झारखण्ड में आदिवासी राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू के स्थान पर रमेश बैस को लाने के बाद लगा कि भाजपा ओबीसी कार्ड खेल रही है। जानकार मानते हैं कि बीते विधानसभा चुनाव में जनजातीय सीटों पर पराजय ( 28 में सिर्फ दो पर जीत मिली थी) और आदिवासी मुद्दों पर पिटते मोहरे के बाद भाजपा का मन आदिवासी वोटों से ओबीसी वोटों की ओर शिफ्ट हो रहा है। इनके वोटों के महत्व को देखते हुए अब कांग्रेस भी अब ओबीसी पत्ते फेंटने लगी है। फेंटे भी क्यों नहीं आदिवासियों के ब्रांड के रूप में चर्चित इस प्रदेश में आदिवासी सिर्फ 26 प्रतिशत जबकि ओबीसी 54 प्रतिशत है। विधानसभा या लोकसभा चुनाव में अभी देर है मगर कांग्रेस अभी से इस मुद्दे को लेकर मुखर हो रही है। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की सचिव और उत्तराखंड की सह प्रभारी महगामा विधायक दीपिका पांडेय ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण की मांग पार्टी के भीतर लगातार उठा रही हैं। खुद आदिवासी समाज से आने वाले कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सह राज्य के वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव ने हेमन्त सरकार से झारखण्ड में जल्द से जल्द ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने की मांग की है।
झारखण्ड में अभी ओबीसी को मात्र 14 प्रतिशत आरक्षण का लाभ मिल रहा है। उरांव कहते हैं कि कांग्रेस हमेशा आरक्षण का पक्षधर रही है और उसी ने ओबीसी को आरक्षण देने की शुरुआत की थी। इस मसले पर उन्होंने पार्टी विधायक दल के नेता आलमगीर आलम से बात कर चुके हैं। पूर्व में उन्होंने राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन से बात भी की है। दरअसल उरांव की चिंता केंद्र की भाजपा सरकार के कदम को लेकर है। नरेंद्र मोदी की सरकार ने तकनीकी संस्थानों में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण दे दिया है। ऐसे में उनकी चाहत है कि झारखण्ड सरकार भी ओबीसी के आरक्षण का कोटा 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत करे। झारखण्ड इस मामले में पिछड़ रहा है। रामेश्वर उरांव कहते हैं कि जरूरत पड़े तो इस संशोधन के लिए सरकार कानून बनाये। ओबीसी की पहचान के लिए राज्यों को अधिकार देने के मसले पर केंद्र सरकार इसी मानसून में विधेयक लाने जा रही है। इसने ओबीसी को लेकर कांग्रेस पर दबाव और बढ़ा दिया है।
रामेवर उरांव मानते हैं कि हेमन्त सरकार में शामिल सभी दलों ने चुनाव घोषणा पत्र में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने का वादा किया था। 2019 के विधानसभा चुनाव के समय भी ओबीसी को आरक्षण का बड़ा मुद्दा था। लेकिन अब कांग्रेस इस मोर्चे पर आक्रामक रुख अपना खुद को ओबीसी का हिमायती बताना चाहती है। महागठबंधन के भीतर निर्णय के बदले मीडिया के माध्यम से हिमायती होने को प्रचारित किया जा रहा है। सवाल वोट बैंक का है। पूर्ववर्ती भाजपा की रघुवर सरकार ने भी इनकी आबादी के सर्वे का निर्देश दिया था।
1978 में मंडल आयोग और 2014 में राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण की सिफारिश की थी मगर तब की सरकारों ने इस पर ध्यान नहीं दिया। हेमन्त सोरेन के सत्ता संभालने के कुछ ही महीनों के बाद राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने तमिलनाडु और महाराष्ट्र में आरक्षण व्यवस्था और सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का अध्ययन करने के बाद झारखण्ड में ओबीसी को 50 प्रतिशत आरक्षण की सिफारिश की थी।मगर ओबीसी को इतना बड़ा ‘केक’ सरकार को हजम नहीं हो रहा था। और मामला ठंडे बस्ते में चला गया।
इधर झामुमो के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि ओबीसी के मसले पर हेमन्त सरकार गंभीरता से मंथन कर रही है। जल्द नतीजा सामने होगा। दूसरी तरफ माइलेज लेने के लिए कांग्रेस दबाव तेज करने के मूड में है।