श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने कहा है कि उनके देश का इस्तेमाल कभी भारत के खिलाफ नहीं किया जा सकेगा। ब्रिटेन और फ्रांस के दौरे पर रवाना होने से पहले रानिल ने कहा- इस बात में किसी को कोई शक नहीं होना चाहिए कि हम चीन से कभी मिलिट्री एग्रीमेंट नहीं करेंगे।
विक्रमसिंघे ने एक इंटरव्यू में कहा- चीन और श्रीलंका के रिश्ते मजबूत हैं, लेकिन हम ये भी साफ कर देना चाहते हैं कि हमारे देश में चीन का कोई मिलिट्री बेस नहीं हैं और न होगा। कोई भी देश श्रीलंका का इस्तेमाल भारत के खिलाफ नहीं कर सकेगा। हम देश की इकोनॉमी को भी जल्द पटरी पर ले आएंगे।
फ्रांस के मीडिया हाउस ‘फ्रांस 24’ को दिए इंटरव्यू में रानिल से ज्यादातर सवाल चीन और श्रीलंका पर ही किए गए। एक सवाल के जवाब में रानिल ने कहा- श्रीलंका न्यूट्रल कंट्री है और हमने चीन के साथ कोई मिलिट्री एग्रीमेंट नहीं किया है। ऐसा करने का कोई प्लान भी नहीं है।
भारत के बारे में पूछे गए सवाल पर श्रीलंकाई राष्ट्रपति ने कहा- हमने भारत को कई बार भरोसा दिलाया है और इस बात को मैं दोहरा रहा हूं कि हमारे देश से भारत के खिलाफ कोई खतरा पैदा नहीं होने दिया जाएगा। कोई भी देश श्रीलंका को बेस के तौर पर इस्तेमाल नहीं कर सकेगा।
चीन से जुड़े एक सवाल पर रानिल ने कहा- चीन हमारे देश में 1500 साल से है, लेकिन उसका कोई मिलिट्री बेस यहां नहीं है। ऐसा होगा भी नहीं। ये सही है कि हम्बनटोटा पोर्ट चीन के पास 99 साल की लीज पर है, लेकिन ये भी याद रखें कि इसकी सिक्योरिटी हमारी फौज के पास है। इसका इस्तेमाल सिर्फ कारोबार के लिए किया जा सकता है।
एक सवाल के जवाब में रानिल ने कहा- हम मुश्किल दौर से गुजरे हैं और अब हालात काफी बेहतर हुए हैं। भारत समेत कई देशों ने हमारी मदद की है। मुझे पूरी उम्मीद है कि श्रीलंका की इकोनॉमी बहुत जल्द पटरी पर लौट आएगी।
पिछले साल चीन का स्पाई शिप युआन वांग-5 श्रीलंका के हम्बनटोटा पोर्ट पहुंचा था। तब इससे भारतीय नौसेना और इसरो की जासूसी का खतरा बढ़ गया था। हालांकि, तब भारत ने भी जवाबी तैयारियां कर लीं थीं।
चीन का यह स्पाई शिप करीब 750 किमी दूर तक आसानी से निगरानी कर सकता है। हम्बनटोटा पोर्ट से तमिलनाडु के कन्याकुमारी की दूरी करीब 451 किलोमीटर है। जासूसी के खतरे को देखते हुए ही भारत ने श्रीलंका से इस शिप को हम्बनटोटा में एंट्री न देने को कहा था।
युआन वांग-5 को स्पेस और सैटेलाइट ट्रैकिंग में महारत हासिल है। चीन युआन वांग क्लास शिप के जरिए सैटेलाइट, रॉकेट और इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल यानी ICBM की लॉन्चिंग को ट्रैक करता है।
अमेरिकी रक्षा विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक- इस शिप को PLA की स्ट्रैटजिक सपोर्ट फोर्स यानी SSF ऑपरेट करती है। SSF थिएटर कमांड लेवल का आर्गेनाइजेशन है। यह PLA को स्पेस, साइबर, इलेक्ट्रॉनिक, इंफॉर्मेशन, कम्युनिकेशन और साइकोलॉजिकल वारफेयर मिशन में मदद करती है।
इससे पहले चीन ने 2022 में जब लॉन्ग मार्च 5B रॉकेट लॉन्च किया था, तब यह शिप निगरानी मिशन पर निकला था। हाल ही में यह चीन के तियांगोंग अंतरिक्ष स्टेशन के पहले लैब मॉड्यूल की लॉन्चिंग की समुद्री निगरानी में भी शामिल था।
हम्बनटोटा पोर्ट का निर्माण 2008 में शुरू हुआ था, जिसके लिए चीन ने श्रीलंका को 1.5 अरब डॉलर का कर्ज दिया था। इसको बनाने में चीन हार्बर इंजीनियरिंग कंपनी और चीन हाइड्रो कॉर्पोरेशन नाम की सरकारी कंपनियों ने एक साथ मिलकर काम किया था।
हम्बनटोटा पोर्ट 99 साल की लीज पर
श्रीलंका ने कर्ज न चुका पाने के बाद 2017 में साउथ में स्थित हम्बनटोटा पोर्ट को 99 साल की लीज पर चीन को सौंप दिया था। ये पोर्ट एशिया से यूरोप के बीच मुख्य समुद्री व्यापार मार्ग के पास स्थित है। जो चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव प्रोजेक्ट के लिए काफी महत्वपूर्ण है।
भारत और अमेरिका ने हमेशा ये चिंता जाहिर की है कि 1.5 अरब डॉलर की लागत से तैयार हुआ ये बंदरगाह चीन का नौसेना बेस बन सकता है। भारत के सिक्योरिटी एक्सपर्ट ने कई बार इसकी इकोनॉमिक फिजिबिलिटी पर सवाल उठाया है। साथ ही कहा है कि यह चीन की स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स स्ट्रैटजी में सही बैठता है। इसके तहत चीन जमीन के साथ ही समुद्र से भी हिंद महासागर के जरिए भारत को घेर सकता है।
यह पोर्ट पूर्व राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के शहर में है। 2008 में इसका कंस्ट्रक्शन शुरू हुआ था, लेकिन ज्यादा लागत की वजह से श्रीलंका कर्ज में डूबता गया। कर्ज न चुका पाने के बाद साल 2017 में साउथ में स्थित हंबनटोटा पोर्ट को 99 साल की लीज पर चीन को सौंप दिया था
फरवरी में रायसीना हिल्स डायलॉग में हिस्सा लेने आए श्रीलंका के विदेश मंत्री अली साब्रे ने कहा था- मुश्किल वक्त में भारत ने हमारे देश की सबसे ज्यादा मदद की और इसके लिए श्रीलंका हमेशा भारत का शुक्रगुजार और अहसानमंद रहेगा।
साब्रे ने कहा था- सच्चा दोस्त वही होता है, जो मुश्किल वक्त और खराब हालात में आपका हाथ थामे और मदद करे। भारत ने यही किया है। कुछ महीने पहले श्रीलंका दिवालिया हो गया था। इसके बाद वहां सिविल वॉर के हालात बन गए थे। इस दौर में भारत सरकार ने फूड, फ्यूल और मेडिसिन के साथ करीब 3 अरब डॉलर का फॉरेन डिपॉजिट भी अपने इस पड़ोसी को दिया था।
साब्रे ने श्रीलंका और भारत के रिश्तों को ऐतिहासिक बताते हुए कहा था- इकोनॉमिक क्राइसिस से गुजर रहे हमारे देश को सिर्फ भारत सरकार ने ही मदद नहीं दी, यहां के आम लोग भी हमारे साथ खड़े रहे। आप हमारे सच्चे दोस्त हैं। भारत ने हमारे लिए जो किया है, श्रीलंका हमेशा अहसानमंद रहेगा।
फॉरेन मिनिस्टर ने कहा- जब हम कर्ज जाल में फंसे और मुल्क दिवालिया हुआ तो भारत ने सबसे पहले मदद भेजी। ऐसा कोई दूसरा देश नहीं कर सका। आप सोचिए कि भारत ने हमें IMF से भी कर्ज दिलाया ताकि हमारी इकोनॉमी को पटरी पर लाया जा सके।