आँवला – किसानों से बिना राय लिए जल्द बाजी मे बानाऐ गए कृषि क्षेत्र में लाए गए तीन सुधारवादी कानूनों के विरोध में किसानों का एक बहुत बड़ा वर्क इन दिनों दिल्ली की सड़कों पर आया है देश के किसानों को डर है कि काले कानूनों की आड़ में सरकार एम एसपी पर फसलों की खरीद और वर्तमान मंडी व्यवस्था से पल्ला झाड़ कर कृषि बाजार का निजीकरण करना चाहती है बरहाल 40 दिन हो चुके हैं किसानों को प्रदर्शन करते हुए इस दौरान किसान आन्दोलन मे लगभग 50 किसान शहीद भी हो चुके हैं और सरकार किसानों की आशंका को दूर करने में अब तक असफल रही है किसान संगठनों की सरकार से मांग है कि सरकार एमएसपी कानून बनाएं लेकिन सरकार पीछे हटने के मूड में नहीं और अपने अहंकार में डूबी हुई है लेकिन देश का किसान इन काले कानूनों को अच्छी तरह समझ चुका है सरकार के इस रवैया से किसानों का दुख दर्द देखकर मेरा दिल बहुत द्रवित हो उठता है बरहाल किसानों के साथ हो रहे थे भेदभाव और दुर्दशा गांव एवं शहर के बीच पनपती असमानता कृषि और उद्योग जगत में गहरी खाई बढ़ती जा रही है एक समय था जब कृषि प्रधान देश में किसानों ने चौधरी चरण सिंह के रूप में अपना नेता देखा था चौधरी चरण सिंह ने छिटपुट मांगों को लेकर आंदोलन करने के साथ ही किसान वर्गों की सत्ता में संपूर्ण हिस्सेदारी के पक्षधर भी थे उनका मानना था कि किसान समुदाय से आए जनप्रतिनिधि जब तक सत्ता शीर्ष स्थानों पर होंगे उनकी समस्याओं का निदान करने में आसानी होगी उन्होंने 1937 में किसान पुत्रों को सरकारी सेवाओं में 50% आरक्षण का प्रस्ताव दिया था उनका मानना था क्रषिमे अतिरिक्त लोग लगे हैं लिहाजा उन्हें इस क्षेत्र से निकलकर उन पैशो में लगाया जाना चाहिए जिनमें फल सब्जी दूध मछली पालन और ग्रामीण स्तर के परंपरागत लघु एवं कुटीर उद्योग शामिल है आज इसके विपरीत जिस देश में उत्तम खेती मध्यम बान निषिद्द चाकरी भीख निदान जैसा दोहा प्रचलित है वहां की खेती किसानी घाटे का सौदा बनती जा रही है सरकारों की उदासीनता का ही कारण कहा जाएगा हालांकि किसानों के मन में डर यह है कि काले कानूनों से न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था अप्रासंगिक को जाएगी अपनी उपज को ओने पौने दामों में बेचने को मजबूर होना पड़ेगा दूसरे मंडियों के बाहर कारोबार होने से उनके पास छल कपट के अलावा कुछ नहीं मिलेगा इससे किसानों के पास कीमत निर्धारण करने की कोई व्यवस्था भी नहीं बचेगी किसानों के इसी दुख दर्द को समझते हुए विपक्ष के एक बड़े नेता ने कृषि के काले कानूनों के खिलाफ राष्ट्रपति को ज्ञापन भी दिया उन्होंने दिल्ली में डेरा डाले किसानों की खुली तरफदारी करते हुए कहा जब तक कृषि कानून वापस नहीं लिए जाते देश का एक भी किसान पीछे नहीं हटेंगा नए कृषि कानूनों के विरोध में एक तर्क यह भी है कृषि सुधार अमेरिका एंड यूरोप का एक असफल मॉडल है दरअसल एमएसपी पर सरकारी खरीद की व्यवस्था किसानों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है हमारे देश में 23 फसलों की एमएसपी घोषित होती है इसमें मुख्य रूप से खाद्यान्न गेहूं धान मोटे अनाज दालों और तिलहन गन्ना एम क पास जैसी कुछ नगदी फसलें शामिल है अब देखना यह है सत्ता के नशे में चूर यह सरकार किसानों की बात कब तक मानने को तैयार होगी या नहीं एमएसपी पर कानून बनाएगी या नहीं आखिर देश का अन्नदाता कब तक सड़कों पर अपने हक की भीख मांगे अगर सरकार ने आने वाले दिनों में किसानों की बात को नहीं माना तो किसान संगठन कोई बड़ा फैसला भी ले सकते हैं इसका अंजाम सरकार को भुगतना ही पड़ेगा आज पजाब हरियाणा खास कर उत्तर प्रदेश सहित पूरे देश का किसान अब जाग गया है जय जवान जय किसान ।
लेखक राष्ट्रीय किसान मजबूर सगठन के आईटी सेल तहसील अध्यक्ष सददाम खान ऑवला बरेली।
रिपोर्टर – परशुराम वर्मा