क्यों लगी बिहार में जातीय जनगणना पर रोक, पढ़िए खबर

भारतीय राजनीति हो या चुनाव, इनमें जातियों का बड़ा महत्व होता है। राजनीतिक पार्टियाँ या नेता जब कहते हैं कि हम जातियों को इकट्ठा कर रहे हैं तो हक़ीक़त में वे उन्हें बाँट रहे होते हैं। धर्म, जाति और समुदायों को बाँटने का यह सिलसिला अंग्रेजों के जमाने से चला आ रहा है। जब ज़रूरत पड़ती है, इन्हें ठोक- पीटकर एक कर लिया जाता है और ज़रूरत के अनुसार ही इन्हें फिर से बांटने में सारी ऊर्जा झोंक दी जाती है।
ताज़ा घटनाक्रम बिहार का है। नीतीश कुमार की सरकार वहाँ जातीय जनगणना करवा रही है। आने वाली 15 मई को यह काम पूरा होने वाला था। गुरुवार यानी 4 मई को हाईकोर्ट ने इस पर रोक लगा दी है। अब कम से कम अगली सुनवाई तक सरकार जनगणना के आँकड़ों को सार्वजनिक नहीं कर सकती। हाईकोर्ट का कहना है कि जनगणना का काम केंद्र सरकार का है। राज्य यह तभी करवा सकता है जब विधानसभा में इस आशय का कानून पारित किया जाए।दरअसल, बिहार में जातियों का शुरू से सर्वाधिक महत्व रहा है। लम्बे समय से यहाँ माँग चल रही है कि जिस जाति का जितना हिस्सा जनसंख्या में है, उसे उतनी ही मात्रा में आरक्षण दिया जाए। पिछले दिनों कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी यह माँग उठाई थी और कहा था- जिसका जितना हिस्सा, उसकी उतनी भागीदारी तय हो।
कुल मिलाकर बिहार में सारा मामला अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और आर्थिक पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) को लेकर चल रहा है। पिछली जनगणना के अनुसार बिहार में ओबीसी और ईबीसी की हिस्सेदारी 55% थी। कई सर्वे में बाद में यह दावा किया गया कि 2011 के बाद इस प्रतिशत में काफ़ी वृद्धि हो चुकी है। जदयू और राजद का दावा है कि बिहार में ओबीसी और ईबीसी की हिस्सेदारी 70 प्रतिशत से भी अधिक हो चुकी है। 2024 में राजद और जदयू इसे भुनाना चाहते हैं।
पिछड़े वर्ग का कहना है कि जब अनुसूचित जाति-जनजाति (एससी- एसटी) को जनसंख्या के आधार पर आरक्षण दिया जा रहा है तो पिछड़ा वर्ग के लिए भी यही आधार क्यों नहीं माना जाता? नीतीश सरकार पिछड़े वर्ग के साथ “न्याय” करना चाहती है। राजद और जदयू का सबसे बड़ा वोट बैंक भी यही वर्ग है। हाईकोर्ट की रोक से सरकार या ये कहें कि जदयू और राजद आहत हैं। हालाँकि आँकड़े तो अब सरकार के पास आ ही गए होंगे। रोक के कारण वह इन्हें सार्वजनिक नहीं कर सकती।
यही सबसे बड़ी अड़चन है। जब तक आँकड़े सार्वजनिक नहीं होते, इन्हें वोट में परिवर्तित करने में परेशानी आएगी। अगर ओबीसी वाक़ई सत्तर प्रतिशत हो गए हैं तो यह उन्हें बताया जाएगा और यह भी कि अब उनकी इस संख्या के आधार पर ही उनके साथ न्याय किया जाएगा, तभी तो प्रभाव पड़ेगा! इस बीच ओडिशा में भी जातीय जनगणना शुरू हो चुकी है। वहाँ की सरकार भी इसके पीछे ग़रीबों और पिछड़ों के प्रति “न्याय” का भाव देख रही है।