नई दिल्ली के मंडी हाउस इलाके के बारे में आप जानते ही होंगे. दिनभर यह इलाका कभी भागता तो कभी ऊंघता-घिसटता सा दिखता है. लेकिन जैसे ही यहां शाम जवान होती है, पूरे मंडी हाउस की रंगत बदलने लगती है. कहा जाता है कि जिंदगी की भागमभाग, संघर्ष, तनाव, दुखों, दुश्वारियों से परेशान लोग यहां पर, कुछ घंटों के लिए ही सही, अपनी जिंदगी जीने आते हैं. ठहाके लगते हैं, तीखी बहस होती है, किसी शख्स के उड़ान की बातें होती हैं तो किसी के लंबे स्ट्रगल को याद किया जाता है. उस वक्त ऐसा लगता है कि मंडी हाउस की फिजां में वैचारिकी तैर रही है. इस वैचारिकी को रवां बनाए रखने के लिए वहां कई चीजें मौजूद हैं, लेकिन जो सबको आकर्षित करती है, वह है यहां मिलने वाली चाय. यहां कई ठिए हैं, जहां शाम होते ही मजमा लग जाता है, एक ग्रुप टूटता है तो दूसरा जमा हो जाता है.आज यहीं के एक चाय के ठिए पर आपको लिए चलते हैं. असल में इस ठिए पर चाय पीना एक आदत है. आने वालों को यहां सुकून मिलता है और अपने-पराए भी कुछ घंटों के लिए दुख बिसरा जाते हैं. यहां जीवन के संघर्ष से लड़ने के लिए ऊर्जा अंगड़ाई लेने लगती है.
पूरी दिल्ली से जुदा है मंडी हाउस की दुनिया
चूंकि यह इलाका अजब-गजब है, इसलिए इस पर थोड़ी बात और करते हैं. मंडी हाउस सर्कल से चारों ओर जो सड़कें मुड़ती हैं, उनका एक अपना इतिहास है. भगवान दास रोड पर मंडी हाउस, फिरोजशाह रोड पर नेपाल का दूतावास और रशियन सेंटर, कॉपरनिकस मार्ग पर साहित्य अकादमी व दूरदर्शन का कार्यालय, तानसेन मार्ग पर त्रिवेणी कला संगम व फिक्की सभागार, सफदर हाशमी मार्ग पर श्रीराम सेंटर और सिकंदरा रोड पर मेट्रो स्टेशन. शाम होते होते इस इलाके की सरकारी गतिविधियां विराम लेने लग जाती है तो यहां एक अलग ही दुनिया जवां होती है. यह ऐसी दुनिया है जो इस इलाके को पूरी दिल्ली से जुदा करती है. बातें बहुत हैं कहानी लंबी होती जाएगी. लेकिन बात तो चाय की हो रही है तो उसी पर चर्चा करते हैं.
इलाके में फेमस है यह चाय का ठिया
शाम को जब आप श्रीराम सेंटर के गेट के सामने की सड़क को पारकर सामने पहुंचेंगे तो अलग-अलग ग्रुपों में वहां मजमा लगा दिखाई देगा. कोई ग्रुप दोपहिया के आसपास चाय पीता हुआ किसी नाटक की स्क्रिप्ट पर बहस करता दिखाई देगा तो कोई ग्रुप फुटपाथ की मुंडेर पर बैठा किसी फिल्म पर बहस कर रहा होगा. कुछ युवा यूं ही वहां खड़े होकर ठहाके लगाते दिखाई देंगे तो कुछ किसी के इंतजार में बेताब से दिखाई देंगे. लेकिन यहां पर एक चीज जो समान दिखाई देगी, वह है अधिकतर के हाथ में चाय का गिलास. कागज के गिलास में भरी गरम चाय उन्हें ऊर्जा देती है, बहस करने के लिए उकसाती है तो दीन-दुनिया से लापरवाह भी बनाती है. यहीं पर वह चाय का ठिया है जो इस इलाके का ‘माइल-स्टोन’है. आने वाले युवा, जींस-कुर्ता, खिचड़ी दाढ़ी और चेहरे पर बेफिक्री लिए लोगों ने इसे जो भी नाम दे रखा है, लेकिन आधिकारिक तौर पर इस ठिए का नाम ‘बबलू टी स्टाल’ है, जहां सुबह से लेकर रात तक चाय ही मिलती है और कुछ नहीं.
20 सालों से संचालित हो रही दुकान
लोग कहते हैं यह ठिया एक आदत है और यहां की चाय एक नशा. इसलिए यहां पर आना जरूरी है. वर्ष 2001 में चंद्रभान ने इस ठिए को स्थायी रूप से शुरू किया था. अब उनके साथ बेटे और उनके बेटे बबलू, कालू, प्रवीण आदि शिफ्टों में चाय पिलाते हैं. बाहर ही उनकी एक सालों पुरानी कार खड़ी है, जो इनका स्टोर व बेडरूम है. सुबह 5 बजे चाय मिलना शुरू हो जाती है. आजकल कोरोनाकाल है, इसलिए रात 8 बजे तक ठिया सिमट जाता है, वरना 10-11 बजे तक यह ठिया बहस-मुसाहबे में घिरा रहता था. अवकाश कोई नहीं है. रात को इस ठिए पर कभी-कभार नामी फिल्मी सितारे भी दिख जाते हैं जो मंडी हाउस में संघर्ष के दिनों में इस ठिए पर चाय पीने आते थे. कुछ ऐसे भी नामी लोग हैं जो कार में आते हैं, चाय पीते हैं और
चुपचाप से निकल जाते हैं.
अदरक, इलायची, लौंग की खुशबू से भरी है कड़क चाय
नाटकों से जुड़े लोग, कलाकार, फिल्म-सीरियलों में संघर्ष कर रहे युवा अगर किसी से कहेंगे कि शाम को मंडी हाउस मिलते हैं उसका अर्थ है इसी चाय के ठिए पर उनकी मुलाकात होगी. वहां खड़े होकर हमने पाया कि इस चाय वाले की खासियत यह है कि वह आदमी को देखकर उसके मिजाज और स्वाद की चाय बनाकर पेश कर देता है. ग्रुप आते हैं चाय मांगते हैं, थोड़ी देर में चाय उनके हाथ में होती है और लोगों की बहस जारी रहती है. कई लोग तो ऐसे हैं जो सालों से इस ठिए पर आते हैं. वह कुछ नहीं कहते, लेकिन थोड़ी देर बाद चाय उनके हाथ में होती है. फीकी चाय लीजिए या मीठी. मात्र 10 रुपये की है. भुगतान को लेकर कोई झिकझिक या तनाव नहीं. दे देंगे, तो चाय वाला ले लेगा, नहीं देंगे तो आपसे सवाल भी नहीं करेगा. बस चाय की खासियत यह है उसमें अदरक, इलायची और लौंग की खुशबू आएगी और वह इतनी कड़क होगी कि दिमाग की कुंद शिराओं में गर्मी सी तैरती महसूस होगी.