फर्रुखाबाद 12 जुलाई 2022 राष्ट्रीय क्षय उन्मूलन कार्यक्रम के तहत अब गर्भवती के टीबी प्रबन्धन की पूरी तैयारी है। इसके तहत गर्भवती के प्रसव पूर्व जाँच में दो सप्ताह से खांसी व बुखार रहना, लगातार वजन कम होना और रात में पसीना आना जैसे लक्षण नजर आते हैं तो उनकी टीबी की जाँच करायी जाएगी। जनपद में जनवरी 2021 से अब तक 1939 टीबी रोगियों का इलाज चल रहा है l इनमें से लगभग 23 गर्भवती महिलाएं टीबी रोग से ग्रसित हैं जिनका इलाज किया जा रहा है l
नेशनल लेवल वर्चुअल प्रशिक्षण में यह बात निकलकर आई है कि उत्तर प्रदेश में हर साल करीब 8000 गर्भवती में टीबी के लक्षण पाए जाते हैं। इन गर्भवती की समय से टीबी की जाँच और इलाज से गर्भवती के साथ ही गर्भस्थ शिशु को भी सुरक्षित बनाया जा सकेगा। इससे मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में भी कमी लायी जा सकेगी। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन-उत्तर प्रदेश की मिशन निदेशक अपर्णा उपाध्याय ने इस सम्बन्ध में प्रदेश के सभी जिलाधिकारी और मुख्य चिकित्सा अधिकारी को आवश्यक निर्देश भी जारी किये हैं।
इसी क्रम में सूबे के सभी आंगनबाड़ी केन्द्रों, स्वास्थ्य उप केन्द्रों, हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर, प्राथमिक व सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर गर्भवती की सिम्टोमेटिक स्क्रीनिंग करायी जाए। सिम्टोमेटिक स्क्रीनिंग में जिन गर्भवती में टीबी के लक्षण नजर आयें उनको टीबी जांच केन्द्रों पर अवश्य रेफर किया जाए। जाँच में जिन गर्भवती में टीबी की पुष्टि होती है उनका समय से उपचार शुरू किया जाएगा ।
जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ सुनील मल्होत्रा ने बताया कि अगर गर्भवती महिला में टीबी के लक्षण दिखाई देते हैं तो इलाज में देरी नहीं करनी चाहिए यह देरी गर्भस्थ शिशु और मां के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकती है l इसलिए टीबी के लक्षण दिखाई देने पर फौरन ईलाज शुरू कर दें l टीबी का इलाज सभी स्वास्थ्य केंद्रों पर निशुल्क उपलब्ध है lनिर्देश के क्रम में जनपद स्तर पर किये जाने वाले प्रबन्धन के बारे में कहा गया है कि इसके लिए जनपद के अधिकारियों और कर्मचारियों का क्षमता वर्धन किया जाए और मातृत्व शिशु सुरक्षा कार्ड (एमसीपी कार्ड) पर स्क्रीनिंग लक्षणों को दर्ज किया जाए । इस सारी प्रक्रिया की समीक्षा और अनुश्रवण के लिए जरूरी सूचकांक (इंडेक्स) एचएमआईएस पोर्टल और निक्षय पोर्टल के आंकड़ों के आधार पर तय किये गए हैं ।
डॉ राममनोहर लोहिया चिकित्सालया महिला की स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डा. नमिता दास का कहना है कि गर्भवती की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है, ऐसे में उनके संक्रामक बीमारियों की चपेट में आने की गुंजाइश ज्यादा होती है। उच्च जोखिम गर्भावस्था (एचआरपी) वाली महिलाओं को तो खासतौर पर टीबी के संक्रमण से सुरक्षित बनाने की जरूरत है ।