कौन हैं छठी मइया, क्या है छठ पूजा: रामगया शर्मा मुंबई

छठी मैया का महत्व भगवान सूर्य जिन्हें आदित्य भी कहा जाता है. वास्तव में एकमात्र प्रत्येक देवता हैं जिनकी रोशनी में जीवन चक्र चलता है. इन की किरणों से धरती में प्राण का संचार होता है और फल फूल अनाज और शुक्र का निर्माण होता है. यही वर्षा का आकर्षण करते हैं और रितु चौक ऋतु चक्र को चलाते हैं. भगवान सूर्य की इस अपार कृपा के लिए श्रद्धा पूर्वक समर्पण और पूजा उनके प्रति कृतज्ञता को दर्शाता है. छठ का व्रत इन्हीं आदित्य सूर्य भगवान को समर्पित है. इस महापर्व में सूर्य नारायण के साथ देवी छठ की पूजा भी होती है. दोनों ही दृष्टि से पूर्व की अलग-अलग कृपा आती है. छठ व्रत कथा के अनुसार एक राजा थे प्रियव्रत , उनकी पत्नी थी मालिनी. राजा रानी की संतान होने से बहुत दुखी थे. उन्होंने महर्षि कश्यप से पुत्र देने के लिए यज्ञ का करवाया .यज्ञ के प्रभाव से मालिनी गर्भवती हुई. परंतु 9 महीने बाद जब उन्होंने मृत बालक को जन्म दिया. तो इससे वे अत्यंत दुखी हुए और आत्महत्या करने का विचार आया. प्रियव्रत ने जैसे ही आत्महत्या करने की सोची. उसी समय एक देवी वहां प्रकट हुई. और उन्होंने कहा की मेरी पूजा आराधना से पुत्र की प्राप्ति होती है .जो सभी जो सभी प्रकार की मनोकामना पूर्ण करने वाली है .अब तू मेरी पूजा करो इससे तुम्हे पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी. राजा ने देवी की आज्ञा मानकर कार्तिक शुक्लपक्ष षष्ठी तिथि को देवी छठ की पूजा की. जिससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई. उस दिन से ही छठ व्रत का अनुष्ठान चला आ रहा है. इस त्यौहार को बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश एवं पड़ोसी देश नेपाल में भी मनाया जाता है. भगवान सूर्य की प्रसन्न करने के लिए माता छठ और भगवान सूर्य को प्रसन्न करने के लिए स्त्री पुरुष दोनों ही व्रत रखते हैं.

यह व्रत चार दिनों का होता है. पहले दिन यानी चतुर्थी को आत्म शुद्धि हेतु व्रत करते हैं .उस उस दिन केवल आठवां भाग खाते अली सुधार लेते हैं. पांचवें दिन नहा खा लिया स्नान करके पूजा पाठ करके संध्याकाल घोड़ा और चावल का खीर और मिष्ठान से छठ माता की पूजा की जाती है. 4 दिन घरों में पूर्व पवित्र एवं शुद्धता के साथ पकवान बनाए जाते हैं .संध्या के समय बांस के बड़े डालो में भरकर नदी या तालाब पर जाकर जल को अंदर करने का घर बनाकर उस पर दिया जलाया जाता है. व्रत करने वाले जल में स्नान कर डालो को उठाकर सूर्य और छठ माता को अर्घ देते हैं. प्रिया के बाद लोग अपने-अपने घरों को जाते हैं तो रात भर जागरण करते हैं. सुबह ब्रह्म मुहूर्त में पुनः उसी जगह पर जाकर व्रत करने वाले सुबह सूर्य उगते सूर्य को अर्घ्य देते है. अंकुरित चना लेकर छठ छठ व्रत की कथा कहीं और सुनी जाती है .

छठ पूजा में अर्घ्य देने का वैज्ञानिक महत्व

यह बात सभी को मालूम है कि सूरज की किरणों से शरीर को विटामिन डी मिलती है और उगते सूर्य की किरणों के फायदेमंद और कुछ भी नहीं. इसीलिए सदियों से सूर्य नमस्कार को बहुत लाभकारी बताया गया. वहीं, प्रिज्म के सिद्धांत के मुताबिक सुबह की सूरत की रोशनी से मिलने वाले विटामिन डी से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बेहतर होती है और स्किन से जुड़ी सभी परेशानियां खत्म हो जाती हैं.