भारतीय सिनेमा जगत के पितामह धुंडिराज गोविंद फाल्के के नाम पर इंडस्ट्री में फर्जी पुरस्कार समारोह का बड़ा बाजार है। सीबीएफसी की मेंबर रहीं वाणी त्रिपाठी टिक्कू से लेकर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधिकारी इस पर ऐतराज जाहिर करते रहें हैं।
हालांकि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय कानूनी तौर पर इन फर्जी पुरस्कार समारोहों के खिलाफ कोई भी कदम उठाने की स्थिति में नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि इन अवॉर्ड्स का आयोजन करने वाले निजी संस्था अवॉर्ड के नाम में थोड़ी बहुत तब्दीली कर बच निकलते हैं। खास बात ये है कि इन अवॉर्ड्स में बॉलीवुड के फेमस सेलिब्रिटी भी शिरकत करते हैं।
हाल ही में ‘दादा साहेब फाल्के इंटरनेशनल अवॉर्ड’ का आयोजन हुआ। हैरत की बात रही कि उस समारोह में वरुण धवन, आलिया भट्ट, अनुपम खेर, विवेक अग्ननिहोत्री जैसे प्रतिष्ठित नाम ने शिरकत की। लेकिन इस नाम से जो वास्तविक अवॉर्ड है वो 1969 में शुरू किया था।
इसे भारत सरकार के सूचना मंत्रालय द्वारा सिनेमा में अभूतपूर्व योगदान देने वाले दिग्गज लोगों को दिया जाता है। वाणी त्रिपाठी टिक्कू तो वैसे ही निजी समारोहों की खिलाफत करती रही हैं। खुद दादा साहेब फाल्के के सगे संबंधी भी इन अवॉर्ड्स का विरोध करते आए हैं। हालांकि इसके बावजूद भी निजी संस्थाएं नाम में फेरबदस कर ऐसे अवॉर्ड-फंक्शन आयोजित कर रहें हैं।
25 साल पुरानी संस्था दादा साहेब फिल्म फाउंडेशन के प्रेसिडेंट अशफाक खोपकर के शब्दों में, ‘हम तो दो दशकों से यह अवॉर्ड आयोजित करते रहें हैं। हम दादा साहेब फाल्के के जन्मदिन पर यह आयोजित करते रहें हैं। इसमें फिल्म निर्माण से जुड़ी सभी 32 यूनियनों से नाम आते हैं, फिर ज्युरी मेंबर तय करते हैं और पुरस्कार देते हैं।
हमारे यहां से शाहरुख खान, अमिताभ बच्चन जैसे बड़े नाम भी सम्मानित हो चुके हैं। रहा सवाल हमारे पुरस्कार समारोहों के विश्वसनीयता का तो इसमें 32 यूनियनों के पदाधिकारी डिजर्व करने वाले एक्टर्स या टेक्नीशियन को सम्मानित करते हैं। सरकार की ओर से तो एक ही इंसान को दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड दिया जाता है, जबकि फिल्म निर्माण में सैकड़ों लोगों का योगदान होता है। ऐसे में वो भी तो इस सम्मान के हकदार हैं। लिहाजा उनके सम्मान का काम हम करते हैं।’
ऑल इंडिया सिने वर्कर्स के प्रेसिडेंट गोरक्ष धोत्रे बताते हैं, ‘अकेले महाराष्ट्र में दादा साहेब के नाम पर आधा दर्जन अवॉर्ड समारोह आयोजित होते रहते हैं। इन्हें हम फर्जी न पुकारें। इन्हें हम ओरिजिनल की फर्स्ट कॉपी कह सकते हैं
श्री दादा साहेब फाल्के फिल्म एंड टेलीविजन अवॉर्ड और दादा साहेब फाल्के फिल्म आयकॉन ऑर्गनाइजेशन जैसे मिलते-जुलते नाम से ऐसे कई अवॉर्ड्स हैं।असली तो वही अवॉर्ड है, जो सरकार साल में एक बार देती है। बाकी तो सब दादा साहेब के नाम पर अपनी दुकानदारी चला रहें हैं।’
गोरक्ष आगे कहते हैं, ‘ऐसे एक आयोजन 20 लाख से लेकर करोड़ों रुपए खर्च कर आयोजित होते हैं। उसकी लागत बड़े स्पॉन्सर्स से निकल जाती है। सेलिब्रेटीज को भी कहने के लिए हो जाता है कि उन्होंने अपने करियर में दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड भी जीता है। तो इस तरह से सबकी दुकानदारी चल रही है।