भारत की आजादी के 9 साल बाद 1 नवंबर 1956 में भाषा के आधार पर केरल नाम से एक अलग राज्य बना था। अब 67 साल बाद केरल सरकार ने भाषा के ही आधार पर इस राज्य के नाम को बदलकर केरलम करने का फैसला किया है। 9 अगस्त को इसके लिए केरल की विधानसभा में एक प्रस्ताव पास किया गया है। इसके बाद केरल सरकार ने केंद्र सरकार से संविधान में संशोधन कर राज्य के नाम को बदलने की अपील की है।
केरल राज्य के नाम बदलने के पीछे की वजह को जानने के लिए केरल राज्य से जुड़े एक पुराने किस्से को जानना जरूरी है…
साल 1920 की बात है। नागपुर में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की एक बैठक हो रही थी। इस बैठक में यह प्रस्ताव पास किया गया कि नया राज्य सिर्फ क्षेत्रीय नहीं बल्कि भाषाई आधार पर भी बनना चाहिए।
अगले ही साल 1921 में त्रावणकोर, कोच्चि और मालाबार क्षेत्र के लिए कांग्रेस पार्टी ने अपनी इकाई का नाम बदलकर केरल प्रदेश कांग्रेस कमेटी रख दिया। यहीं पहली बार केरल नाम की बुनियाद पड़ी।
इसी समय इस क्षेत्र में रहने वाले मलयाली लोगों ने एक आंदोलन शुरू किया। ऐक्य (यूनाइटेड) केरल मूवमेंट के नाम से शुरू हुए इस आंदोलन का मकसद था- त्रावणकोर, कोच्चि और मालाबार में रहने वाले मलयाली लोगों के लिए अलग राज्य की मांग करना।
देश की आजादी के बाद 1 जुलाई 1949 को दो राज्य त्रावणकोर और कोच्ची बना, लेकिन लोग खुश नहीं थे। 3 दशक तक मलयाली भाषा के सभी लोगों के लिए अलग राज्य के लिए आंदोलन चलता रहा। आखिरकार 1956 में भाषाई आधार पर एक अलग राज्य बना, जिसका नाम केरल रखा गया।
केरल विधानसभा में पास हुई प्रस्तावना के मुताबिक केरल का असल में मलयाली भाषा में नाम केरलम है। हिंदी और दूसरी भाषाओं में इसे केरल कहा जाता है। नाम बदलने का उद्देश्य केरल राज्य की पहचान, भाषा, संस्कृति और विकास को बढ़ावा देना है।