जनपद बरेली _ उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की जयंती बरेली में आज बड़े धूमधाम से मनाई गई, मुंशी प्रेमचंद्र की जयंती पर उनकी प्रतिमा पर बेसिक शिक्षा समिति उत्तर प्रदेश, प्रदेश अध्यक्ष जगदीश चंद्र सक्सेना एवं अन्य लोगों ने फूलमाला चढ़ाकर पुष्प अर्पित किए, उसके बाद बेसिक शिक्षा समिति के प्रदेश अध्यक्ष जगदीश चंद्र सक्सेना ने उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद के जीवन एवं उनके उपन्यास और कहानियों पर प्रकाश डाला, प्रदेश अध्यक्ष ने कहा की कुछ यादें जो उनके कृतित्व व व्यक्तित्व पर प्रकाश डालती हैं। उपन्यास और कहानियों के सम्राट कहे जाने वाले धनपत राय श्रीवास्तव का बचपन गोरखपुर शहर की गलियों में बीता, जब वह नौकरी के दौरान गोरखपुर आए तो शहर के बेतियाहाता स्थित निकेतन में पांच साल रहकर उन्होंने अपनी दो मशहूर कहानियां लिखी थीं, ईदगाह’ और ‘नमक का दारोगा’। वो हिन्दी और उर्दू के सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासकार, कहानीकार एवं विचारक थे। हिंदी साहित्य में उन्हें मकबूलियत प्रेमचंद नाम से मिली। वैसे उर्दू लेखन के शुरुआती दिनों में उन्होंने अपना नाम नवाब राय भी रखा था।
बात 1930 की है जब मशहूर विद्वान और राजनेता कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ने महात्मा गांधी की प्रेरणा से प्रेमचंद के साथ मिलकर हिंदी में एक पत्रिका निकाली. नाम रखा गया-’हंस’,वे उम्र में भी प्रेमचंद से करीब सात साल बड़े थे. बताया जाता है कि ऐसे में केएम मुंशी की वरिष्ठता का ख्याल करते हुए तय किया गया कि पत्रिका में उनका नाम प्रेमचंद से पहले लिखा जाएगा। हंस के कवर पृष्ठ पर संपादक के रूप में ‘मुंशी-प्रेमचंद’ का नाम जाने लगा। मुंशी-प्रेमचंद दो लोगों के नाम का संयोग है। साहित्य के ध्रुवतारे प्रेमचंद ने राजनेता मुंशी के नाम को अपने में समेट लिया था, इसे प्रेमचंद की कामयाबी का भी सबूत माना जा सकता है। वक्त के साथ तो वे पहले से भी ज्यादा लोकप्रिय होते चले गए।
1906 से 1936 के बीच लिखा गया प्रेमचंद का साहित्य इन तीस वर्षों का सामाजिक सांस्कृतिक दस्तावेज है। इसमें उस दौर के समाजसुधार आन्दोलनों, स्वाधीनता संग्राम तथा प्रगतिवादी आन्दोलनों के सामाजिक प्रभावों का स्पष्ट चित्रण है। उसके बाद कार्यक्रम में अन्य लोगों ने भी अपने अपने विचार व्यक्त किए, कार्यक्रम में बेसिक शिक्षा समिति के पदाधिकारी कार्यकर्ता एवं बरेली जिले के सम्मानित, गणमान्य, संभ्रांत, एवं जनप्रतिनिधि भी मौजूद रहे,