सेमीकंडक्टर प्लांट के लिए पूंजी और टेक्नोलॉजी की व्यवस्था कर पाएंगे?

वेदांता और फॉक्सकॉन दोनों ने कहा है कि वे अपनी सेमीकंडक्टर यूनिट्स लगाने की कोशिशें जारी रखेंगी। इसके लिए दोनों नए पार्टनर की तलाश करेंगी। वेदांता ग्रुप के लिए पैसे जुटाना इतना मुश्किल रहा है कि उसे अपनी प्रतिद्वंद्वी कंपनियों से कर्ज लेना पड़ा है

सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग के लिए बहुत पैसे की जरूरत होती है। इसके अलावा इसके लिए टेक्नोलॉजी के मामले में भी विशेषज्ञता चाहिए। दुनियाभर में कंपनियों के बीच सेमीकंडक्टर यूनिट्स लगाने की होड़ मची हुई है।

इंडिया के बड़े उद्योगपति अनिल अग्रवाल के लिए यह चैलेंजिंग समय है। सेमीकंडक्टर वेंचर शुरू करने का वेदांत ग्रुप के नए और महत्वाकांक्षी प्तान को बड़ा झटका लगा है। हों है टेक्नोलॉजी ग्रुप के साथ वेदांता का समझौता टूट गया है। होन हुई को आम तौर पर फोक्सकोन के नाम से जाना जाता है। इसके बाद वेदांता ने नए पार्टनर की तलाश शुरू कर दी है। सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में उतरने के लिए वेदांता को टेक्नोलॉजी और पैसे दोनों की जरूरत है। 10 जुलाई को फोक्सकोन और वेदांता ग्रुप ने अपना जेवी खत्म करने का ऐलान किया। दोनों ने गुजरात में मैन्युफैक्चरिंग यूनिट लगाने पर 19.5 अरब डॉलर खर्च करने का प्लान बनाया था।

वेदांता और फॉक्सकॉन दोनों सेमीकंडक्टर प्लांट के लिए कोशिशें जारी रखेंगी
वेदांता और फॉक्सकॉन दोनों ने कहा है कि वे अपनी सेमीकंडक्टर यूनिट्स लगाने की कोशिशें जारी रखेंगी। इसके लिए दोनों नए पार्टनर की तलाश करेंगी। वेदांता ग्रुप के लिए पैसे जुटाना इतना मुश्किल रहा है कि उसे अपनी प्रतिद्वंद्वी कंपनियों से कर्ज लेना पड़ा है। लेकिन, सवाल है कि जब दोस्त साथ छोड़ दे तो क्या दुश्मन का दोस्ती का हाथ बढ़ाना ठीक होता है?

वेदांता और फॉक्सकॉन का जेवी टूट जाने के बाद ब्रोकरेज फर्म मोतीलाल ओसवाल ने अपनी रिपोर्ट में कार है, “हमारा मानना है कि सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले ग्लास बिजनेस की शुरुआत से वेदांता के बिजनेस पर खराब असर पड़ेगा। इसकी वजह यह है कि उसे मैन्युफैक्चरिंग यूनिट लगाने के लिए काफी पैसे की जरूरत पड़ेगी। इससे नियर टर्म में डिविडेंड देने की कंपनी की क्षमता में कमी आ सकती है।”

अपनी होल्डिंग कंपनी के जरिए वेदांता ने बनाया था ज्वाइंट वेंचर
वेदांत ग्रुप ने अपनी कंपनी ट्विन स्टार टेक्नोलॉजीज (TSTL) के जरिए यह ज्वाइंट वेंचर बनाया था। (in टीएसटीएल वॉलकन इंवेस्टमेंट्स की सब्सिडियरी है। वॉलकन वेदांता लिमिटेड की होल्डिंग कंपनी है। वेदांता और फॉक्सकॉन में से किसी के पास सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग का अनुभव नहीं है। दोनों ने किसी टेक्नोलॉजी पार्टनर की मदद लेने का प्लान बनाया था।

जेवी पर तेजी से नहीं बढ़ रहा था काम
वेदांता ग्रुप ने नए वेंचर का मालिकाना हक प्रमोटर ग्रुप की जगह इंडिया में लिस्टेड कंपनी के पास ट्रांसफर करने का फैसला किया था। इस ट्रांसफर के इस फाइनेंशियल ईयर की दूसरी तिमाही में पूरा हो जाने की उम्मीद थी। ऐसा लगता है कि यह ज्वाइंट वेंचर टूटने की एक वजह हो सकती है। फोक्सकोन ने अपने बयान में कहा है, “दोनों पक्षों का यह मानना था कि प्रोजेक्ट तेजी से आगे नहीं बढ़ रहा है। कई ऐसी मुश्किलें थी जिसका समाधान हम नहीं कर पा रहे थे। दोनों ने आपसी सहमति से इस ज्वाइंट वेंचर को तोड़ने का फैसला किया।

सेमीकंडक्टर की मैन्युफैक्चरिंग में टेक्नोलॉजी का अहम रोल
सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग के लिए बहुत पैसे की जरूरत होती है। इसके अलावा इसके लिए टेक्नोलॉजी के मामले में भी विशेषज्ञता चाहिए। दुनियाभर में कंपनियों के बीच सेमीकंडक्टर यूनिट्स लगाने की होड़ मची हुई है। इसका मतलब है कि जिन कंपनियों के पास इसके लिए टेक्नोलॉजी है, उनके लिए पार्टनर्स की कोई कमी नहीं है। वेदांता ग्रुप के नए बिजनेस में उतरने के कदम को बहुत महत्वाकांक्षी माना जा रहा था। यह ग्रुप पहले से ऑयल, माइनिंग और मेटल बिजनेस में मौजूद है। फॉक्सकॉन इलेक्ट्रॉनिक मैन्युफैक्चरिंग कंपनी है। दोनों ने मिलकर पिछले साल एक ज्वाइंट वेंचर बनाया था। लेकिन, उन्हें टेक्नोलॉजी पार्टनर तलाशने में दिक्कत आ रही थी।