भारतीय सेना ऐसे हल्के लेकिन बेहद मजबूत मॉडर्न टेक्नोलॉजी से लैस टैंक ‘जोरावर’ खरीदने जा रही है, जो हजारों किलोमीटर की ऊंचाई पर दुर्गम पर्वतीय क्षेत्रों सहित हर जगह और सभी मौसम में दुश्मन के दांत खट्टे कर सके। चीन के साथ उत्तरी सीमा पर सैन्य गतिरोध, भविष्य की चुनौतियों और लड़ाईयों को देखते हुए यह कदम उठाया गया है। दरअसल, चीन के साथ पूर्वी लद्दाख में 2 साल से भी अधिक समय से चले आ रहे सैन्य गतिरोध के दौरान सेना ने मौजूदा टैंकों के साथ चीन को करारा जवाब दिया। हालांकि, उसे ऐसे हल्के लेकिन मजबूत और अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी से लैस टैंक की कमी बहुत अधिक खली जिसे ऊंचाई वाले दुर्गम क्षेत्रों में आसानी से ले जाकर तुरंत तैनात किया जा सके।
दूसरी ओर चीनी सेना इस तरह के हल्के टैंकों से लैस है जिन्हें पहाड़ों पर आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जा सकता है। इसे देखते हुए सेना भी इस कमी को दूर करने की योजना पर आगे बढ़ रही है। चीन और पाकिस्तान के दो मोर्चों से एक साथ उत्पन्न होने वाली चुनौती, भविष्य के खतरों, दुनिया भर में अलग-अलग जगहों पर चल रहे सैन्य संघर्षों का सेना बारिकी से अध्ययन कर रही है। इससे मिली सीख के आधार पर सेना भविष्य की सुरक्षा चुनौतियों और खतरों से निपटने के लिए दूरगामी रणनीति की तहत तैयारी कर रही है। इसी कड़ी में वह ‘जोरावर’ टैंक के साथ-साथ स्वार्म ड्रोन, टैंक रोधी निर्देशित मिसाइल, अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी से लैस फ्यूचर रेड़ी कॉम्बेट व्हीकल और मैकेनाइज्ड इंफेन्ट्री की क्षमता विकसित करने पर भी विशेष ध्यान दे रही है।
रक्षा सूत्रों का कहना है कि सेना ने ‘जोरावर’ टैंक का डिजायन तैयार कर लिया है और उसे इसकी खरीद के लिए सरकार की ओर से हरी झंडी भी मिल गई है। इन टैंकों की खरीद रक्षा खरीद प्रक्रिया 2020 की मेक इन इंडिया श्रेणी के तहत आत्मनिर्भर भारत की अवधारणा को ध्यान में रखते हुए की जाएगी। इस टैंक को बनाने के लिए घरेलू रक्षा उद्योग से संपर्क कर सेना की ओर से डिजायन टैंक बनाने को कहा गया है। यह टैंक भारतीय सेना की जरूरतों व भौगोलिक क्षेत्रों के अनुरूप तो होगा। साथ ही में यह अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी जैसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता यानि आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस, ड्रोन, बचाव प्रणाली और खतरों को भांपने की प्रौद्योगिकी से भी लैस होगा।
सूत्रों का कहना है कि थल सेना के लिए टैंक सबसे प्रमुख हथियार है जिसके बल पर जंग का रूख बदला जा सकता है। हालांकि, अब बदली हुई परस्थितियों में ऐसे टैंक की जरूरत है जिसे हमला करने के साथ साथ दुश्मन के टैंकों और अन्य हथियारों के साथ-साथ अदृश्य हवाई खतरों जैसे ड्रोन आदि से भी सुरक्षा की जरूरत होगी।
उन्होंने कहा कि जो दुश्मन और हथियार दिखाई देता है उससे बचा जा सकता है, लेकिन अदृश्य और अचानक प्रकट होने वाले हवाई खतरों से बचने के लिए इन टैंकों को बचाव का कवच पहनाना होगा। सेना चाहती है कि ‘जोरावर’ उसके पास मौजूद सभी टैंकों का मिश्रण हो जो हल्का भले ही हो, लेकिन मजबूती में उसका कोई सानी न हो। उसकी मारक क्षमता के सामने दुश्मन घुटने टिका दे। स्वदेशी टैंक पर जोर देने का एक कारण यह भी है कि यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध से उत्पन्न हालातों में इन देशों से टैंकों के कलपुर्जों व उपकरण की आपूर्ति प्रभावित हो रही है। अगर हमारे पास स्वदेशी टैंक होंगे तो हमें इस तरह की दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ेगा।
जोरावर का नाम भारत के प्राचीन समय के सेनानायक जोरावर सिंह कहलुरिया के नाम पर रखा गया है जिन्होंने लद्दाख, तिब्बत , बाल्टिस्तान और स्कर्दू आदि को जीता था। दुनिया भर में विभिन्न अभियानों और हमारे सीमावर्ती क्षेत्रों में ड्रोन के बढ़ते इस्तेमाल को देखते हुए भारत भी अपनी सेना को अत्याधुनिक ड्रोन हथियार प्रणाली से लैस करने की दिशा में बढ रहा है। सेना स्वार्म ड्रोन प्रणाली के महत्व और इसके इस्तेमाल को समझते हुए स्वदेशी कंपनियों से ड्रोन खरीद रही है। सभी सेनाओं को इस बात का भलीभांति अंदाजा लग गया है कि आज के दौर में ड्रोन के कारण उनकी ताकत कई गुणा बढ़ जाती है। भारतीय सेना भी इसी को ध्यान में रखकर ड्रोन प्रणाली पर विशेष जोर दे रही है।