2024 के लोकसभा चुनाव में क्या चलेगा मोहन का जलवा?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चौंकाते हैं। छत्तीसगढ़ में सीएम के नाम की घोषणा के बाद उन्होंने मध्यप्रदेश में भी ऐसा ही किया। मुख्यमंत्री के लिए ऐसा अकल्पनीय नाम सामने आया, जिसकी दूर-दूर तक कहीं चर्चा भी नहीं थी। ये नाम है मोहन यादव का।
मोहन ओबीसी वर्ग से आते हैं और उज्जैन के दक्षिण से विधायक हैं। प्रधानमंत्री ने पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान से मोहन यादव का प्रस्ताव रखवाकर एक तरफ जहां सब कुछ ठीक होने का मैसेज दिया। वहीं इस नाम से उत्तर प्रदेश पर भी निशाना साधा। यूपी के लिए मोहन यादव (MY) इसलिए भी ज्यादा महत्व रखते हैं क्योंकि सुल्तानपुर जिले में उनकी ससुराल है। वह यहां आते रहे हैं। इसके अलावा पिछले लोकसभा चुनाव में वह गोंडा के प्रभारी रहे थे।
”मोदी के मोहन” 2024 के लोकसभा चुनाव में यूपी में भाजपा के लिए ट्रंप कार्ड बनेंगे। मोहन यादव के सहारे पीएम मोदी अखिलेश यादव के परिवारवाद की राजनीति पर निशाना साधेंगे। साथ ही उत्तर प्रदेश 52% OBC वोटर्स में 20% यादवों को भी यह बताएंगे कि यादव सिर्फ सपा में नहीं, BJP में भी टॉप पदों पर आ सकते हैं।
आइए जानते हैं कि मोहन यादव से यूपी में कैसे भाजपा जातीय समीकरण जोड़ेगी? किस तरह अखिलेश को सिर्फ मुस्लिमों की पार्टी साबित करने की कोशिश करेगी..?
यूपी की पूरी सियासत OBC वोट बैंक के इर्द-गिर्द घूमती है। अनुमानित आंकड़े के हिसाब से यूपी में OBC वोट बैंक करीब 52% है। इनमें सबसे ज्यादा 20% हिस्सा यादव वोट बैंक का है। इस ओबीसी समाज में 79 जातियां हैं। यादवों के बाद दूसरे नंबर पर कुर्मी समुदाय है।
CSDS के आंकड़ों के मुताबिक, राज्य की आबादी में यादवों की हिस्सेदारी 11% है, जो सपा का परंपरागत वोटर माना जाता है। गैर-यादव में ओबीसी जातियों में सबसे ज्यादा कुर्मी-पटेल 10%, कुशवाहा-मौर्या-शाक्य-सैनी 6%, लोध 4%, गडरिया-पाल 3%, कुम्हार/प्रजापति-चौहान 3 %, राजभर 2 और गुर्जर 2% हैं।
उत्तर प्रदेश में इटावा, मैनपुरी, एटा, फर्रुखाबाद, कन्नौज, आजमगढ़, फैजाबाद, बलिया, संतकबीरनगर और कुशीनगर समेत कई जिलों में यादव समाज का दबदबा रहा है। इनकी सियासत की मजबूती का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ब्राह्मण-ठाकुर की राजनीति से अलग और मायावती की दलितों की राजनीति को छोड़कर सिर्फ ओबीसी और मुस्लिमों के बल पर यादव समाज से यूपी में 5 बार मुख्यमंत्री रहे हैं।
भारतीय जनता पार्टी अखिलेश यादव को सिर्फ मुस्लिम वोट बैंक तक समेट देना चाहती है। यादवों को अपनी ओर आकर्षित करने के साथ-साथ कुर्मी समुदाय, मल्लाह-निषाद, लोध समुदाय, राजभर, मौर्या समेत 78 ओबीसी जातियों को अपनी ओर लाना चाहती है।
2012 में 224 सीटें जीतने वाली सपा सिर्फ 47 सीटों पर सिमट गई, जबकि 47 सीटें जीतने वाली भाजपा 324 सीटों पर पहुंच गई। CSDS के मुताबिक, यूपी की तमाम ओबीसी जातियों में यादव वोटर्स की हिस्सेदारी करीब 20% है। यूपी की कुल 11 प्रतिशत यादव आबादी के 90 प्रतिशत वोट समाजवादी पार्टी को पड़ते हैं। मोदी के मोहन अब इसी वोट बैंक के लिए ट्रंप कार्ड बनाए गए हैं।
BJP ने MY यानी मोहन यादव को मध्य प्रदेश की कमान सौंप इस पर मुहर लगा दी है कि वह यादवों को सत्ता में हिस्सेदारी देकर इस वोट बैंक को अपने साथ लाने की कवायद कर रही है। यह तो बड़े पद की बात है। लेकिन बीजेपी का यह प्लान कई दिनों से चल रहा था।
उत्तर प्रदेश में यादव समाज 80 के दशक से ही बहुत जागरूक और सत्ता में हिस्सेदारी में रहा है। यही कारण है कि अखिलेश के सत्ता से बाहर होने के बाद से यादव समाज फिर सत्ता में हिस्सेदारी तलाशने लगा। भाजपा ने इसे अवसर बनाया। 2017 से ही यादवों में पकड़ मजबूत करने की कोशिश शुरू कर दी।
UP में इस समय खेल मंत्री गिरीश चंद्र यादव हों या राज्य सभा सांसद हरनाथ सिंह यादव, ये यादव समाज में भाजपा के बड़े चेहरे हैं। आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव में भाजपा दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ को मैदान में उतारा। उन्होंने अखिलेश परिवार के सबसे खास धर्मेंद्र यादव को चुनाव में हराया। अब मोहन यादव के साथ-साथ यूपी में भाजपा इन्हीं बड़े चेहरों के साथ 24 के चुनाव में उतरेगी ओर यादव वोट बैंक में और सेंध लगाने की कोशिश करेगी।
अपना दल की अनुप्रिया पटेल, ओम प्रकाश राजभर और संजय निषाद का पार्टी के साथ गठबंधन इसी स्ट्रेटजी का हिस्सा है। इस प्रयोग से भाजपा 20% सवर्ण, 32% गैर यादव ओबीसी, 11% गैर जाटव दलितों को अपनी ओर खींचने की कोशिश करेगी। इसी के आधार पर लोकसभा चुनाव में 80 सीटों पर जीत का लक्ष्य रखा है।