बकरीद पर क्यों दी जाती है बकरे की कुर्बानी? कैसे मीठी ईद से अलग

ईद-उल-अजहा या ईद-उल-जुहा यानि बकरीद इस साल 29 जून को मनाई जा रही है. बकरीद इस्लाम के सबसे पवित्र त्योहारों में एक है. इस्लाम में साल भर में दो ईद मनाई जाती हैं. एक को ‘मीठी ईद’ कहा जाता है. और दूसरी को ‘बकरीद’.

ईद सबसे प्रेम करने का संदेश देती है तो बकरीद अपना कर्तव्य निभाने का और अल्लाह पर विश्वास रखने का. ईद-उल-जुहा कुर्बानी का दिन भी होता है. बकरीद के दिन इसलिए बकरे या किसी अन्य पशु की कुर्बानी दी जाती है. इसे इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से आखिरी महीने के दसवें दिन मनाया जाता है.

कब मनाई जाती है बकरीद?
धू-अल-हिजाह जो इस्लामिक कैलेंडर का आखिरी महीना होता है, उसके आठवें दिन हज शुरू होकर तेरहवें दिन खत्म होता है. और ईद-उल-अजहा यानी बकरीद इसी के बीच में इस इस्लामिक महीने की 10 तारीख को मनाया जाता है.

ग्रेगोरियन यानी हमारे अंग्रेजी के कैलेंडर के हिसाब से यह तारीख हर साल बदलती रहती है, क्योंकि चांद पर आधारित इस्लामिक कैलेंडर, अंग्रेजी कैलेंडर से 11 दिन छोटा होता है.

क्यों मनाई जाती है बकरीद?
यह हजरत इब्राहिम के अल्लाह के प्रति अपने बेटे इस्माइल की कुर्बानी की याद में मनाया जाता है. यह इस वाकये को दिखाने का तरीका है कि हजरत इब्राहिम अल्लाह में सबसे ज्यादा विश्वास करते थे. दरअसल अल्लाह पर विश्वास दिखाने के लिए उन्हें अपने बेटे इस्माइल की बलि देनी थी. जैसे ही उन्होंने ऐसा करने के लिए अपनी तलवार उठाई, दैवीय शक्ति से उनके बेटे की बजाए एक दुंबा (भेड़ जैसी ही एक प्रजाति) वहां पर आ गई, उनके कुर्बान करने के लिए.

आज इसी कहानी के आधार पर जानवर की कुर्बानी दी जाती है. इसे तीन भागों में काटा जाता है. एक भाग गरीबों में दान कर दिया जाता है. दूसरा भाग दोस्तों और रिश्तेदारों को दे दिया जाता है. और बचा हुआ तीसरा भाग परिवार खाता है.

दरअसल इब्राहीम से जो असल कुर्बानी मांगी गई थी वह थी उनकी खुद की थी अर्थात ये कि खुद को भूल जाओ, मतलब अपने सुख-आराम को भूलकर खुद को मानवता की सेवा में पूरी तरह लगा दो. तब उन्होनें अपने पुत्र इस्माइल और उनकी मां हाजरा को मक्का में बसाने का निर्णय लिया. मक्का उस समय रेगिस्तान के सिवा कुछ नहीं था. उन्हें मक्का में बसाकर वह खुद मानव सेवा के लिए निकल गए. इस तरह एक रेगिस्तान में बसना उनकी और उनके पूरे परिवार की कुर्बानी थी.

क्या है इसका संदेश
ईद उल अजहा के दो संदेश हैं पहला परिवार के बड़े सदस्य को स्वार्थ के परे देखना चाहिए. खुद को मानव उत्थान के लिए लगाना चाहिए ईद उल अजहा याद दिलाता है कि कैसे एक छोटे से परिवार के जरिए एक नया अध्याय लिखा गया.

बकरीद पर दी जाने वाली कुर्बानी हज के दौरान कैसे होती है
बकरीद यानि ईद-उल-अजहा पर किसी पशु की बलि भी हज के दौरान दी जाती है. लेकिन हर व्यक्ति बलि नहीं देता, नहीं अव्यवस्था फैल सकती है. इसलिए काउंटर पर अपने जानवर (भेड़, बकरी या ऊंट) के लिए पैसे जमा कर देते हैं. इसके बाद उन्हें एसएमएस के जरिए कुर्बानी की खबर दी जाती है. जिसके बाद जाकर उसका मांस ले सकते हैं.

इस कुर्बानी के लिए लाखों पशुओं की जरूरत होती है. जिसके लिए सऊदी अरब, सूडान सहित कई अफ्रीकी देशों और पाकिस्तान आदि से पशु आयात करता है.

इस ईद को कई नामों से जाना जाता है.
ईदुल अज़हा
ईद अल-अज़हा
ईद उल-अज़हा
ईद अल-अधा
ईदुज़ जुहा

मीठी ईद और बकरीद में अंतर
– बकरीद को मीठी ईद के करीब 70 दिनों बाद मनाया जाता है.
– दोनों त्योहारों में काफी अंतर है लेकिन सामाजिक रूप से एक जैसे हैं. दोनों में अल्लाह को शुक्रिया अदा किया जाता है.
– मीठी ईद पर लोग सभी को ईदी देते हैं और खूब खुशी से इस दिन को मनाते हैं. कहते हैं जंग ए बदर खत्म होने के बाद पैंगबर मोहम्मद ने ईद उ फितर का जश्न मनाया था. इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से इसे हिजरी सन भी कहते हैं. इसके मुताबिक चांद की चाल के आधार पर रमजान का महीना आता है.
– बकरीद को कुर्बानी का दिन कहते हैं. इस दिन कुछ नियमों का पालन किया जाता है.