जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव में अधिक से अधिक अपनों को जिताने की होड़ में एक बार सपा प्रसपा का अघोषित तालमेल दूसरे दलों के लिए मध्य व पश्चिमी यूपी में चुनौती बन सकता है। परिवार की प्रतिष्ठा बचाने के लिए साथ आकर यह दोनों दल मुलायम बेल्ट में भाजपा को काफी हद तक रोकने में कामयाब रहे। अगर यह अंदरखाने का तालमेल यूं जारी रहा तो अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव व उनके चाचा शिवपाल यादव साथ आएं तो हैरत नहीं।
अब पंचायत अध्यक्ष चुनाव में सपा के सामने भाजपा से निपटना बड़ी चुनौती है। कई जगह निर्दलीय ही निर्णायक स्थिति में हैं। माना जा रहा है कि निर्दलीयों में शिवपाल यादव समर्थक भी काफी हैं। इनका समर्थन मिलने पर भाजपा की चुनौती से निपट सकती है। इटावा, मैनपुरी, औरया, कन्नौज, फिरोजाबाद जैसे मुलायम परिवार के प्रभाव वाले इलाकों में बरसों से सपा का प्रभुत्व रहा है।
इटावा में तो वर्ष 1989 से अध्यक्षी मुलायम परिवार या उनके नजदीकियों के पास रही है। अब इन सब इलाकों में अपना अध्यक्ष बनवाने के लिए जल्द होने वाली सियासी होड़ में सपा का साथ प्रसपा दे सकती है। जिला पंचायत सदस्य के चुनाव में दोनों के साथ आने का प्रयोग कामयाब रहा है। मुलायम परिवार से बगावत कर भाजपा खेमे से लड़ने वाले इसी तालमेल से हार गए। यही प्रयोग अब अध्यक्षी चुनाव में दोहराने की तैयारी है।
वैसे सपा पश्चिमी यूपी में रालोद के साथ भी तालमेल कर बेहतर परिणाम ले आई। अब अनुकूल नतीजे आने पर परिवार की ओर से दोनों दलों पर साथ आने का दबाव बने तो आश्चर्य नहीं। सपा इन नतीजों से उत्साहित है और इसलिए अगले साल होने वाली चुनावी जंग में आपसी विवाद के चलते नुकसान का जोखिम नहीं लेगी। पिछले विधानसभा चुनाव पारिवारिक कलह से पार्टी को खासा नुकसान हो चुका है। इसके बाद लोकसभा चुनाव में सपा को पांच सीट मिल पाई तो शिवपाल की पार्टी भी कुछ खास नहीं कर पाई। हालांकि प्रसपा के कारण सपा जरूर फिरोजाबाद लोकसभा सीट हार गई थी।