है की परंपरा आगे भी जारी रहेगी ।
रामराज सिंह
द दस्तक 24
प्रोडेक्शन चीफ – अर्पित यादव