कौन थीं हिंदी सिनेमा की पहिला महिला एक्ट्रेस देविका रानी ?

हिंदी सिनेमा की फर्स्ट लेडी और ड्रेगन लेडी कही जाने वालीं देविका रानी। आज इनकी 29वीं डेथ एनिवर्सरी है। 29 साल पहले 9 मार्च 1995 को देविका का 85 साल की उम्र में निधन हो गया था। ये उस दौर में फिल्मों में आईं, जब महज तवायफें ही फिल्मों में महिलाओं की खानापूर्ति किया करती थीं। समाज के खिलाफ देविका ने न सिर्फ इंडस्ट्री में जगह बनाई बल्कि पहली फीमेल सुपरस्टार भी कहलाईं। बोल्ड इतनी थीं कि खुलेआम शराब, सिरगेट का सेवन किया करती थीं। इन्होंने 1933 की फिल्म कर्मा में 4 मिनट लंबा किसिंग सीन दिया था, सबसे लंबे किसिंग सीन का ये रिकॉर्ड आज भी कायम है। इनका ड्रेसिंग सेंस भी उस जमाने में बेहद बोल्ड और खतरनाक समझा जाता था। विदेश में भारतीय सिनेमा को पहचान दिलाने का क्रेडिट भी इन्हीं को दिया जाता है। 30-40 के दशक में इन्होंने करीब 15 फिल्मों में काम किया और कई फिल्मों को प्रोड्यूस भी किया।
बड़ी उपलब्धियों के बावजूद देविका अपने बोल्ड अंदाज के लिए अक्सर विवादों में रहीं। अपनी शर्तों पर जीने वाली देविका ने शादीशुदा होने के बावजूद इन्होंने को-स्टार के साथ रहने का फैसला किया। पति को छोड़ा, तो इनपर लगे सारे पैसे डूब गए, फिल्में रुक गईं। पति ने इन्हें दोबारा साथ लाना चाहा तो इन्होंने कई शर्तें रखी थीं
विशाखापट्टनम के पास स्थित वलतायर के बड़े जमींदार के घर जन्मीं देविका के पिता मद्रास प्रेसीडेंसी के पहले सर्जन थे। पढ़े-लिखे परिवार से ताल्लुक रखने वालीं देविका को महज 9 साल की उम्र में इंग्लैंड के बोर्डिंग स्कूल भेज दिया गया। पढ़ाई पूरी कर देविका ने रॉयल एकेडमी ऑफ ड्रामेटिक आर्ट, लंदन में दाखिला लिया। कई डिजाइनिंग कोर्स कर देविका ने 1927 में टेक्सटाइल डिजाइनिंग में जॉब शुरू किया।
देविका रानी की मुलाकात 1928 में फिल्ममेकर हिंमाशु राय से हुई। हिमांशु उस समय लंदन में अपनी फिल्म द थ्रो ऑफ डाइस की शूटिंग कर रहे थे। देविका के काम से इम्प्रेस होकर हिमांशु ने उन्हें अपना प्रोडक्शन हाउस जॉइन करने का प्रस्ताव दिया। देविका राजी हो गईं और उनके प्रोडक्शन के लिए कॉस्ट्यूम डिजाइनिंग और आर्ट डायरेक्शन करने लगीं।
साथ काम करते हुए देविका रानी और हिमांशु राय एक दूसरे को दिल दे बैठे। हिमांशु, देविका से 16 साल बड़े थे, लेकिन इसके बावजूद दोनों ने 1929 में शादी कर ली।
हिमांशु राय ने भारत आकर कर्मा (1933) फिल्म बनाई। इस फिल्म में देविका रानी नायिका बनीं और हीरो बने हिमांशु। उस समय फिल्मों में काम करना महिलाओं के लिए इतना बुरा समझा जाता था कि नायिका के रोल भी आदमी ही काम किया करते थे। कर्मा फिल्म रिलीज हुई और देविका रानी स्टार बन गईं। उन्हें स्टार सितारा कहा जाने लगा
जहां एक तरफ फिल्म को पसंद किया जा रहा था वहीं दूसरी तरफ फिल्म में दिखाए गए 4 मिनट के किसिंग सीन से कई विवाद भी खड़े हुए। ये सीन देविका और हिमांशु के बीच ही फिल्माया गया था। विवादों के बावजूद देविका के कदम नहीं डगमगाए और उन्होंने फर्स्ट लेडी ऑफ इंडियन सिनेमा बनकर इतिहास रच दिय
साल 1934 में देविका और हिमांशु ने बॉम्बे टॉकीज की स्थापना की। ये इंडस्ट्री का सबसे बड़ा फिल्म स्टूडियो था। जवानी की हवा (1935) के बाद हिमांशु ने देविका रानी और नज्म-उल-हसन को लेकर दूसरी फिल्म जीवन नैया शुरू की। लेकिन, जैसे ही देविका और नज्म के बीच नजदीकियां बढ़ने लगीं तो हिमांशु ने फिल्म रोक दी। देविका, नज्म के साथ चली गईं और फिल्म रुक गई। फिल्म रुकने से हिंमाशु के पैसे डूब गए। कर्जदार पैसे लेने खड़े थे, लेकिन हीरोइन के बिना फिल्म बनना संभव नहीं था।
शशधर मुखर्जी जो उस समय प्रोडक्शन के साउंड इंजीनियर थे, ने देविका को समझाया और सुलह करने के लिए वापस बुला लिया। देविका, शशधर को भाई मानती थीं, तो बात काट नहीं सकीं। उस समय तलाक को कानूनी दर्जा नहीं मिला था और पति को छोड़कर रहने वाली महिलाओं को ठीक नहीं समझा जाता था।
हिमांशु के पास लौटने के लिए देविका ने शर्त रखी कि उन्हें हर फिल्म में काम करने के लिए फीस मिलेगी, लेकिन घर का पूरा खर्च अकेले हिमांशु उठाएंगे। बॉम्बे टॉकीज दिवालिया होने की कगार पर थी। फिल्म रुकने से कर्ज में डूबे हिमांशु देविका की सारी शर्तें मान गए। समाज को दिखाने के लिए दोनों साथ तो रहे लेकिन दोनों के बीच काम के अलावा कोई रिश्ता नहीं बचा था।
जीवन नैया से नज्म-उल-हसन को हटाकर अशोक कुमार को लिया गया, जो उस समय लेब्रोरट्री असिस्टेंट थे। देविका-अशोक कुमार की जोड़ी दूसरी बार अछूत कन्या में साथ दिखी। ये फिल्म हिंदी सिनेमा के लिए बैंचमार्क साबित हुई। अछूत कन्या को ही भारत में छुआछूत के खिलाफ आंदोलन की जमीन तैयार करने वाली फिल्म माना जाता है। तीसरी बार दोनों जीवन प्रभात में साथ आए जिसमें अशोक कुमार से ज्यादा देविका को तारीफें मिलीं।साल 1949 में हिमांशु राय के निधन के बाद देविका ने बॉम्बे टॉकीज की जिम्मेदारी शशधर मुखर्जी के साथ ली। इसके बाद उन्होंने अनजान, किस्मत जैसी हिट फिल्में प्रोड्यूस कीं।
साल 1944 में देविका रानी ने बॉम्बे टॉकीज में काम करने वाले दिलीप कुमार को ज्वार भाटा फिल्म में काम दिया। वो देविका ही थीं, जिन्होंने युसुफ खान को दिलीप कुमार नाम दिया। कुछ ही सालों में अशोक कुमार और शशधर मुखर्जी ने देविका से अलग होकर अपना नया प्रोडक्शन हाउस फिल्मिस्तान बना लिया। इंडस्ट्री का सपोर्ट न मिलने पर देविका ने इंडस्ट्री छोड़ दी।
इंडस्ट्री छोड़ने के बाद देविका ने रशियन पेंटर स्वेतोस्लाव रोरिच से शादी कर ली। दोनों मनाली में आम जिंदगी जीने लगे। साल 1958 में देविका को पद्मश्री मिला। 1969 में देविका दादासाहेब फाल्के अवॉर्ड जीतने वाली पहली भारतीय बनीं। 1993 में पति रोरिच की मौत के एक साल बाद 9 मार्च 1994 को देविका का निधन हो गया।
मनाली के पास बसे नग्गर में देविका रानी की याद में एक म्यूजियम भी बनाया गया है। यहां उनके पति रोरिच की बनाई कुछ यादगार पेंटिंग्स भी हैं। मौत के बाद देविका की अस्थियां ब्यास नदी में विसर्जित की गई, वहीं अस्थियों का कुछ हिस्सा उनके पति रोरिच की आर्ट गैलेरी के बाहर लगे नींबू के पेड़ के नीचे डाली गई थीं, जहां वो अक्सर घंटों मेडिटेशन किया करती थीं।