जौनपुर:
मंकीपॉक्स के प्रति जागरूकता को लेकर जनपद का स्वास्थ्य विभाग सक्रिय है। जिला मुख्यालय पर स्वास्थ्यकर्मियों को इस संबंध में प्रशिक्षण दिया जा रहा है। उन्हें मंकीपॉक्स, चिकनपॉक्स और खसरा में अंतर बताया जा रहा है। सीएमओ डॉ लक्ष्मी सिंह ने एल-1 और एल-2 चिकित्सालय पर बेड आरक्षित करने का निर्देश दिया है। सभी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) के अधीक्षकों? प्रभारियों को ब्लॉक स्तर पर कर्मचारियों का प्रशिक्षण कराने को कहा गया है। सम्भावित मरीजों को तत्काल आइसोलेट कर जिला मुख्यालय पर जानकारी देने को कहा गया है।
सीएमओ कार्यालय सभागार में शनिवार को मेडिकल अफसरों को बतौर मास्टर ट्रेनर प्रशिक्षण दिया गया। इसके बाद वह अपने-अपने ब्लाकों में स्वास्थ्य अधिकारियों, कर्मचारियों को प्रशिक्षित करेंगे। चार अगस्त से लगातार चल रही सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी (सीएचओ) की ट्रेनिंग में भी केराकत, डोभी, मुफ्तीगंज, जलालपुर, बक्शा सहित अन्य ब्लाक के सीएचओ को मंकीपॉक्स के बारे में भी प्रशिक्षित गया। जिला प्रतिरक्षण अधिकारी (डीआईओ) डॉ नरेंद्र सिंह ने बताया कि मंकीपाक्स में विदेश से आए व्यक्ति की 21 दिन की हिस्ट्री देखी जाती है। यदि उसे तेज बुखार, कांख और जांघ में गिल्टियों के अंदर सूजन, बदन दर्द, सिरदर्द की शिकायत के साथ ही शरीर पर चिकनपॉक्स के दाने से बड़े दाने पाये जायें, दानों में पानी की तरह पस भरा हो, ऐसे दाने हथेलियों और तलवों पर भी पाये जायें, मरीज को थकान ज्यादा लगे तो ये सभी मंकीपॉक्स के लक्षण हो सकते हैं। मंकी पॉक्स में बुखार और दाने दो से तीन दिन बाद दिखाई पड़ते हैं।
प्रभारी जिला सर्विलांस अधिकारी (डीएसओ) डॉ0 संतोष कुमार जायसवाल ने बताया कि मंकीपाक्स एक संक्रामक रोग है जो संक्रमित इंसान के माध्यम से किसी को भी हो सकता है। संक्रमित व्यक्ति के खांसने, छींकने, उसके दाने के सम्पर्क में आने, दाना सूखने के बाद बनी पपड़ी के सम्पर्क में आने या शारीरिक संबंध के दौरान किसी को भी मंकीपाक्स हो सकता है। इस दौरान एसीएमओ डॉ राजीव कुमार ने बताया कि मंकीपाक्स के मरीजों में मृत्यु दर चार से छह प्रतिशत ही है। चिकनपॉक्स में तो न के बराबर है जबकि खसरा के मामले में यदि समय से रोकथाम कर लक्षण के अनुसार दवा एवं विटामिन-ए सॉल्यूशन दिया जाता है तो ज्यादातर मौत नहीं हो पाती। मरीज को जटिलताओं से बचाया जा सकता है। खसरा में जटिलताओं की वजह से मौत हो जाने की भी आशंका रहती है।
जिला महामारी रोग विशेषज्ञ डॉ जिया उल हक ने चिकनपॉक्स, मंकीपाक्स और खसरा के बीच के अंतर को समझाया। उन्होंने कहा कि मंकीपाक्स के दाने काफी बड़े जबकि चिकनपाक्स के अपेक्षाकृत काफी छोटे होते हैं। खसरा में दाने बिल्कुल ही छोटे होते हैं। खसरा के दाने लाल होते हैं जबकि चिकनपॉक्स के दानों में पानी की तरह पस भरा होता है। मंकीपाक्स के दाने ज्यादा बड़े और उसके अंदर भरा पस पीले रंग का दिखाई पड़ता है। मंकीपाक्स के दाने धीरे-धीरे बढ़ते हैं जबकि चिकनपॉक्स और खसरा के दाने अपेक्षाकृत तेजी से बढ़ते हैं। मंकी पॉक्स के दाने पूरे शरीर के साथ ही हथेली और तलवों पर पाये जाते हैं जबकि चिकन पॉक्स के दाने पेट, पीठ, दोनों हाथों और चेहरे पर पाये जा सकते हैं लेकिन हथेलियों और तलवों पर बिल्कुल नहीं पाये जाते हैं। खसरा के दाने चेहरे से निकलना शुरू होते हैं, फिर हाथ-पैर व शरीर के अन्य हिस्सों पर फैलते हैं। मंकीपॉक्स में लिम्फ एडेनौपैथी (गिल्टियों में सूजन) पाई जाती है जबकि चिकन पॉक्स में ऐसा नहीं होता। खसरा में भी कभी-कभी गिल्टियों में सूजन हो सकती है।
उन्होने कहा कि मंकीपॉक्स एक डीएनए वायरस है जिसका संबंध आर्थोपॉक्स वायरस से है। यह एक वायरल जेनेटिक (जानवरों वाली) बीमारी है। इसके ज्यादातर लक्षण स्मॉल पॉक्स (चेचक) से मिलते-जुलते है। उन्होंने कहा कि क्षेत्र में ऐसे मरीज चिह्नित होने पर घबराने की जरूरत नहीं है बल्कि उन्हें आइसोलेट कर देना चाहिए। इसके बाद नजदीक के स्वास्थ्य केंद्र या जिला मुख्यालय को सूचित करना चाहिए।
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