2024 की रणनीति पर काम शुरू, निकाय चुनाव में सपा, बसपा, कांग्रेस और बीजेपी का क्या है प्लान?

यूपी में निकाय चुनाव के जरिए लोकसभा 2024 की रणनीति पर काम शुरू हो चुका है। शनिवार से पूरे प्रदेश में बीजेपी का सम्मेलन संवाद शुरू हो रहा है। इससे पहले गृह मंत्री ने 2 सभाओं को संबोधित करते हुए यह रणनीति तो तय कर दी कि उत्तर प्रदेश में सीएम योगी आदित्यनाथ की सरकार में एक भी दंगा नहीं हुआ है। शुक्रवार को कौशांबी महोत्सव और आजमगढ़ की जनसभा में गृहमंत्री शामिल हुए थे।
मित शाह ने कानून व्यवस्था के दावों के साथ प्रदेश की अन्य योजनाओं की उपलब्धियों गिनाते हुए सपा सरकार के गुंडाराज, बसपा सरकार के भ्रष्टाचार और कांग्रेस में राहुल पर हमलावर हुए। फिलहाल 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ही नहीं बसपा, सपा और कांग्रेस भी दलित वोट बैंक के दंगल में कूद पड़ी है।
यूपी में दलितों की आबादी लगभग 21.1 प्रतिशत है। यूपी की 80 लोकसभा सीटों में से 17 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। इनमें से बीजेपी ने 2019 के आम चुनाव में हाथरस सीट समेत 14 सीटों पर जीत हासिल की थी। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने दो और अपना दल ने एक सीट जीती थी।
सबसे पहले सत्ता रूढ़ पार्टी बीजेपी की बात करते है। बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने पूरे देश में दलित वोट बैंक को साधने की कवायद के तहत 75 हजार अनुसूचित जाति तथा जनजाति के घरों तक पहुंचने की कवायद में जुटी हुई है। इसके लिए यूपी बीजेपी की इकाई को भी लक्ष्य दिया गया है। दलितों में पैठ बनाकर बीजेपी अगले आम चुनाव में यूपी की 17 आरक्षित संसदीय सीटों पर अपने समीकरण दुरुस्त करना चाहती है।यूपी में दलित कनेक्ट के अभियान को दलित समुदाय में प्रभावी पैठ बनाने के लिए भाजपा की जोरदार कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। यूपी बीजेपी के मुताबिक अभी तक 75 जिलों में 15,000 गांवों में शिविर आयोजित करने के लक्ष्य पहुंचने में पार्टी कामयाब हुई है।
साल 2019 लोकसभा चुनाव के नतीजे बताते हैं कि भाजपा और उसके सहयोगियों ने दलितों के लिए आरक्षित 17 संसदीय सीटों में से 15 पर जीत हासिल की है। बीएसपी ने केवल लालगंज और नगीना जीता था। जिसने सपा के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था। उत्तर प्रदेश में भाजपा मिशन 80 सीटों का लक्ष्य लेकर आगे बढ़ रही है।बीजेपी ने पिछले चुनाव में यूपी मे 64 सीटें हासिल की थी। बाद में दो सीटों रामपुर और आजमगढ़ में उप चुनाव हुआ, जिसमें बीजेपी ने सपा को पटकनी दे दी। इस तरह बीजेपी के पास यूपी में अभी 66 लोकसभा सीटें हैं। लेकिन बीजेपी अगली बार इसे 80 तक पहुंचाना चाहती हैं इसलिए इस अभियान को इस कड़ी से बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा।
वोट बैंक को बचाए रखने की पुरजोर कोशिश कर रही है। लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव में 22% से खिसककर 12% के करीब पहुंच गया है। मायावती अखिलेश यादव और सपा पर लगातार पलटवार कर वह संदेश दे रही हैं कि इन लोगों ने हमेशा दलितों का अपमान किया है। मायावती ने कहा कि 1995 में लखनऊ का गेस्ट हाउस कांड नहीं हुआ होता तो देश में आज सपा और बसपा की सरकार होती।
मायावती ने सपा पर दलित महापुरुषों को अपमान करने का आरोप लगाया है। वरिष्ठ पत्रकार बृजेश शुक्ला ने कहा कि पिछले 15 सालों में दलित आंदोलन खत्म होता दिख रहा है। एक आंदोलन सिर्फ सड़क पर नहीं लड़ा जाता है। इसकी एक विचारधारा होती है, एक प्रतिबद्धता होती है; इसके विचारक हैं जो इसे लोगों के दिमाग में प्रचारित करते हैं।रायबरेली में बसपा संस्थापक कांशीराम की प्रतिमा का अखिलेश यादव ने अनावरण करते हुए लोहिया और मुलायम सिंह काशीराम की विचारधारा को एक बताया। तो वहीं इससे पहले लगभग तीन दशक के अंतराल के बाद, अखिलेश ने अक्टूबर 2021 में बाबा साहेब आंबेडकर वाहिनी नामक समाजवादी पार्टी की दलित शाखा का पुनर्गठन किया। जानकार के अनुसार, सपा का गैर-जाटव आधार 2017 के 11% से बढ़कर इस चुनाव में 23% हो गया है।
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि पासी, वाल्मीकि जैसे गैर-जाटव दलित इलाहाबाद और आजमगढ़ कमिश्नरी जैसे पॉकेट में सपा के साथ चले गए हैं। यह इंद्रजीत सरोज जैसे प्रभावशाली दलित क्षेत्रीय नेताओं के कारण संभव हुआ है। सपा की आंबेडकर वाहिनी के राज्य प्रमुख चंद्रशेखर चौधरी ने कहा,”हम दलितों को पार्टी में अधिक अवसर और स्थान प्रदान करने के लिए गांव-गांव जाएंगे।”
पूर्व सांसद बृजलाल खाबरी को यूपी कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया है। संगठन के रूप में बहुत ज्यादा मजबूती और क्षेत्र में पकड़ तो अभी तक अध्यक्ष कार्यकाल में नहीं दिखाई दी लेकिन दलित वर्ग से बृजलाल खाबरी की होने से कांग्रेस का एक दावा मजबूत है कि पार्टी की कमान दलित वर्ग के नेतृत्व में चल रही है। इससे पहले यूपी के प्रभारी और कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी ने तीन दशक के वनवास के बाद उत्तर प्रदेश में सत्ता के लिए नए सिरे से काम करने वाली कांग्रेस पार्टी भी दलितों पर ध्यान केंद्रित रही।

प्रियंका गांधी और राहुल गांधी अक्सर अत्याचार से पीड़ित यूपी के दलित परिवारों के ज़ख्मों पर मरहम लगाते नज़र आते हैं। सितंबर 2020 में एक दलित लड़की के बलात्कार और हत्या के बाद, राहुल और प्रियंका सबसे पहले हाथरस पहुंचे। प्रियंका कथित तौर पर पुलिस हिरासत में मारे गए दलित अरुण वाल्मीकि के घर भी गईं।

प्रियंका को दलित महिलाओं से गले लगते भी देखा गया। बसपा के लोग आत्मविश्वास दिखाते हुए कहते हैं कि इस बार दलित वोट विभाजित नहीं होगा बल्कि मुस्लिम और ब्राह्मण वोट भी पार्टी को मिलेगा, जैसा कि कांग्रेस के नेता मानते हैं कि इस बार हमें दलित बहुमत वोट तो मिलेगा ही साथ ही ग़ैर दलित वोट भी मिलेंगे।