मोहन भागवत ने जिस किस्से का जिक्र किया है उसके बारे में महाभारत में लिखा है। महाभारत को कुल 18 पर्व में बांटा गया है। इनमें से सभा पर्व के 14वें चैप्टर में जरासंध, हंस और डिंभक का पहली बार जिक्र आता है।
जरासंध राजा बृहद्रथ का पुत्र था और मगध का सबसे शक्तिशाली राजा था। उसने अपने दो सेनापतियों हंस और डिंभक की मदद से कृष्ण के सुरसेन जनपद (मथुरा) पर 17 बार आक्रमण किया था। इन्हीं दोनों सेनापतियों की दोस्ती की बात मोहन भागवत ने की है।
उन दोनों सेनापतियों की बहादुरी के बारे में कृष्ण कहते हैं, ‘युधिष्ठिर, तुम समझ लो कि अगर वो दोनों जिंदा होते तो जरासंध तीनों लोक का सामना कर सकता था। यह सिर्फ मैं नहीं कह रहा, सभी राजाओं का यही मानना है।’ इसके बाद कृष्ण युधिष्ठिर को बताते हैं कि हंस और डिंभक के सहारे जरासंध ने कैसे मथुरा पर 17 बार आक्रमण कियाजरासंध से जब सत्रवहीं बार लड़ाई हो रही थी, तब उसकी तरफ से हंस नाम का एक राजा लड़ने आया था और युद्ध में वो कृष्ण के भाई बलराम जी के हाथों मारा गया। सैनिकों ने जब उस का वध होते देखा तो शोर मचाने लगे कि हंस मारा गया
यह बात जब डिंभक को मिली तो वो अपने दोस्त को मरा हुआ जान कर यमुना में कूद गया। मानों ये कह रहा हो कि मैं हंस के बिना इस संसार में जीवित नहीं रह सकता। डिंभक की आत्महत्या की खबर मिलने पर हंस ने भी अपने प्राण त्याग दिए।
पौराणिक कथाओं में दोनों सेनापतियों की दोस्ती का जिक्र आता है, जिसे समलैंगिक संकेत के तौर पर देखा जाता है। मगर ये पूरी तरह स्पष्ट नहीं है। कई ग्रंथों में हंस और डिंभक के संबंधों पर अलग अलग राय मिलती है। कई ग्रंथों में हंस और डिंभक के बीच के संबंध को साथी और प्रेमी के तौर पर बताया गया है वहीं हरिवंश पुराण सहित कई अन्य ग्रंथों में इन दोनों को भाई कहा गया है।
भारतीय धर्मग्रंथों के जाने माने प्रकाशक गीताप्रेस गोरखपुर से छपी महाभारत में हंस और डिंभक का जिक्र 14वें अध्याय के 34वें श्लोक में आता है और फिर 40वें से 44वें श्लोक तक कृष्ण उनके बारे में युधिष्ठिर को बताते हैं
गुप्तकाल में महर्षि वात्स्यायन ने कामसूत्र की रचना की। कामसूत्र में नौकरों, मालिश करने वालों, बाल काटने वाले सहायकों के साथ शारीरिक संबंध बनाने वाले पुरुषों के बारे में विस्तार से जिक्र है। इसमें संबंध स्थापित करने के सुख और तरीकों पर भी विस्तार से बात है।
डॉ. राजेश सरकार कहते हैं, ‘कई धर्मग्रंथों में समलैंगिक संबंध स्थापित करने पर दंड की व्यवस्था बताई गई है। इसका अर्थ ये हुआ कि कभी न कभी समाज में समलैंगिकता रही होगी।’मनुस्मृति के आठवें अध्याय में श्लोक 367 से 372 तक में समलैंगिकता के लिए अलग-अलग सजा के प्रवाधान का जिक्र है। जैसे अगर एक लड़की दूसरी लड़की से संबंध बनाती है तो उसे दो सौ सिक्कों का जुर्माना और दस कोड़ों की सजा होगी। यही काम कोई बड़ी उम्र की महिला करती है तो उसके सिर मुंडवाकर गधे पर घुमाया जाना चाहिए।
RSS ने इससे पहले भी समलैंगिकता पर अपना रुख स्पष्ट किया है। साल 2018 में जब सुप्रीम कोर्ट ने 158 साल पुरानी आईपीसी की धारा 377 पर फैसला दिया था। तब संघ के प्रचार प्रमुख अरुण कुमार ने कहा था कि, ‘सुप्रीम कोर्ट के फैसले की तरह हम (RSS) भी समलैंगिकता को अपराध नहीं मानते हैं।’
पाञ्चजन्य-ऑर्गनाइजर को दिए इंटरव्यू में मोहन भागवत ने कहा है कि ट्रांसजेंडर्स समस्या नहीं हैं। वो समाज के हिस्सा हैं और अब तो उन्हें कुम्भ में भी जगह मिलती है। मोहन भागवत ने इंटरव्यू में कहा, ‘तृतीयपंथी (थर्डजेंडर) लोग समस्या नहीं हैं। उनका एक अलग जीवन भी चलता है और सारे समाज के साथ कहीं न कहीं जुड़ कर भी वे काम करते हैं। उनका अपना सेक्ट है, उनके अपने देवी-देवता हैं। अब तो उनके महामंडलेश्वर भी हैं।’
किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी का कहना है कि, ‘हमने काफी विरोध सहा, लेकिन फिर हमने अपनी जगह बना ली। हमने सबसे पहले साल 2016 में उज्जैन कुंभ में भाग लिया। वहां भी हमारा विरोध हुआ। फिर साल 2019 में हमारा जूना अखाड़े के साथ एग्रीमेंट हुआ और पहली बार 2019 में हमने शाही स्नान में भाग लिया। हम इसमें अलग समूह के रूप में भाग लेते हैं।’
साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने IPC की धारा 377 को असंवैधानिक करार देते हुए इसे गैर – आपराधिक ठहराया था। सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने एकमत से 158 साल पुरानी आईपीसी की धारा 377 के एक हिस्से को निरस्त कर दिया था। इसके तहत परस्पर सहमति से ‘अप्राकृतिक’ यौन संबंध बनाना अपराध था। न्यायालय ने कहा कि यह प्रावधान संविधान में प्रदत्त समता के अधिकार का उल्लंघन करता है।
अब सुप्रीम कोर्ट समलैंगिक विवाह की मान्यता से संबंधित सभी याचिकाओं पर एक साथ 13 मार्च को सुनवाई करेगी। बीते 5 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने सभी याचिकाओं को अपने पास ट्रांसफर कर लिया है।
याचिकाओं में मांग की गई है कि समलैंगिक जोड़ों को विवाह के अधिकार और मान्यता दी जाए। साथ ही अधिकारियों को विशेष विवाह अधिनियम के तहत शादी को रजिस्टर कराने का निर्देश दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को 15 फरवरी तक जवाब दाखिल करने को भी कहा है।