क्यों अंबडेकर चाहते थे शादी भी UCC में आए, पढ़िए खबर

23 नवंबर 1948, मंगलवार। सुबह 10 बजे नई दिल्ली के कॉन्स्टीट्यूशन हॉल में संविधान सभा की बैठक शुरू हुई। अध्यक्षीय कुर्सी पर उप-सभापति एच.सी. मुखर्जी थे।

बॉम्बे के सदस्य मीनू मसानी ने आर्टिकल 35 में यूनिफॉर्म सिविल कोड का प्रस्ताव रखा… ‘पूरे भारत में नागरिकों के लिए स्टेट एक यूनिफॉर्म सिविल कोड सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा।’ इसके बाद इस प्रस्ताव पर जोरदार बहस शुरू हुई, जिसमें खिलजी और अंग्रेजों तक को घसीटा गया।
सबसे पहले इस प्रस्ताव के विरोध में बोलने वाले सदस्यों को मौका दिया गया। उनके आर्ग्युमेंट्स की प्रमुख बातें पेश कर रहे हैं…
अगर UCC जैसा कोई कानून आता है तो इसमें पर्सनल लॉ को बाहर रखना चाहिए, क्योंकि पर्सनल लॉ लोगों के धर्म और कल्चर का हिस्सा हैं।
जो सेकुलर देश हम बनाना चाहते हैं, उसमें हमें लोगों के धर्म और जीने के तरीके में दखल नहीं देना चाहिए।
नजीरुद्दीन अहमद, संविधान सभा में पश्चिम बंगाल से मुस्लिम सदस्य

हमारे देश में बहुत सारे कानून पहले से पर्सनल लॉ में दखल देते हैं, लेकिन 175 साल के ब्रिटिश रूल में भी उन्होंने कुछ पर्सनल लॉ को नहीं छुआ। जैसे- शादी से जुड़ी प्रैक्टिस या उत्तराधिकार का कानून।
मुझे कोई शक नहीं है कि एक वक्त आएगा जब पूरे देश में एक जैसा सिविल लॉ होगा, लेकिन अभी वक्त नहीं आया। ब्रिटिशर्स जो 175 सालों में नहीं किया, जो मुस्लिम शासक 500 सालों में करने से बचते रहे, हमें स्टेट को ये ताकत नहीं देनी चाहिए कि वो इसे एक बार में कर दे।
महबूब अली बेग साहिब बहादुर, संविधान सभा में मद्रास से मुस्लिम सदस्य

जहां तक मैं समझता हूं यूनिफॉर्म सिविल कोड संपत्ति के कानून, संपत्ति के हस्तांतरण का कानून, कॉन्ट्रैक्ट और एविडेंस के कानून आदि से ही जुड़ा होगा। किसी धार्मिक समुदाय के निजी धार्मिक कानून इसमें नहीं आएंगे।
इस मसौदे को बनाने वाले ही इसका मतलब बताएं। ये लोग बहुत जरूरी तथ्य को नजरअंदाज कर रहे हैं। पर्सनल लॉ कुछ धार्मिक समूहों के लिए दिल के बहुत करीब है। जहां तक मुसलमानों का सवाल है, उनके अपने इस्लाम आधारित उत्तराधिकार, विरासत, विवाह और तलाक के कानून हैं।
बी. पोकर साहिब बहादुर, संविधान सभा में मद्रास से मुस्लिम सदस्य

ब्रिटिशर्स इस देश में 150 से ज्यादा सालों तक शासन कर सके क्योंकि उन्होंने कम्युनिटीज को उनके पर्सनल लॉ फॉलो करने की गारंटी दी। अब जब हम आजाद हो गए हैं तो क्या कम्युनिटीज को उनके धार्मिक रीति-रिवाज प्रैक्टिस करने की आजादी छीन लेंगे।
मैं पूछना चाहता हूं कि यूनिफॉर्म सिविल कोड में किस कम्युनिटी के कौन से रिवाजों को स्टैंडर्ड माना जाएगा। ये आर्टिकल 19 में दिए गए फंडामेंटल राइट्स के भी खिलाफ है। एक डेमोक्रेसी में मेजॉरिटी की ड्यूटी है कि वो माइनॉरिटी के अधिकारों की रक्षा करे। अगर ऐसा नहीं होता तो ये तानाशाही है।
इसके बाद इस प्रस्ताव के समर्थन में सदस्यों ने तर्क रखने शुरू किए। उनकी प्रमुख बातें पेश कर रहे हैं…
इस प्रस्ताव के विरोध में दो बातें कही जा रही हैं। पहली ये आर्टिकल 19 के फंडामेंटल राइट्स का उल्लंघन करता है और दूसरा देश की माइनॉरिटी के लिए ये तानाशाही भरा फैसला होगा। ये दोनों बातें निराधार हैं।
विरासत, विवाह आदि का पर्सनल लॉ से भला क्या लेना देना है। ये मौलिक अधिकारों के खिलाफ नहीं है, बल्कि ये संविधान में प्रस्तावित मौलिक अधिकारों की रक्षा का प्रावधान है, खास तौर पर इससे लैंगिक समानता आएगी।
खिलजी ने भी शरीयत के खिलाफ कई परिवर्तन किए थे और जब दिल्ली के काजी-मौलवी शरीयत का खुला उल्लंघन करने के लिए उससे नाराज हुए तब उसने सीधा जवाब दिया था कि उसने मुल्क की भलाई के लिए ऐसा किया है और उसकी नीयत देखकर अल्लाह उसे माफ करेगा।
अल्लादी कृष्णस्वामी अय्यर, संविधान सभा में मद्रास से जनरल सदस्य

मुस्लिम सदस्य कहते हैं कि समान नागरिक संहिता मुसलमान नागरिकों के बीच अविश्वास और कटुता लाएगी। मैं कहता हूं इसके विपरीत होगा। समान नागरिक संहिता समुदायों के बीच एकता का कारण बन सकती है।
उस समय क्यों कोई विरोध नहीं किया गया जब अंग्रेजों ने उनके धार्मिक मान्याताओं में हस्तक्षेप करते हुए यूनिफॉर्म क्रिमिनल कोड बनाया था। क्या भारत को एक साथ जोड़ा जाना चाहिए या फिर हमेशा ही प्रतिस्पर्धा करने वाले समुदायों में ही बंटे रहने देना चाहिए।
डॉ. भीमराव अंबेडकर, संविधान की ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष
इस देश में एक कंप्लीट यूनिफॉर्म क्रिमिनल कोड है। ज्यादातर सिविल कानून भी यूनिफॉर्म हैं। सिर्फ शादी और उत्तराधिकार के मसले पर हम दखल नहीं दे पाए हैं और आर्टिकल 35 के जरिए उसे ही छूना चाहते हैं। मुसलमानों में शरियत का पालन पूरे देश में एक जैसा नहीं है।
यूनिफॉर्म सिविल कोड वैकल्पिक व्यवस्था है। ये अपने चरित्र के आधार पर नीति निदेशक सिद्धांत होगा और इसी वजह से राज्य तत्काल यह प्रावधान लागू करने के लिए बाध्य नहीं है। राज्य जब उचित समझें तब इसे लागू कर सकता है।
इस बहस के बाद यूनिफॉर्म सिविल कोड पर संविधान सभा में वोटिंग हुई और यूनिफॉर्म सिविल कोड को संविधान के आर्टिकल 44 के तहत डायरेक्टिव प्रिंसिपल्स में डाल दिया गया।