बरेली। अपनी एक अलग ही बात रखने बाले सभी को सम्मान की दृष्टि से देखने बाले और परिस्थिति में चुनौतियों का सामना करने और जटिल से जटिल हालात में भी हार नहीं मानने की शैली उन्हें सबसे अलग दमदार छवि के राजनेता वीरेन्द्र सिंंह बनाती थी। ऐसी शख्सियत, जिनकी डिक्शनरी में न हार मानना शब्द था और न झुकना। जब विधायक थे तो हठीले अफसरों को अपने अंदाज में नियम-कायदे में रहकर काम करने की सीख देते थे। कई बार प्रोटोकॉल के बैरियर तोड़ने वाले अधिकारियों का बोरिया बिस्तर भी बंधवाते देते थे। सियासत का खास अंदाज ही था जो लोग उन्हें बरेली का हीरो बताते थे और उन्हें राजनीति का सिंंघम कहते थे। राजनैतिक हनक और खनक ऐसी कि उनके अदने से कार्यकर्ता भी थाने-तहसील में विधायक जैसा सम्मान पाते थे। लंबे वक्त लाइलाज बीमारी से लड़ते-लड़ते पूर्व विधायक वीरेन्द्र सिंंह आज दोपहर 12:15 बजे दुनिया छोड़ गए। और साथ में अपने पीछे छोड़ गए सियासत का वह खाली स्थान, जिसकी भरपाई शायद ही कभी हो पाएगी।