सूडान के लोग देश छोड़ने को क्यों हुए मजबूर, जानिए वजह

15 अप्रैल से शुरू हुए सूडान के सिविल वॉर का असर बहुत जल्द सॉफ्ट ड्रिंक इंडस्ट्री समेत कई बड़ी मैन्युफेक्चरिंग यूनिट्स पर पड़ सकता है। इसकी वजह एक खास तरह की गोंद या गम है। इसे एकेसिया गम कहा जाता है।

कोक और पेप्सी जैसे सॉफ्ट ड्रिंक्स मेकर ने साफ कर दिया है कि अगर यह जंग नहीं रुकी तो 3 से 6 महीने में सप्लाई बंद हो सकती है। इसके अलावा ड्रग इंडस्ट्री पर भी इसका असर पड़ सकता है। दुनिया में इस्तेमाल होने वाला कुल अरेबिक गोंद का 66% सूडान में ही पैदा होता है।
कोक और पेप्सी जैसे मल्टीनेशनल ब्रांड्स में सूडान और अफ्रीका के इस हिस्से में आने वाले कुछ देशों का गोंद इस्तेमाल होता है। अगर जंग इसी रफ्तार से जारी रहती है तो इसका असर इन ब्रांड्स की सप्लाई पर पड़ना तय है।
इस गम का इस्तेमाल सॉफ्ट ड्रिंक के फ्लेवर को बनाए रखने में होता है। इसके अलावा सॉफ्ट ड्रिंक्स के कलर और हर सिप के टेस्ट को बनाए रखने में भी इसका अहम रोल होता है। च्यूइंग गम और सॉफ्ट कैंडी में यही गोंद इस्तेमाल किया जाता है।
इसके अलावा वॉटरकलर पेंट्स, टाइल्स की शाइनिंग, प्रिंट मेकिंग, ग्लूज, कॉस्मेटिक्स, फार्मास्युटिकल्स, वाइन, शू पॉलिश क्रीम और कुछ रोजमर्रा के प्रोडक्ट्स में भी यही गम काम आता है।
सूडान की GDP का 70% इसी गम या गोंद से आता है। इससे भी बड़ी बात यह है कि UN की एक स्पेशल एक्सपर्ट टीम इस गोंद की पैदावार बढ़ाने के लिए कई साल से काम कर रही है। इतना ही नहीं इससे 20% के करीब प्रोडक्शन बढ़ा भी है।
चाड, नाइजीरिया, सेनेगल और माली में भी इस नैचुरल गम के पेड़ पाए जाते हैं।
चाड, नाइजीरिया, सेनेगल और माली में भी इस नैचुरल गम के पेड़ पाए जाते हैं।
इन देशों में पाया जाता है ये गम

सूडान में तो इस गोंद का उत्पादन होता ही है। इसके अलावा इसी जोन में आने वाले अफ्रीकी देशों मसलन- चाड, नाइजीरिया, सेनेगल और माली में भी इस नैचुरल गम के पेड़ पाए जाते हैं। इस एकेसिया गम के अलावा इसका एक और रूप भी सूडान के कोरडोफेन रीजन में पाया जाता है। इस गोंद का नाम ही कोरडोफेन गम पड़ गया है।
दिक्कत यह है कि 15 अप्रैल को सूडान में सिविल वॉर शुरू होने के बाद इस गोंद की पैदावार तो पहले की तरह हो रही है, लेकिन दारफुर और खारतूम के रास्ते बंद हो चुके हैं, लिहाजा एक्सपोर्ट मुमकिन नहीं है।
इस बिजनेस से जुड़े एक कारोबारी हमीदी कहते हैं- यह गोंद दूरदराज के रेगिस्तानी इलाके में होता है। वहां के लोगों से बड़े कारोबारी इसे खरीदते हैं और फिर इसे दुनिया के हर हिस्से में एक्सपोर्ट करते हैं। अब अगर कोई इसे शहरों तक लाने की कोशिश करता है तो उसकी जान भी जा सकती है। इस गोंद के पेड़ करीब 5 लाख स्कवायर किलोमीटर में फैले हैं।
ट्रेड और डेवलपमेंट से जुड़े UN के एक एक्सपर्ट ने कहा- अगर जंग बंद नहीं हुई, हालात नहीं सुधरे तो यकीन मानिए कि दुनिया पर इसका जबरदस्त असर होगा। आखिर किसी न किसी तौर पर यह गोंद कई बेहद जरूरी चीजों को बनाने में इस्तेमाल होता है। इसलिए हम सभी पक्षों से अपील कर रहे हैं कि किसी तरह इस जंग को खत्म कराइए। उम्मीद है यह काम जल्द होगा।
यूनाइटेड नेशन्स (UN) के मुताबिक, लड़ाई के चलते इलाकों में पानी और बिजली की सप्लाई रुक गई है। लोगों को खाने के लिए भोजन भी नहीं मिल रहा है। इसके चलते करीब 20 हजार लोगों ने देश छोड़ दिया है। इनमें से ज्यादातर महिलाएं और बच्चे हैं। इन्होंने पड़ोसी देश चाड में शरण ली है।
सूडान में मिलिट्री और पैरामिलिट्री के बीच वर्चस्व की लड़ाई है। 2019 में सूडान के तत्कालीन राष्ट्रपति ओमर अल-बशीर को सत्ता से हटाने के लिए लोगों ने प्रदर्शन किया।
अप्रैल 2019 में सेना ने राष्ट्रपति को हटाकर देश में तख्तापलट कर दिया, लेकिन इसके बाद लोग लोकतांत्रिक शासन और सरकार में अपनी भूमिका की मांग करने लगे।
इसके बाद सूडान में एक जॉइंट सरकार का गठन हुआ, जिसमें देश के नागरिक और मिलिट्री दोनों का रोल था। 2021 में यहां दोबारा तख्तापलट हुआ और सूडान में मिलिट्री रूल शुरू हो गया।
आर्मी चीफ जनरल अब्देल फतह अल-बुरहान देश के राष्ट्रपति और RSF लीडर मोहम्मद हमदान डागालो उपराष्ट्रपति बन गए। इसके बाद से RSF और सेना के बीच संघर्ष जारी है।
सिविलियन रूल लागू करने की डील को लेकर मिलिट्री और RSF आमने-सामने हैं। RSF सिविलियन रूल को 10 साल बाद लागू करना चाहती है, जबकि आर्मी का कहना है कि ये 2 साल में ही लागू हो जाना चाहिए।