फर्रुखाबाद, वर्तमान में अति वर्षा से खेती को हुए नुकसान एवं उसकी भरपाई हेतु आगामी कार्य योजना हेतु तकनीकी सुझाव ।
नमी की खेती किसान भाइयों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होती है इसी से सारे कार्य व विकास निर्धारित होते हैं।
यदि जाड़े की वर्षा को महावट कहते थे और फसल के लिए अमृत वर्षा कहा जाता है लेकिन जब जाड़े की वर्षा मातृ नमी देने वाली हो।
परंतु जो यह वर्षा हुई है नवी नहीं बल्कि जलभराव वाली है। परिणामस्वरूप अमृत की जगह जहर बन गई है कहीं-कहीं 100 मिलीमीटर तक भी वर्षा हो चुकी है।
जिस खेत में जितनी अधिक लागत की खेती की गई है उसमें उतने नुकसान की संभावना है आलू दलहनी तिलहनी व सब्जी वाली फसलें पूर्ण रूप से नष्ट होने की स्थिति में है और अब तो सारी फसलें यहां तक गेहूं को भी नुकसान होने की संभावना है जब ऐसी अतिवृष्टि होती है तब वास्तव में किसानों की सारी उम्मीदों में पानी फिर जाता है।
(1) वर्षा से जहां भी जल भरा हुआ है सभी फसलें प्रभावित होंगी जैसे चना मटर मसूर अरहर सरसों आलू व सब्जियां आदि में अधिक नुकसान है कई सरसो अरहर की जो फसने गिर गई हैं उन्हें और अधिक नुकसान है।
(2) ऊसरिली क्षेत्र में अधिक समय तक पानी भरे रहने से नुकसान होगा मार कबार भूमि में भी अधिक नमी के कारण फसलों का विकास नहीं होगा।
(3) गन्ना की फसल को विभिन्न तना छेदक कीटों से बचाव के उपाय अपनाने होंगे।
( खाली खेतों हेतु फसल योजना)
अधिक वर्षा से फसलें क्षतिग्रस्त होने पर खेत की तैयारी कर तुरंत अतिविलंब गेहूं की बुवाई अभी भी कर सकते हैं टमाटर की ग्रीष्म ऋतु की फसल रोपाई कर सकते हैं प्याज की रोपाई कर सकते हैं।
जायद की भिंडी व मिर्च खेत की तैयारी करके फरवरी माह में बुवाई रोपाई कर सकते हैं।
गन्ने के दो कतारों के बीच मूंग उर्द की बुवाई कर सकते हैं।
डॉ अभिमन्यु यादव
फसल सुरक्षा वैज्ञानिक
कृषि विज्ञान केंद्र फर्रुखाबाद।
अजीत शाक्य ब्यूरो रिपोर्ट फर्रुखाबाद