फर्रुखाबाद:डॉक्टर की सलाह व परिवार की देखभाल से ब्रेन टीबी से उबरने में मिली मदद बार-बार बुखार आने की समस्या को नजरंदाज करना धर्मेन्द्र को पड़ा भारी

फर्रुखाबाद, 21 फरवरी 2023 l घर से दूर दिल्ली में अकेले रहकर काम-धंधा करने वाले धर्मेन्द्र बार-बार बुखार आने की समस्या को समझने में बहुत देर कर दी l इस कारण निजी चिकित्सकों के इलाज पर जहाँ लाखों रुपये खर्च हो गए वहीँ काम-धंधा भी छूट गया l वजन गिरकर 35 किलो रह गया और याददाश्त भी चली गयी l
दिल्ली के गुरू तेगबहादुर अस्पताल में इलाज के लिए पहुँचने पर पता चला कि कोरोना पाजिटिव हैं, सात दिन बाद हुई एमआरआई में ब्रेन टीबी (मस्तिष्क टीबी) की पुष्टि हुई l प्रारम्भिक इलाज के बाद परिवार वाले फर्रुखाबाद के सिविल अस्पताल लिंजीगंज लेकर आ गए, जहाँ भूतपूर्व प्रभारी चिकित्सा अधिकारी डॉ. आरिफ़ सिद्दीकी ने कहा कि परेशान होने की कोई बात नहीं है l नियमित दवा सेवन और खानपान का ख्याल रखने से पूरी तरह स्वस्थ हो जायेंगे l शुरुआत में पाचन व त्वचा सम्बन्धी दिक्कत होने पर भी दवा को बंद नहीं करना है बल्कि चिकित्सक से सम्पर्क करना है l इससे धर्मेन्द्र और परिवार वालों का विश्वास जागा और सभी ने पूरा साथ निभाने का वादा किया l डॉ. सिद्दीकी ने यह भी बताया कि जिले में इससे पहले भी बहुत से ब्रेन टीबी के मरीजों का सफल इलाज हो चुका है और वर्तमान में इस समस्या के सात मरीजों का इलाज चल रहा है l नियमित इलाज से अब धर्मेन्द्र की याददाश्त लौटने लगी है और स्वस्थ भी महसूस करने लगे हैं l
दरीवा पूर्व के रहने वाले धर्मेंद्र की पत्नी अर्चना बताती हैं कि मई 2021 में एक शादी समारोह में शामिल होने गए थे, उसी समय पति को बुखार आया l निकट के निजी चिकित्सक को दिखाया तो टायफाइड बताया l तीन-चार दिन के इलाज में बुखार उतर गया तो वह काम पर दिल्ली चले गए l वहां फिर से बुखार आने पर मेडिकल स्टोर से दवा लेकर खाते रहे, कोई फायदा नहीं मिलने पर परिवार वालों को सूचना दी l दिल्ली के गुरुतेग बहादुर अस्पताल में 13 जून 2021 को दिखाने पर पहले कोरोना फिर ब्रेन टीबी का पता चला l यह सुनकर ही परिवार वाले घबरा गए l कुछ दिन दिल्ली में इलाज के बाद घर आ गए और जुलाई 2021 से सिविल अस्पताल लिंजीगंज से इलाज शुरू किया l वहां डॉ. सिद्दीकी से बातचीत के बाद इलाज पर अब तक हुए लाखों खर्च और जेवर बेचने का सारा दर्द ख़त्म हो गया क्योंकि उन्होंने भरोसा दिलाया कि अब सही जगह आ गए हो और इलाज का पूरा कोर्स करने से पूरी तरह स्वस्थ हो जाओगे l हालांकि टीबी का नाम सुनकर पास-पड़ोस के लोगों ने मुंह मोड़ लिया लेकिन ससुर और बच्चों ने पूरा साथ निभाया l इस दौरान निक्षय पोषण योजना के तहत हर माह मिलने वाले 500 रुपये भी बहुत काम आये, इससे पति के खानपान का ख्याल रखने में बड़ी मदद मिली l
ज़िला क्षय रोग अधिकारी डॉ रंजन गौतम का कहना है कि यह तो सिर्फ बानगी भर है, धर्मेंद्र जैसे बहुत से लोग हैं जो सही समय पर जाँच नहीं करवाते और इधर-उधर भटकते रहते हैं। उन्होंने बताया कि बाल और नाखून को छोड़कर किसी भी अंग में टीबी हो सकती है। दिमाग की टीबी एक से दूसरे में नहीं फैलती लेकिन फेफड़ों की टीबी से संक्रमित व्यक्ति के खांसने-छींकने से निकलने वाली बूंदों के सम्पर्क में आने से इसके बैक्टीरिया दूसरे व्यक्ति के अंदर प्रवेश कर जाते हैं। इनके दिमाग में प्रवेश कर जाने पर ब्रेन टीबी होने की संभावना रहती है। यह बच्चों और हर वर्ग के वयस्कों को हो सकती है। डॉ रंजन बताते हैं कि ज्यादा मात्रा में एल्कोहल का सेवन, एचआईवी/एड्स, कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता और डायबिटीज मेलिटस ब्रेन टीबी के प्रमुख रिस्क फैक्टर्स हैं। ब्रेन टीबी के लक्षण आमतौर पर धीरे-धीरे दिखाई देते हैं, जो हफ्ते दर हफ्ते गंभीर होते जाते हैं l शुरूआत में यह लक्षण सामान्य लगते हैं, जिन्हें पहचानना मुश्किल हो जाता है l सही पोषण  ब्रेन टीबी के इलाज में अहम भूमिका निभाता है।
इनका सेवन करें :
पोषण में खास तरह के पोषक तत्व शामिल करने पर इम्यून सिस्टम मजबूत होता है जिससे बीमारी से लड़ने में मदद मिलती है। खाने में ताजे फल, दूध, सब्जियां और प्रोटीन शामिल करने की जरूरत होती है। ताजे रसदार फल जैसे- अंगूर, सेब, संतरे, तरबूज और अनानास को डाइट में शामिल करें।
इनका सेवन न करें :
डिब्बाबंद फूड्स से परहेज करें। कड़क चाय या कॉफी के सेवन से बचें। किसी भी तरह का नशा न करें।
क्या कहते हैं आंकड़े :
राष्ट्रीय क्षय उन्मूलन कार्यक्रम के जिला समन्वयक सौरभ तिवारी ने बताया कि जिले में वर्तमान में 1905 टीबी रोगी हैं जिसमें सात ब्रेन टीबी के मरीज़ हैं, जिनका इलाज चल रहा है l