महिला आरक्षण कानून से देश के सबसे बड़े सियासी सूबे उत्तर प्रदेश की राजनीति में भी बड़ा बदलाव

26 साल से पेंडिंग महिला आरक्षण बिल लोकसभा में पेश हो गया है। महिला आरक्षण कानून से देश के सबसे बड़े सियासी सूबे उत्तर प्रदेश की राजनीति में भी बड़ा बदलाव होगा। लेकिन अभी यूपी की राजनीति में महिलाएं सिर्फ सिंबोलिक दखल रखती हैं। महिलाएं सिर्फ पोस्टर तक ही सीमित हैं। बिल लाने वाली भाजपा में महिलाएं आखिरी पायदान पर हैं। पार्टी में न उनके पास पद है, न ही कोई बड़ा कद है।
यूपी भाजपा में अब तक 14 प्रदेश अध्यक्ष बने हैं, लेकिन इनमें से एक भी महिला नहीं रही है। यही नहीं, 75 जिला अध्यक्षों में भी सिर्फ 4 महिला चेहरे हैं। योगी कैबिनेट में 52 मंत्री हैं, लेकिन इनमें सिर्फ 5 महिला हैं। प्रधानमंत्री मोदी के मंत्रीमंडल में भी यूपी सिर्फ एक महिला मंत्री स्मृति ईरानी हैं।
संसद और विधानसभा में यूपी से महिलाओं की हिस्सेदारी 15 फीसदी से भी कम है। बसपा और कांग्रेस में टॉप चेहरे यानी मायावती और सोनिया गांधी को छोड़ दिया जाए तो सेकंड लाइन में यूपी में एक भी महिला लीडर नजर नहीं आती है। सपा में महिला चेहरे के नाम पर सिर्फ डिंपल यादव का नाम ही जेहन में आता है।
लोकसभा की 26 सीटें और विधानसभा में 132 सीटें महिलाओं के लिए रिजर्व हो जाएंगी
संसद में महिला आरक्षण बिल पास होने के बाद सबसे ज्यादा फायदा देश के सबसे बड़े सूबे यूपी को ही मिलेगा। कानून बनने से यूपी में लोकसभा की 26 सीटें और विधानसभा में 132 सीटें महिलाओं के लिए रिजर्व हो जाएंगी।
यूपी विधानसभा में 403 सदस्य हैं, जिनमें से अभी महज 48 महिला हैं। प्रदेश में ये संख्या कुल विधायकों की केवल 12 फीसदी है। वहीं, विधान परिषद में महिलाओं की भागीदारी सिर्फ 6 फीसदी है।
लोकसभा सीटों की बात करें तो यूपी में कुल 80 सीटें हैं, जिसमें 11 सांसद ही महिलएं हैं। इनमें से सबसे अधिक 8 महिला सांसद भाजपा के टिकट पर चुनी गईं। उत्तर प्रदेश में 14% महिला प्रतिनिधित्व है। इस तरह यूपी में विधानसभा और लोकसभा दोनों में महिलाओं की संख्या 15 फीसदी से भी कम है।
महिला आरक्षण बिल को लेकर राजनीति, सपा ने PDA, बसपा ने SC/ST मुद्दे को उछाला
महिला आरक्षण बिल से देश के सबसे बड़े सियासी सूबे में गहमागहमी भी बढ़ गई है। फिलहाल ये दो लेवल पर दिखाई दे रही है। पहला- पार्टियों में और दूसरी चुनाव में। पार्टियों में तो ये दिखाई भी देना लगा है। मुख्य विपक्षी दल सपा ने आरक्षण का समर्थन किया है, लेकिन सवाल उठाया है कि PDA का क्या होगा? बसपा ने 50 फीसदी आरक्षण की मांग की है।
पिछले साल 22 सितंबर के दिन UP विधानसभा में सिर्फ महिला सदस्यों को बोलने की आजादी मिली थी। ऐसा यूपी में पहली बार हुआ था। महिला विधायकों ने 3-3 मिनट तक अपनी-अपनी बातें सदन के सामने रखी थीं। इस दौरान सीएम योगी ने कहा था सदन में पुरुष नेताओं की बातों के पीछे कहीं महिला सदस्यों की आवाज दब जाती हैं। मगर आज सदन की कार्यवाही में महिला सदस्यों की बातें सुनकर उन्हें अपनी गलती का अहसास हो जाए। तो घर की महिलाओं से माफी मांग सकते हैं।
उस वक्त नेता प्रतिपक्ष अखिलेश यादव ने कहा था कि महिलाओं के इतने मुद्दे हैं कि एक दिन काफी नहीं है। दलगत राजनीति से ऊपर मैं कहना चाहता हूं कि अखबारों को पढ़कर हैरान होता हूं। कांग्रेस विधायक आराधना मिश्रा का कहना था कि मैं मंहगाई का मुद्दा उठा रही हूं। घर का बजट महिलाओं को संभालना होता है। तेल, गैस सब का दाम बढ़ गया है। अच्छी बात ये है कि जवाब महिलाएं दे रहीं हैं। सपा विधायक डॉ. रागिनी ने महिलाओं के साथ अपराधों के मुद्दे को उठाया था। रागिनी का कहना था कि थानों में वसूली भाई बैठे हैं। क्या जिन थानों में लापरवाही की गई, उन अधिकारियों के खिलाफ सरकार कार्रवाई करेगी?