पाकिस्तान में इमरान खान को इस वक्त सबसे पॉपुलर लीडर माना जाता है। 2018 में इमरान को सत्ता तक पहुंचाने वाली फौज और खुफिया एजेंसी ISI ही थी। उस वक्त जनरल कमर जावेद बाजवा आर्मी चीफ थे। आज इमरान सरकार गिराने का ठीकरा फौज पर ही फोड़ रहे हैं।
पाकिस्तान के इतिहास में कम से कम दो बार ऐसा हुआ जब प्रधानमंत्री ने किसी को आर्मी चीफ अपॉइंट किया हो और बाद में उसी आर्मी चीफ ने उन्हें कुर्सी से हटा दिया हो। इस मामले में जुल्फिकार अली भुट्टो और नवाज शरीफ के नाम आते हैं।
जनरल जिया उल हक को आर्मी चीफ बनाने के लिए भुट्टो ने चार सीनियर अफसरों को दरकिनार किया था। नवाज शरीफ ने मुशर्रफ को फौज की कमान देने के लिए दो सीनियरों को साइडलाइन कर दिया था। बाद में जिया और मुशर्रफ तानाशाह बन गए
1976 में जुल्फिकार अली भुट्टो वजीर-ए-आजम यानी प्रधानमंत्री थे। वैसे भुट्टो कुल चार साल (1973 से 1977) तक प्रधानमंत्री रहे थे। उस वक्त मोहम्मद जिया उल हक आर्मी रैंक में जूनियर अफसर थे। चार अफसर ऐसे थे, जो जिया से सीनियर थे। जिया तो उस वक्त कोर कमांडर भी नहीं थे। पाकिस्तान में आर्मी चीफ बनने के लिए ये जरूरी है कि उस अफसर ने कोर कमांड की हो।
बहरहाल, भुट्टो ने आर्मी रैंक्स में एक तरह से फूट डालने का जोखिम उठाया और तमाम रूल्स को ठेंगा दिखाते हुए जिया उल हक को आर्मी चीफ बना दिया। बदलते वक्त के साथ जनरल जिया और भुट्टो के रिश्ते खराब हो गए। एक साल बाद जिया ने उन्हीं जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी पर लटकवा दिया, जिन्होंने उन्हें चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ बनाया था।
परवेज मुशर्रफ के नाम से तो यंग जनरेशन भी वाकिफ है। करगिल जंग इन्हीं मुशर्रफ की वजह से हुई थी। कहते हैं, इतिहास खुद को दोहराता है। जो काम जुल्फिकार अली भुट्टो ने किया था, वही काम 1998 में परवेज मुशर्रफ ने किया। उन्होंने तेजतर्रार कमांडो ऑफिसर परवेज मुशर्रफ को चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ (COAS) बनाया। बाद में यही परवेज मुशर्रफ खलनायक बन गए और उन्होंने नवाज को कुर्सी से हटाकर मुल्क में फौजी हुकूमत कायम कर दी।
मुशर्रफ की वजह से ही नवाज को मुल्क छोड़ना पड़ा। हालांकि, ये वक्त बाद में मुशर्रफ पर भी आया। उन्हें पाकिस्तान की दो अदालतों ने गद्दार करार दिया और बाद में वो इलाज के बहाने पहले अमेरिका और फिर दुबई चले गए। हाल ही में उनकी मौत हुई है।
इमरान को सत्ता तक पहुंचाने और करीब साढ़े तीन साल सरकार चलवाने वाले जनरल बाजवा (दाएं वर्दी में) ही थे। बाद में तब के ISI चीफ लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद को पद से हटाने के मामले में इमरान और बाजवा की ठन गई। जीत बाजवा की हुई। फैज हटाए गए।
अब पछता रही है फौज
एशिया-पैसेफिक फाउंडेशन के सीनियर रिसर्चर मार्कस एंद्रियोपोलिस कहते हैं- भुट्टो और नवाज के मामलों से पाकिस्तानी सियासतदानों ने कोई सबक नहीं सीखा। इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) को फौज और ISI ने बनाया। खान इनका ही प्रोडक्ट हैं।
मार्कस के मुताबिक- नवंबर 2022 में जनरल बाजवा रिटायर हो गए। वो 6 साल आर्मी चीफ रहे। उन्हें एक्सटेंशन देने के लिए रातोंरात संविधान तक बदल दिया गया था। इसके बाद जनरल आसिम मुनीर ने फौज की कमान संभाली है। सत्ता से बेदखल होने के बाद इमरान पहले बाजवा और अब जनरल मुनीर के लिए गले की हड्डी बन चुके हैं।
मुनीर के लिए तो वक्त जनरल बाजवा से भी बुरा गुजर रहा है। इसकी वजहें भी बिल्कुल साफ हैं। सियासत में भारी उथलपुथल है। शाहबाज शरीफ 13 पार्टियों की सरकार चला रहे हैं। इकोनॉमी ऐसी कि पाकिस्तान किसी भी वक्त दिवालिया हो सकता है। इससे भी बड़ा सिरदर्द इमरान हैं। फौज और खुफिया एजेंसियों में उनके चाहने वाले कई अफसर अब भी मौजूद हैं।
9 डैशलाइन की एक रिपोर्ट के मुताबिक- इमरान सिर्फ सरकार ही नहीं, बल्कि फौज और इकोनॉमी के लिए भी खतरा बने हैं। अदालतें उनके खिलाफ सख्ती दिखाने से डर रही हैं। ज्यादातर मामलों में वो कोर्ट के सामने पेश ही नहीं होते, इसके बावजूद उन्हें गिरफ्तार नहीं किया जा सका। खान धमकी देते हैं- मुझे गिरफ्तार किया गया तो मुल्क में आग लग जाएगी।
इमरान अब हर रैली में फौज और ISI को खुला चैलेंज दे रहे हैं। रविवार को उन्होंने जनरल बाजवा के साथ ही इशारों-इशारों में वर्तमान आर्मी चीफ को भी चैलेंज दे दिया
पाकिस्तान की मीडिया रेग्यूलेट्री बॉडी पेमरा ने रविवार को खान के भाषण टेलिकास्ट करने पर रोक लगा दी। ये पहले भी हुआ था। इससे निपटने के लिए इमरान यूट्यूब चैनल पर आते हैं। उनकी सोशल मीडिया टीम हर अपडेट समर्थकों तक पहुंचाती है।
रविवार को जब इस्लामाबाद पुलिस खान को गिरफ्तार करने के लिए लाहौर में उनके जमान पार्क वाले घर पहुंची तो खान को इसकी भनक लग गई। सोशल मीडिया के जरिए समर्थकों से जमान पार्क पहुंचने की अपील की गई। भीड़ इतनी हो गई कि पुलिस को खाली हाथ लौटना पड़ा। खास बात यह है कि चंद मिनट बाद ही खान समर्थकों को संबोधित कर रहे थे, जबकि पुलिस जब पहुंची थी तब उसे बताया गया कि इमरान घर पर मौजूद नहीं हैं।
इस भाषण में उन्होंने नवाज शरीफ, शाहबाज शरीफ और आसिफ अली जरदारी को चोर-डाकू बताया। फौज और ISI के अफसरों को खुलेआम ललकारा। उन्हें गद्दार तक कह दिया। और ऐसा पहली बार नहीं हुआ। इसके पहले भी वो यही कर चुके हैं।
मार्कस कहते हैं- अक्टूबर 2022 में फौज का विरोध करने वाले जर्नलिस्ट अरशद शरीफ की कीनिया में हत्या कर दी गई थी। कहा जाता है कि इस कत्ल को अंजाम ISI ने दिया था। इमरान अरशद का नाम लेकर फौज को ब्लैकमेल करते हैं। अब फौज पूरी तरह बैकफुट पर है, और इमरान उसे चैलेंज कर रहे हैं।