क्यों डराना चाहते हैं रूस के राष्ट्रपति पुतिन, यूक्रेन से ज़्यादा पश्चिमी देशों को

यूक्रेन की सीमा पर हज़ारों रूसी सैन्य टुकड़ियों की तैनाती, एक ऐसे समय में जब अमेरिकी समुद्री जहाज़ कथित तौर पर ब्लैक सी की तरफ़ बढ़ रहे थे और रूस के विदेश मंत्री ने “उनके अपने भले के लिए” दूर रहने को कहा था.

जैसे-जैसे तीखी बयानबाज़ियां तेज़ हो रही हैं और सेना की गतिविधि बढ़ रही है, पश्चिम के राजनेताओं को खुले आक्रमण से डर लग रहा है और वो पुतिन से “तनाव कम करने” की अपील कर रहे हैं.

रूस ने इससे इनकार कर दिया है.

रूस ने कहा कि उनकी प्रतिक्रिया यूरोप में “डराने वाली” नैटो एक्सरसाइज़ के जवाब में दी गई. लेकिन इसके बाद पुतिन को व्हाइट हाउस से एक फ़ोन आया.
“बाइडन ने पहल की”

पत्रकार कोस्टैटिन ईगर्ट कहते हैं, “पुतिन के इस ख़तरनाक खेल में पहली पहल बाइडन ने की.” अमेरिकी राष्ट्रपति ने “आने वाले महीनों में” मिलने की बात की.

अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा पुतिन को “एक हत्यारा” बताने वाले बयान के कुछ ही दिनों बाद ये सब हुआ.

राष्ट्रपति बाइडन के इस कदम पर अब बहस हो सकती है, हो सकता है उन्होंने किसी अनहोनी को रोकने के लिए ऐसा किया हो या हो सकता है ये कदम ग़लत हो.

लेकिन सच यही है कि किसी समिट में मिलने से पहले इस तरीके की बातचीत रूस द्वारा कोई बड़ी सैन्य कार्यवाई की संभावना को कम कर देगी.

बीबीसी से बात करते हुए ईगर्ट कहते हैं, “ये किसी भी राजनेता के लिए सही नहीं होगा, ये बाइडन के मुंह पर तमाचा होगा.”

“लेकिन बाइडन का मिलने के लिए कहना पुतिन को बढ़त देता है.”

सैनिक नहीं, सिग्नल भेजने की तैयारी

कम से कम रूसी सरकारी चैनल तो ऐसा ही सोचता है. राजनीति पर प्रोग्राम करने वाले प्रेज़ेटर और गेस्ट दोनों की रूस के शक्ति प्रदर्शन की तारीफ़ कर रहे हैं और अपने देश को बता रहे हैं कि अमेरिका और नैटो का सामना करने के लिए वो तैयार हैं.

सीनेटर कोन्स्टैटिम कोशाचेव ने कई जगहों पर कहा कि “अमेरिका समझ चुका है कि मिलिट्री में रूस से बड़ा होना मुमकिन नहीं है” और दोनों देशों को बातचीत की तरफ़ वापस जाना होगा.

रूस का सैन्य मूवमेंट एक ऐसे देश की कहानी बयां कर रहा है जो दूसरे देशों की पसंद बनने की ख्वाहिश छोड़ चुका है और अब चाहता है कि पश्चिम के देश उससे डरें.

सात साल पहले जब पुतिन ने यूक्रेन में सेना भेजी थी, तो बहुत खुफ़िया तरीके से भेजी थी और वो आज भी इस बात से इनकार करते हैं कि उन्होंने ऐसा कुछ किया था.

लेकिन इस बार रूस सेना भेजने के संकेत मज़बूती से दे रहा है.

काउंसिल ऑफ इंटरनेशनल अफ़ेयर्स ऑफ रशिया के आंद्रे कोर्तूनोव कहते हैं, “मुझे लगता है कि ये बहकाने की कोशिश है.”

बड़ी हार का ख़तरा

जानकार यूक्रेन द्वारा पूर्वी यूक्रेन में सेना की तैनाती की ओर इशारा करते हुए कहते हैं कि रूस नहीं चाहता है यूक्रेन रूस समर्थित सेना के कंट्रोल वाले इलाके को वापस लेने की कोशिश करे.

एस वरिष्ठ सैन्य सूत्र ने मुताबिक इस तरह की सैन्य कार्यवाई “यूक्रेन के अंत की शुरुआत” होगी जिसकी सरकार में “मचिस की डिब्बियों” से खेलते बच्चे हैं.

अभी रूस के पास हस्तक्षेप का एक बहाना है. करीब 5 लाख लोग जो स्वघोषित “पीपल्स रिपब्लिकस” ऑफ़ डोनेत्सक एंड लूगांक्स, जो पूर्वी उक्रेन में हैं, उन्होंने 2014 में लड़ाई की शुरुआत के बाद से रूस का पासपोर्ट ले लिया है.

कोर्तुनोव बताते हैं, “मुझे लगता है कि क्रेमलिन के लिए इन ‘गणराज्यों’ के बचाव में नहीं आना मुश्किल होगा, क्योंकि उन्हें एक बड़ी हार का ख़तरा है.”

उनका कहना है कि अमेरिका और यूरोप के समर्थन से यूक्रेन की सेना पहले से मज़बूत हो गई है. लेकिन उन्हें अभी भी संदेह है कि पुतिन हस्तक्षेप की योजना बना रहे हैं.

कोर्तुनोव कहते हैं, “मुझे नहीं लगता है कि क्रेमलिन यूक्रेन संकट में प्रत्यक्ष सैन्य भागीदारी से लाभ उठा सकता है. मुझे लगता है कि रूसी नीति यथास्थिति बनाए रखने पर अधिक केंद्रित है और यह मानते हुए कि यूक्रेन अपनी बढ़ती समस्याओं और थकान से फंस जाएगा.”

वाशिंगटन को एक संदेश

अमेरिका के लिए ये कोई बहुत बड़ी चेतावनी नहीं है कि रूस को अभी भी ये लगता है कि उसे पड़ोसी के मामलों में दिलचस्पी दिखानी चाहिए और वो यूक्रेन के नैटो से जुड़ने की महत्वकांक्षाओं के ख़िलाफ़ है.

लेकिन कुछ लोगों को इसमें एक और लक्ष्य दिखता है – कोशिश है कि बाइडन की ओर से कड़े प्रतिबंधों से बचा जा सके.

विदेश मामलों के जानकार मिखाइल त्रोइतस्की के मुताबिक “रूस ये दिखाना चाहता है कि अगर उसे नुकसान होगा तो वो भी नुकसान पहुंचाने की क्षमता रखता है, अगर ये गैर जिम्मेदाराना है तब भी और अगर इसके कारण अधिक प्रतिबंध लग जाएं तब भी.”

“मुझे लगता है इस तनाव के पीछे की वजह यही है, जो खतरनाक है और काबू के बाहर भी जा सकती है.”

एक खूनी ऑपरेशन

रूस के सरकारी चैनल पर “फ़ासीवाद” यूक्रेन पर जारी बहस के बावजूद इस बात की उम्मीद कम ही लग रही है कि रूस जो कोविड-19, प्रतिबंधों और तेल की गिरती कीमतों के नुकसान से जूझ रहा है, वो एक जंग चाहता है.

पुतिन के इरादे अगले हफ्ते तब साफ हो सकते हैं जब वह अपने वार्षिक “स्टेट ऑफ द नेशन” भाषण को देते हैं – एक मंच जिसका इस्तेमाल वह अक्सर पश्चिम के खिलाफ बोलने के लिए करते हैं.

लेकिन जो बाइडन की कॉल ने उन्हें इस विशेष लड़ाई से बाहर निकलने का मौका दिया है. ईगर्ट कहते हैं “मुझे लगता है कि पुतिन ने ध्यान आकर्षित किया है, खुद को न केवल यूरोप की बल्कि अमेरिकी प्रशासन की सुर्खियों खड़ा कर लिया है. वह उन्हें डराने में कामयाब रहे और वह ऐसा करना वो पसंद करते हैं.”

मिखाइल ट्रॉट्सकी भी इससे सहमत हैं. “अगर रूस महत्वपूर्ण हितों को प्रभावित करने वाले अमेरिकी प्रतिबंधों को अपने लिए ख़तरे की तरह नहीं देखता,तो वह सीमा से सैनिकों को वापस बुलाने पर विचार कर सकता है”

“चीजों को शांत करने का एक और तरीका है- क्लाइमैक्स तक पहुंचना है, जैसा कि क्यूबा मिसाइल संकट में हुआ था. लेकिन इसकी उम्मीद कम ही है