दुनिया भर में क्यों बढ़ गया है खसरे का खतरा? अमेरिका भी चिंतित

हाल ही में मीजल्स के सैंकड़ों मामले सामने आने के बाद अमेरिका के न्यूयॉर्क में हेल्थ इमरजेंसी के साथ ये तीन खबरें आईं:

न्यूयॉर्क हेल्थ डिपार्टमेंट ने तीन पैरेंट्स पर एक-एक हजार डॉलर जुर्माने का समन जारी किया क्योंकि उन्होंने अपने बच्चों को खसरे का टीका लगवाने में तय तारीख से हफ्ते भर की देरी कर दी.

लॉस एंजेलिस की दो यूनिवर्सिटी में खसरे से संक्रमित एक स्टूडेंट के क्लास अटेंड किए जाने के बाद उसके संपर्क में आए सैंकड़ों लोगों के भी संक्रमित होने की आशंका के कारण उन्हें अलग रहने को कहा गया.

कैलिफोर्निया स्थित गूगल हेडक्वार्टर में खसरे से पीड़ित एक कर्मी के ऑफिस आने के बाद फैसला लिया गया कि जब तक जरूरी न हो, कर्मचारी ऑफिस छोड़कर बाहर न जाएं.

इतनी सख्ती इसलिए दिखाई गई ताकि अमेरिका में खसरे यानी मीजल्स के प्रकोप को कंट्रोल किया जा सके.

मीजल्स फ्री अमेरिका में खसरे का खतरा

अमेरिका ने 19 साल पहले खसरे का जड़ से खात्मा कर दिया था. लेकिन अब इस बीमारी के अमेरिका में तेजी से फैलने के कारण चिंता बढ़ गई है.

UNICEF की रिपोर्टअमेरिका में, 2017 और 2018 के बीच खसरे के मामलों में छह गुना इजाफा हुआ.

सेंट्रल्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन (CDC) के मुताबिक इस साल 24 अप्रैल तक अमेरिका के 22 राज्यों में मीजल्स के 695 मामले रिपोर्ट किए गए.

इस साल मार्च में आई यूनिसेफ की रिपोर्ट में दुनिया भर में खसरे के बढ़ते मामलों को लेकर चेतावनी दी गई थी. जिसमें बताया गया था कि साल 2017 के मुकाबले 2018 में 98 देशों में खसरे के ज्यादा मामले देखे गए. इन देशों में वो देश भी शामिल हैं, जिन्हें पहले खसरा से मुक्त (मीजल्स फ्री) घोषित किया जा चुका है.

रिपोर्ट बताती है:

  • अमेरिका में साल 2010 से 2017 के बीच 2,593,000 बच्चों को खसरे का टीका नहीं लग पाया.
  • फ्रांस में इस दौरान 600,000 बच्चे इस टीके को लेने से चूक गए.
  • ब्रिटेन इस लिस्ट में तीसरे नंबर पर है, जहां इन सात साल में 527,000 बच्चों को खसरे का पहला टीका नहीं मिला.

वैक्सीनेशन के विरोध में मुहिम, एंटी-वैक्सर मूवमेंट

समृद्ध देशों में इसका कारण एंटी-वैक्सर मूवमेंट है, जो वैक्सीनेशन के फायदों को नकारने के साथ ही ये गलत दावा करते हैं कि वैक्सीन लगवाना खतरनाक है.

वैक्सीन को लेकर फैलाई जाने वाली अफवाहें टीके न लगवाने की वजह बनती हैं. कुछ संगठन लोगों को जानबूझकर टीके के बारे में गलत और भ्रामक जानकारी के साथ टारगेट कर रहे हैं. इसके लिए सोशल मीडिया का भी जमकर इस्तेमाल हो रहा है.

WHO कहता है कि वैक्सीन की उपलब्धता के बावजूद टीका लगवाने से मना करना यानी वैक्सीन को लेकर झिझक टॉप 10 ग्लोबल हेल्थ चैलेंज में से एक है.

इसके कारण उन बीमारियों का प्रकोप भी बढ़ रहा है, जिनसे वैक्सीनेशन के जरिए बचा जा सकता है. यहां तक कि जो देश वैक्सीनेशन के जरिए किसी बीमारी के खात्मे के काफी करीब पहुंच चुके थे. वैक्सीनेशन से इनकार करने की प्रवृत्ति के कारण वहां उस बीमारी के मामलों में इजाफा देखा जाता है.

यूनिसेफ के एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर हेनरिएटा फोर कहते हैं, ‘मीजल्स बीमारी हो सकती है, लेकिन असल संक्रमण गलत सूचना और अविश्वास है.’

किसी बीमारी से मुक्त घोषित होने के बाद भी क्यों बरकरार रहता है खतरा?

CDC के मुताबिक अमेरिका में हालिया खसरे के प्रकोप की शुरुआत का एक कारण दूसरे देशों से हुए संक्रमण हैं. ये ऐसे होता है कि कोई यात्री, जिसे खसरे का टीका न लगा हो, ऐसे किसी देश की यात्रा करे, जहां खसरा संक्रमण की आशंका हो, वह यात्री खसरे से संक्रमित होकर लौटता है और फिर उन लोगों को प्रभावित करता है, जिन्हें टीका न लगा हो.

अगर उस व्यक्ति के संपर्क में आने वाली कम्यूनिटी में ऐसे लोगों की तादाद बेहद ज्यादा हो, जिन्हें टीका लगा है, तो मीजल्स का प्रकोप या तो होता नहीं है या फिर बहुत कम होता है.

हालांकि अगर एक बार खसरा ऐसी कम्यूनिटी में हो जाए, जिसमें वैक्सीनेशन कम हो, तो इसे फैलने से रोकना मुश्किल होता है.

बाहरी देशों की यात्रा पर जाने वाले लोगों से खसरा न फैले, इसके लिए जरूरी है कि उस देश के 95 फीसदी नागरिकों में खसरे के प्रति प्रतिरोधक क्षमता हो. लेकिन एंटी-वैक्सर मूवमेंट के नाते मीजल्स-फ्री घोषित हुए देशों की चिंता बढ़ी है.

वैक्सीनेशन कवरेज में कमी

वैक्सीनेशन खसरे से बचाव का सुरक्षित, प्रभावी और सस्ता तरीका है, लेकिन कई वजहों से वैक्सीनेशन कवरेज में कमी समस्या को बढ़ा रही है.

हेनरिएटा फोर, एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर यूनिसेफअगर हम वास्तव में इस खतरनाक बीमारी को फैलने से रोकना चाहते हैं, तो हमें गरीब और अमीर सभी देशों में हर बच्चे को खसरे का टीका देना होगा.

2017 में दुनिया भर में खसरे की पहली वैक्सीन का कवरेज 85 फीसदी रहा, यह आंकड़ा आबादी बढ़ने के बावजूद पिछले कई दशकों से स्थिर बना हुआ है. वहीं दूसरी खुराक की बात करें तो दुनिया भर में यह कवरेज और भी कम- 67 फीसदी रहा.

WHO के मुताबिक मीजल्स से प्रतिरक्षा हासिल करने के लिए कम से कम 95 फीसदी कवरेज जरूरी है.

वैक्सीनेशन कवरेज में कमी के कारण

कई देशों के मेडिकल सिस्टम अभी भी इतने मजबूत नहीं है कि साल दर साल बच्चों को टीकाकरण किया जा सके.

  • वैक्सीन की अनुपलब्धता
  • स्वास्थ्य सेवाओं में कमी
  • वैक्सीन को लेकर डर या संदेह
  • लोगों में जागरुकता की कमी

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के मुताबिक इसकी एक वजह गरीबी है. कई देशों के मेडिकल सिस्टम अभी भी इतने मजबूत नहीं है कि साल दर साल बच्चों को टीकाकरण किया जा सके. इसके अलावा जैसा पहले बताया जा चुका है. वैक्सीन को लेकर गलत दावे, संदेह, डर और जागरुकता की कमी.

कई गुना बढ़ा खसरे का खतरा

खसरे का वायरस उन बच्चों को बड़ी आसानी से प्रभावित करता है, जिन्हें खसरे का टीका नहीं दिया गया है.

यूनिसेफ (UNICEF) का भी कहना है कि बच्चों को खसरे का टीका (वैक्सीन) नहीं दिए जाने के कारण दुनिया के कई देशों में खसरे के प्रकोप की आशंका कई गुना बढ़ गई है.

UNICEF की रिपोर्टसाल 2010 से 2017 के बीच 16.9 करोड़ बच्चों को खसरे का पहला टीका नहीं दिया गया. इसका मतलब है कि हर साल तकरीबन 2.11 करोड़ बच्चों को खसरे की वैक्सीन नहीं मिली.

2019 के पहले तीन महीनों में दुनिया भर में खसरे के 1,10,000 मामले दर्ज किए गए, जो पिछले साल इसी अवधि के मुकाबले 300 फीसदी अधिक है.

एक अनुमान के मुताबिक 2017 में 110,00 लोगों की मौत खसरे के कारण हुई, जिनमें ज्यादातर बच्चे थे.

यूनिसेफ की एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर हेनरिएटा फोर ने कहा, ” खसरे का वायरस उन बच्चों को बड़ी आसानी से प्रभावित करता है, जिन्हें खसरे का टीका नहीं दिया गया है.”

एक्सपर्ट बताते हैं कि ज्यादातर लोग ये नहीं समझते कि आज वैक्सीन के कारण ही बहुत सी बीमारियां खत्म हो चुकी हैं. अब क्योंकि लोग संक्रामक बीमारियों से होने वाली मौत के मामले कम ही देखते हैं, इसलिए उन्हें लगता है कि वैक्सीन की कोई जरूरत नहीं है.

हमें ये समझना होगा कि खसरा बेहद संक्रामक रोग है. अगर एक शख्स इससे संक्रमित हो जाए, तो उसके संपर्क में आने वाले हर 10 में से 9 लोगों को (जो इससे इम्यून नहीं हैं) खसरा हो जाएगा. खसरे का टीका लगवाना ही इससे बचाव का सबसे बेहतर उपाय है.

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