1970 से 90 के दौरान की ज्यादातर बॉलीवुड फिल्मों में आपने एक दुबले-पतले, लेकिन रौबदार पुलिस इंस्पेक्टर को जरूर देखा होगा। इनका नाम है इफ्तिखार। 1944 के आसपास वे सिंगर बनने घर से निकले थे, लेकिन एक्टर बन गए। इफ्तिखार पुलिस इंस्पेक्टर के रोल में इतना जंचते थे कि असल में भी लोग इन्हें पुलिस अधिकारी ही समझते थे। ट्रैफिक सिग्नल पर हवलदार इन्हें देखकर सैल्यूट किया करते थे।
इफ्तिखार गजब के पेंटर भी थे। अशोक कुमार को इन्होंने पेंटिंग सिखाई थी और वो ताउम्र इफ्तिखार को अपना गुरु ही मानते रहे। जब देश का बंटवारा हो रहा था, तब इनका पूरा परिवार पाकिस्तान जाकर बस गया। ये भारत में रुक गए। कोलकाता में भारी दंगों के कारण जान बचाने के लिए ये मुंबई आ गए। कुछ फिल्मों में बतौर हीरो भी रहे, लेकिन धीरे-धीरे सपोर्टिंग आर्टिस्ट बनते गए।
बी.आर. चोपड़ा की फिल्म इत्तेफाक में इन्होंने पुलिस इंस्पेक्टर का रोल इतने अच्छे तरीके से निभाया कि फिर इन्हें वैसे ही रोल मिलने लगे। इन्होंने 400 से ज्यादा फिल्मों में काम किया, जिनमें से ज्यादातर में पुलिस इंस्पेक्टर, वकील, डॉक्टर या जज ही बने। इफ्तिखार को अपनी बेटियों से बहुत प्यार था। बेटी सईदा को कैंसर हुआ तो ये सदमा वो सह नहीं पाए। बेटी की मौत हुई तो उसकी याद में खुद भी 21 दिन में ही चल बसे।
इफ्तिखार का जन्म 22 फरवरी 1924 को जालंधर में हुआ था। उनका पूरा नाम सैयदना इफ्तिखार अहमद शरीफ था। ये चार भाई-बहनों में सबसे बड़े थे। उनके पिता एक कानपुर में एक कंपनी में बड़े पद पर तैनात थे। उन्होंने कभी भी एक्टर बनने के बारे में नहीं सोचा था। उनका बचपन से ही सिंगर कुंदन लाल सहगल के जैसे नामी सिंगर बनने का सपना था। वो सहगल साहब के अंदाज में भी गाते थे, जिस वजह से आस-पास के लोग उन्हें जानने लगे थे।
इफ्तिखार को पेंटिंग का भी शौक था। इस शौक को पूरा करने के लिए उन्होंने मैट्रिक की पढ़ाई पूरी करने के बाद लखनऊ कॉलेज ऑफ आर्ट्स से पेंटिंग में डिप्लोमा कोर्स किया। इसके बाद उन्होंने अपना पूरा ध्यान संगीत पर लगा दिया।
किस्सा 1944 का है, जब फिल्म इंडस्ट्री का बहुत बड़ा हिस्सा कोलकाता में रहता था। एक दिन इफ्तिखार ने अपने पिता से कहा कि वो कोलकाता जाकर सिंगर बनना चाहते हैं। गायकी में उनकी पकड़ अच्छी थी, इसलिए पिता ने 20 साल के इफ्तिखार को कोलकाता भेज दिया। यहां पहुंचने के बाद वो HMV म्यूजिक कंपनी के दफ्तर गए, जहां उन्होंने ऑडिशन दिया। वहां पर मौजूद म्यूजिक कंपोजर कमल दासगुप्ता को सिंगिंग के साथ-साथ उनकी पर्सनैलिटी भी बहुत पसंद आई। उन्होंने कहा कि तुम्हें सिंगर नहीं, एक्टर बनना चाहिए। साथ ही एक फिल्म का ऑफर भी दे डाला। इफ्तिखार ने वो फिल्म साइन कर ली। हालांकि उस फिल्म के बारे में कहीं ज्यादा डिटेल्स मौजूद नहीं हैं।
इस फिल्म में वो बतौर एक्टर नजर आए थे, लेकिन सिंगिंग के लिए उनका जुनून कम नहीं हुआ था। गायकी में कहीं बड़ा प्लेटफॉर्म नहीं मिलने की वजह से इफ्तिखार ने ठान लिया था कि वो खुद के गाने का एक एल्बम निकालेंगे। एल्बम रिलीज भी हुआ। इस एल्बम के दो गाने लोगों ने बहुत पसंद किए थे। इसके बाद वो कानपुर चले गए। वो कानपुर पहुंचे ही थे तभी एक प्रोड्यूसर ने उन्हें टेलीग्राम भेज कर वापस बुला लिया। इस बार भी उनके पिता ने कोलकाता भेज दिया, लेकिन इफ्तिखार के बाकी रिश्तेदार इस बात से बेहद खफा थे कि वो वापस कोलकाता एक्टर बनने के लिए जा रहे हैं।
कोलकाता में इफ्तिखार की शादी सईदा नाम की लड़की से तय हुई थी। कुछ समय बाद कोलकाता में उनकी ही बिल्डिंग में रहने वाली एक यहूदी लड़की हना जोसेफ को इफ्तिखार पसंद करने लगे। कुछ समय बाद दोनों दोस्त बन गए। कुछ समय बाद हना भी उन्हें पसंद करने लगीं और दोनों ने शादी करने का फैसला किया।
इफ्तिखार की शादी पहले से ही तय थी, लेकिन वो हना के साथ ही अपना घर बसाना चाहते थे। जिस वजह से बाद में सईदा के साथ अपना रिश्ता तोड़कर उन्होंने हना से शादी कर ली। उनके परिवाले पहले इस रिश्ते के खिलाफ थे, लेकिन बाद में मान गए थे। शादी के बाद हना ने अपना नाम बदलकर रेहाना अहमद रख लिया था। 1946 में उनकी बड़ी बेटी सलमा का जन्म हुआ और 1947 में उनकी पत्नी ने दूसरी बेटी को जन्म दिया, जिसका नाम सईदा रखा गया।
कोलकाता वापस आने के बाद इफ्तिखार की फिल्म तकरार रिलीज हुई, जिसमें वो उस जमाने की टॉप एक्ट्रेस जमुना के साथ नजर आए थे। इसके बाद 1945 की उनकी दो और फिल्में रिलीज हुईं।
इफ्तिखार के करियर में सब कुछ अच्छा चल रहा था कि तभी भारत-पाकिस्तान का विभाजन हो गया। इस विभाजन का दंश उन्हें भी झेलना पड़ा। रिश्तेदार समेत उनके परिवार वाले भी भारत छोड़कर पाकिस्तान बसने चले गए, लेकिन इफ्तिखार ने भारत में ही रुकने का फैसला किया। सिर्फ इतना ही नहीं, वो जिस फिल्म कंपनी में काम कर रहे थे, वहां से उन्हें निकाल दिया गया।
कोलकाता में दंगे इतने भड़क गए थे कि उन्होंने परिवार सहित मुंबई का रुख करने का फैसला किया। मुंबई में ये संगीतकार अनिल बिस्वास को जानते थे, फिर उन्हीं के दोस्तों के साथ इफ्तिखार की भी दोस्ती हो गई। यहां पर काम की तलाश में उन्हें बरसों भटकना पड़ा।
मुंबई के संघर्ष को याद करते हुए इफ्तिखार की बड़ी बेटी सलमा ने एक इंटरव्यू में बताया था- “मैं और मेरी बहन, दोनों बहुत छोटे थे और अक्सर हमारे खाने तक के लिए घर में कुछ नहीं होता था। घर की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए मम्मी को किन्हीं मिस्टर पाटनवाला के ऑफिस में सेक्रेटरी की नौकरी करनी पड़ी। उधर छोटा-मोटा जैसा भी काम मिलता रहा, डैडी करते रहे, लेकिन हमारी माली हालात में कोई बदलाव नहीं आया।”मुंबई आने के बाद उनकी मुलाकात अशोक कुमार से हुई। बाद में अशोक कुमार की वजह से इफ्तिखार को फिल्मों में छोटे-मोटे रोल मिलने लगे। इफ्तिखार एक जबरदस्त पेंटर भी थे। अशोक कुमार ने उन्हीं से पेंटिंग बनानी भी सीखी। उम्र में बड़ा होने के बावजूद वो इफ्तिखार को हमेशा अपना गुरु मानते थे।
इफ्तिखार अशोक कुमार के गुरु कैसे बने, ये किस्सा भी मजेदार है। एक बार अशोक कुमार बहुत बीमार हो गए थे, जिस वजह से वो कई दिनों तक बेड पर रहे। कुछ काम ना कर पाने की वजह से वो चिड़चिड़े भी हो गए थे। इसी बीच इफ्तिखार उनको देखने घर गए। अशोक कुमार की ऐसी हालत देख कर उन्होंने कहा- आपको इस समय वो काम करना चाहिए, जिससे आपको खुशी मिले। अशोक कुमार ने कहा- मुझे पेंटिंग का शौक है, लेकिन बनानी नहीं आती। इसके बाद इफ्तिखार ने उन्हें पेंटिंग सिखाई।
किस्सा अब उस फिल्म का जिसके बाद से इफ्तिखार को फिल्मों का पुलिस ऑफिसर कहा जाने लगा। फिल्म का नाम था इत्तेफाक। इसमें इफ्तिखार ने पहली बार पुलिस ऑफिसर का रोल निभाया था। बॉक्स ऑफिस पर इस फिल्म ने जबरदस्त कमाई की थी। इस फिल्म ने उनकी किस्मत बदल दी थी। जिसके बाद इफ्तिखार के पास काम की कमी नहीं रही। जल्द ही उन्होंने मुंबई के खार में अपना फ्लैट खरीद लिया। इसके बाद उन्होंने जॉनी मेरा नाम, दीवार, डॉन जैसी बेहतरीन फिल्मों में पुलिस ऑफिसर का रोल निभाया।पुलिस ऑफिसर के रोल में इफ्तिखार इतने फेमस हो गए थे कि रियल लाइफ में भी लोग उन्हें पुलिस ऑफिसर समझते थे। एक बार का किस्सा ये है कि वो ट्रैफिक सिग्नल से गुजर रहे थे, तभी वहां मौजूद पुलिस वाले उन्हें सैल्यूट करने लगे। इस बात से पहले तो उन्हें हैरानी हुई, लेकिन बाद में वो चुपचाप वहां से गुजर गए। ऐसा वाकया उनके साथ कई बार हुआ था।
एक बार इफ्तिखार पत्नी हना के साथ कहीं बाहर जा रहे थे। वो नो एंट्री लेन से गुजर ही रहे थे कि उन्हें पुलिस वाले ने रोक लिया। पुलिस वाले ने जैसे ही कार में इफ्तिखार को देखा, उन्हें सलाम किया और बिना जुर्माना लिए जाने दिया।1964 में इफ्तिखार की बड़ी बेटी सलमा की शादी देहरादून के एक रईस खानदान से ताल्लुक रखने वाले विपिन चन्द्र जैन से हो गई थी। विपिन चन्द्र मुंबई एक्टर बनने आए थे, जहां पर उनकी मुलाकात सलमा से हुई। पहले दोनों दोस्त बने, फिर प्यार हुआ और बाद में दोनों ने लव मैरिज कर ली।
शादी के बाद सलमा पति के साथ देहरादून चली गई, जहां वो एक कॉलेज में पढ़ाने लगी। इस दौरान उन्होंने एक बेटी और बेटे को भी जन्म दिया। शादी के 15 साल बाद उनका तलाक हो गया जिसके बाद वो मुंबई आ गईं। यहां पर उन्होंने 20 सालों तक सेक्रेटरी के तौर पर एन.सी. सिप्पी का ऑफिस संभाला।
उन्होंने राजेश खन्ना के साथ भी खूब काम किया। वो ‘जोरू का गुलाम’, ‘द ट्रेन’, ‘खामोशी’, ‘महबूब की मेहंदी’, ‘राजपूत’ और ‘आवाम’ जैसी फिल्मों में नजर आए।
पुलिस ऑफिसर के अलावा इफ्तिखार ने दूसरे बेहतरीन रोल भी किए थे। उन्होंने पिता, अंकल, ग्रेट-अंकल, दादाजी, कोर्टरूम जज और डॉक्टर के किरदार निभाए और उन्हें काफी पसंद भी किया गया।
किस्सा फिल्म तीसरी कसम का है। इस फिल्म में पहले जमींदार के रोल में एक असली जमींदार ने काम किया था। डायरेक्टर का मानना था कि फिल्म में रियल टच ज्यादा रहेगा। उसे एक्टिंग नहीं आती थी, लेकिन सीन के हिसाब से उसे ट्रेनिंग दी गई थी।
एक सीन था जिसमें जमींदार को हीराबाई के रोल में नजर आईं वहीदा रहमान से कहना होता था कि आप अपने हाथ से पान खिला दीजिए। डायरेक्टर ने जैसे ही सीन खत्म होने के बाद कट बोला, वैसे ही जमींदार ने वहीदा की एक उंगली काट ली। उसे लगा कट इसीलिए बोला गया होगा। इसके बाद बहुत हंगामा हुआ।
हिंदी फिल्मों के अलावा इफ्तिखार 1967 में अमेरिकन टीवी सीरीज ‘माया’ में नजर आए थे। इसके अलावा उन्होंने 1970 में हाॅलीवुड फिल्मों में ‘बॉम्बे टॉकीज’ और 1992 में ‘सिटी ऑफ जॉय’ में भी काम किया।
इफ्तिखार अपनी छोटी बेटी सईदा को सबसे ज्यादा चाहते थे। एक दिन सईदा बहुत बीमार पड़ी, जिसके बाद जांच में पता चला कि उन्हें कैंसर है। इसके बाद इफ्तिखार ने 5 साल तक उनकी देखभाल की। तनाव और डिप्रेशन ने उन्हें मार डाला था। बेटी की ऐसी खराब हालत देख कर वो रोज रात में तकिए में मुंह छुपाकर रोते थे।
7 फरवरी 1995 को सईदा की कैंसर से मौत हो गई। बेटी की मौत ने इफ्तिखार को झकझोर कर रख दिया। अपने सामने अपनी बच्ची को मरता देखना उनके लिए एक दर्दनाक एहसास था और ये सदमा वो बर्दाश्त नहीं कर पाए।बेटी के गुजरने के बाद वो बुरी तरह से बीमार पड़ गए। लोगों से मिलना-जुलना सब बंद कर दिया। खाने-पीने का कोई होश नहीं रहता था। दिन-रात बस सईदा की याद में अंदर ही अंदर घुटते रहते थे। नतीजा, बेटी की मौत के एक महीने के अंदर ही 1 मार्च को इफ्तिखार का 71 साल की उम्र में निधन हो गया।
कई रिपोर्ट में ये दावा किया गया था कि उनका निधन 1 मार्च को नहीं बल्कि 4 मार्च को हुआ था। इन दावों को इफ्तिखार के रिश्तेदारों ने खारिज कर दिया था। रिश्तेदारों ने बताया था कि उनका निधन 1 मार्च 1995 को हुआ था।