आजादी के बाद पहली बार आखिर क्यों आई लोकसभा स्पीकर के लिए चुनाव की नौबत, कितना पावरफुल होता है ये पद आइये जानते है ?

लोकसभा अध्यक्ष को लेकर सत्तापक्ष और विपक्ष में सहमति नहीं बन पाई है. इसी के साथ यह साफ हो गया है कि स्पीकर पद के लिए चुनाव कराया जाएगा. 72 साल में यह पहला मौका है जब स्पीकर को लेकर चुनाव होने जा रहा है. अब तक पक्ष और विपक्ष के बीच सहमति से लोकसभा अध्यक्ष का चयन होता रहा है. सरकार इस परंपरा को टूटने के लिए विपक्ष को कुसूरवार ठहरा रही है. वहीं, विपक्ष का कहना है कि उसे डिप्टी स्पीकर पद नहीं दिया जा रहा था, इसलिए बात बिगड़ गई.

बिरला की जीत लगभग तय

भाजपा के नेतृत्व वाले NDA ओम बिरला को अपना उम्मीदवार बनाया है. भाजपा सांसद ओम बिरला ने नॉमिनेशन फाइल कर दिया है. सहमति न बनने के बाद विपक्षी इंडिया गठबंधन ने कांग्रेस सांसद कोडिकुन्निल सुरेश को उम्मीदवार घोषित किया है. कांग्रेस लीडर सुरेश 8 बार के सांसद हैं. उन्होंने नामांकन पत्र दाखिल कर दिया है. दरअसल, इस चुनाव के माध्यम से विपक्ष शक्ति प्रदर्शन की तैयारी में है. उसने निर्दलीय सांसदों को अपने पक्ष में लाने की कवायद शुरू कर दी है. विपक्ष के 237 सांसद हैं और इनमें तीन निर्दलीयों का समर्थन शामिल है. जबकि NDA के पास पूर्ण बहुमत है. उसे 292 सांसदों का समर्थन प्राप्त है. ऐसे में ओम बिरला का स्पीकर चुना जाना लगभग तय है.

कल सुबह होना है चुनाव

कल यानी बुधवार सुबह 11 बजे लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए वोटिंग होगी. कल जिस उम्मीदवार को लोकसभा में मौजूद आधे से ज्यादा सांसदों का वोट हासिल होगा, वह लोकसभा अध्यक्ष बन जाएगा. विपक्ष का कहना है कि राजनाथ सिंह ने कहा था कि डिप्टी स्पीकर पद को लेकर आपको बताएंगे, लेकिन उनका कोई फोन नहीं आया. ऐसे में उसके पास चुनाव के सिवा कोई और चारा नहीं था. कांग्रेस लीडर सुरेश के नामांकन पत्र में इंडिया ब्लॉक के सहयोगी डीएमके, शिवसेना (उद्धव), शरद पवार (एनसीपी) और अन्य प्रमुख दलों ने हस्ताक्षर किए हैं. लेकिन TMC हस्ताक्षर नहीं किए हैं. क्योंकि शायद अभी तक ममता बनर्जी ने इस पर सहमति नहीं जताई है. अब तक स्पीकर को लेकर आम सहमति बनती रही है. विपक्षी दल से जुड़ा नेता को डिप्टी स्पीकर बनाया जाता रहा है.

कार्रवाई का होता है अधिकार

चलिए अब यह भी जान लेते हैं कि आखिर लोकसभा स्पीकर के पास ऐसे कौन से अधिकार होते हैं कि सत्ता और विपक्ष इस पद के लिए चुनावी जंग लड़ने को तैयार हैं. इससे पहले यह भी जानना जरूरी है कि लोकसभा अध्यक्ष किसी मुद्दे पर अपनी राय घोषित नहीं करते. इसी तरह, वोटिंग की स्थिति में वह वोट भी नहीं देते, लेकिन यदि वोट बराबर रहे तो कुछ स्थिति में उन्हें निर्णायक वोट देने का अधिकार है. स्पीकर की शक्ति की बात करें, तो पूरी लोकसभा उनके आदेश पर चलती है. उनके पास कई अधिकार होते हैं. उदाहरण के तौर पर यदि उन्हें किसी सांसद का व्यवहार सदन के अनुकूल नहीं लगता है, तो उसे निलंबित कर सकते हैं, नियमों के अनुसार दंडात्मक कार्रवाई कर सकते हैं.

समितियों की कमान भी पास

सदन में अविश्वास प्रस्ताव पेश करने से पहले स्पीकर की अनुमति आवश्यक है. लोकसभा में कौनसा सांसद कहां बैठेगा यानी कि सीट अरेंजमेंट का फैसला भी स्पीकर ही लेता है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सदन की जितनी भी समितियां होती हैं, उन्हें अध्यक्ष के हिसाब से कार्य करना होता है. इन सभी समितियों का गठन अध्यक्ष और सभा द्वारा किया जाता है. अध्यक्ष की अनुमति के बिना संसद भवन में किसी भी तरह का कोई बदलाव नहीं किया जा सकता. लोकसभा स्पीकर को सांसद वाली सैलरी और सुविधाएं मिलती हैं.

रिपोटर – अर्पित यादव