कौन थे शोले के सूरमा भोपाली, एक्टिंग करियर में 400 फ़िल्में की

शोले के सूरमा भोपाली…जगदीप। असली नाम सैयद इश्तियाक अहमद जाफरी। बतौर बाल कलाकार फिल्मों में आए, 7 दशक के एक्टिंग करियर में 400 फिल्में कीं। दुनिया को अपनी अदाकारी से हंसाने वाले जगदीप का बचपन भारी मुश्किलों वाला रहा। भारत-पाक बंटवारे में हुए दंगों में उनके पिता मारे गए। मां ने अनाथाश्रम में काम करके उन्हें पाला।

मां की मदद करने के लिए 7-8 साल की उम्र से ही सड़कों पर गुब्बारे बेचे, पतंग और साबुन बनाने की फैक्ट्री में काम किया। इसी दौरान फिल्म में मौका मिला। बतौर बाल कलाकार अपनी पहचान बनाई। उनकी एक्टिंग से पं. जवाहरलाल नेहरू इतने प्रभावित हुए थे कि उन्होंने अपनी छड़ी गिफ्ट कर दी।
पहले बाल कलाकार और फिर कुछ फिल्मों में लीड रोल निभाने के बाद 1968 में जगदीप ने पहली बार कॉमेडी रोल किया। इसके बाद उनकी पूरी एक्टिंग कॉमेडी के इर्द-गिर्द होकर रह गई। शोले में सूरमा भोपाली का कैरेक्टर अमर हो गया।
जगदीप की पर्सनल लाइफ भी कम फिल्मी नहीं है। उन्होंने 3 शादियां की थीं, जिससे उनके 6 बच्चे हैं। 3 शादी का किस्सा दिलचस्प है। बेटे के लिए जिस लड़की का रिश्ता आया, उसकी बड़ी बहन जगदीप को पसंद आ गई, उन्होंने प्रपोज किया और शादी कर ली। वो लड़की उनसे 35 साल छोटी थी।
जगदीप का जन्म मध्यप्रदेश के दतिया में 29 मार्च 1939 को एक संपन्न परिवार में हुआ था। जन्म के बाद उनकी परवरिश ठाट-बाट से हुई थी, लेकिन ये खुशियां बस चंद दिनों की थीं, जिसके बाद उनके परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा।

ये दौर था भारत-पाकिस्तान विभाजन का। हिंदू- मुस्लिमों के बीच दंगे हो रहे थे। विभाजन के भयानक अंजाम से जगदीप का परिवार अछूता नहीं रहा। 1947 के इन्हीं दंगों में उनके पिता की मौत हो गई, जिसके बाद परिवार को तंगी का सामना करना पड़ा। काम की उम्मीद में जगदीप की मां उन्हें लेकर मुंबई आ गईं।
मुंबई जाने के बाद परिवार के गुजारे के लिए जगदीप की मां अनाथालय में काम करने लगीं। वहां पर उनका काम खाना बनाने का होता था, जिस वजह से सुबह से शाम तक उन्हें वहां काम करना पड़ता था। जगदीप को मां की ऐसी हालत देखकर बहुत बुरा लगता था। एक दिन उन्होंने देखा कि उनके हमउम्र बच्चे गुब्बारे बेच रहे हैं और कुछ टीन के कारखानों में काम कर रहे हैं। ये देख कर उन्होंने ठान लिया कि वो भी इसी तरह कमाई करके अपनी मां की मदद करेंगे।

जब ये बात उन्होंने अपनी मां को बताई कि उन्हें पढ़ाई नहीं करनी बल्कि काम में उनका हाथ बंटाना है, तो उनकी मां गुस्सा हो गईं। हालांकि बहुत मनाने के बाद मान गईं। इसके बाद जगदीप एक टीन की फैक्ट्री में काम करने लगे। बाद में साबुन बेचने से लेकर पतंग बनाने तक काम किया।

इस दौरान एक होटल का मालिक उन्हें और उनके दोस्तों को सूखे पाव के साथ हरी मिर्च खाने के लिए दे दिया करता था। जगदीप अपने दोस्तों के साथ मिलकर उस मिर्च को पीस कर सूखे पाव के साथ चाव से खा लेते थे।
ये बात 50 के दशक की है। इन्हीं दिनों बी.आर चोपड़ा फिल्म अफसाना बनाने की तैयारी कर रहे थे। फिल्म के सीन के लिए उन्हें कुछ बाल कलाकारों की जरूरत थी। जब फिल्म की कास्टिंग टीम एक दिन बच्चों की तलाश में निकली, तो उसकी नजर जगदीप पर पड़ी।

ये सवाल इसलिए था क्योंकि इससे पहले जगदीप ने फिल्में देखी ही नहीं थीं। उन्होंने टीम से पूछा कि वो इस काम के बदले कितने पैसे देंगे। जवाब मिला 3 रुपए। इतना सुनते ही जगदीप ने फिल्म में काम करने के लिए हां कर दिया।
अगले दिन जगदीप मां के साथ फिल्म स्टूडियो पहुंच गए। जिस सीन में उन्हें काम करना था, उसमें बच्चों के चल रहे नाटक में बच्चों के साथ ही बैठकर ताली बजाना था। उस नाटक में एक बच्चे को उर्दू की एक लंबी लाइन बोलनी थी, लेकिन वो लड़का बार-बार अटक जा रहा था।

इसे देखकर जगदीप ने बगल में बैठे लड़के से पूछा- अगर ये मैं कर दूं, तो इस काम के लिए कितने पैसे मिलेंगे। लड़के ने बताया कि बहुत पैसे मिलेंगे। पैसों की जरूरत की वजह से उन्होंने जाकर वो लाइन बोल दी। उर्दू अच्छी थी इसलिए उन्होंने एक टेक में पूरी लाइन बोल दी। इस काम के लिए उन्हें 6 रुपए मिले थे।
इस रोल से जगदीप को पॉपुलैरिटी मिली जिसके बाद उन्होंने लैला मजनू, फुटपाथ जैसी फिल्मों में बतौर बाल कलाकार काम किया।
फिल्म फुटपाथ (1953) में उन्होंने जगदीप नाम का किरदार निभाया था, जिसके बाद से उनका नाम सैयद इश्तियाक अहमद जाफरी से जगदीप हो गया। उनके जगदीप वाले रोल को दर्शकों ने बहुत पसंद किया था।
जगदीप ने फिल्म धोबी डॉक्टर में किशोर कुमार के बचपन का रोल किया था। इस फिल्म में उन्हें रोने का सीन करना था। इस सीन में जगदीप की परफॉर्मेंस इतनी कमाल की थी कि डायरेक्टर बिमल रॉय उनके काम के मुरीद हो गए।

उन्होंने अपने सेक्रेटरी से कहा कि वो जगदीप को मिलने बुला लें। दोनों की मुलाकात हुई जिसके बाद बिमल राॅय ने उन्हें फिल्म दो बीघा जमीन में एक रोल ऑफर किया। इसके बाद दोनों ने साथ में कुछ और फिल्में कीं।
जगदीप ने मुन्ना, अब दिल्ली दूर नहीं है, हम पंछी एक डाल के जैसी फिल्म में बाल कलाकार के तौर पर काम किया था, जिसे दर्शकों ने बहुत पसंद किया था। इन सभी फिल्मों को तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने भी देखा था और फिल्म में काम कर चुके सभी चाइल्ड आर्टिस्ट को नाश्ते पर बुलाया।
पं. नेहरू ने बच्चों को नाश्ते के साथ गुलदस्ता भी दिया, लेकिन जब जगदीप का नंबर आया तो गुलदस्ते खत्म हो गए। इस पर प्रधानमंत्री ने उनसे कहा था- जगदीप फिल्मों में तुम्हारी एक्टिंग शानदार थी, मुझे बहुत पसंद आई। फिलहाल तो गुलदस्ते खत्म हो गए हैं, लेकिन मैं चाहता हूं कि तुम मेरी छड़ी इस सम्मान के तौर पर रख लो। प्रधानमंत्री की दी हुई छड़ी को जगदीप ने ताउम्र संभाल कर रखा।
एक बार डायरेक्टर के.आसिफ ने जगदीप को फिल्म ऑफर की। फिल्म ऑफर की खबर सुनने के बाद कुछ लोगों ने उनसे कहा कि के.आसिफ बहुत दिलदार आदमी हैं, फीस ज्यादा ही मांगना। जगदीप ने उनसे मुलाकात की। उन्होंने पूछा कि फिल्म में काम करने के लिए कितनी फीस लेंगे। जगदीप ने जवाब दिया 2500 रुपए। इस पर आसिर्फ बोले- तुम्हें अपनी सही कीमत नहीं पता है। इस रोल के लिए तुम्हें मैं 3500 रुपए दूंगा। इसके बाद के.आसिफ ने उन्हें 500 रुपए देकर भेज दिया और कहा- जब बाकी पैसों की जरूरत हो, तो आकर मांग लेना।
कुछ दिनों तक फिल्म की शूटिंग चली। इस दौरान जब भी उन्हें पैसे की जरूरत होती थी, वो के. आसिफ से जाकर मांग लेते थे। उनकी इस हरकत से आसिफ का नौकर बहुत गुस्सा होता था। एक दिन उसने जगदीप को रोक कर कहा- तुम बार-बार क्यों चले आते हो पैसे मांगने। क्या तुम्हें पता नहीं कि फिल्म की बाकी शूटिंग अब कभी भी नहीं होगी। किसी वजह से उसे रोक दिया गया है।
ये सुनकर जगदीप को बहुत बुरा लगा कि फिल्म बंद हो जाने के बावजूद के.आसिफ उनकी मदद करते रहे। इसके बाद उन्होंने फैसला किया कि वो दोबारा कभी भी पैसे मांगने नहीं आएंगे। हालांकि एक दिन उन्हें कुछ पैसों की सख्त जरूरत थी। आखिरकार उन्हें मजबूरी में के. आसिफ के पास आना पड़ा क्योंकि उन्हें पता था कि इस मुसीबत के समय में वहीं उनकी मदद करेंगे।
वो गए और के. आसिफ ने उन्हें 50 रुपए दे दिए। फिर उनके नौकर ने जगदीप को टोका और कहा- तुम फिर आ गए। के. आसिफ और उनकी पत्नी के पास यही 50 रुपए थे, जो उन्होंने तुम्हें दे दिए। इस बात का पछतावा जगदीप को ताउम्र रहा। इस घटना को याद करते हुए वो अक्सर कहते थे कि के. आसिफ जैसा महान और दिलदार डायरेक्टर ही मुगल-ए-आजम जैसी फिल्म बना सकता था।
फिल्म शोले में जगदीप सूरमा भोपाली के रोल में दिखे थे। ये रोल इतना पसंद किया गया कि जगदीप को लोग सूरमा भोपाली के नाम से जानने लगे। वहीं उनको ये रोल मिलने का किस्सा भी बड़ा मजेदार है। दरअसल, ‘सूरमा भोपाली’ का किरदार भोपाल के फॉरेस्ट ऑफिसर नाहर सिंह पर आधारित था।
भोपाल में अरसे तक रहे जावेद अख्तर ने नाहर सिंह के किस्से सुन रखे थे, इसलिए जब उन्होंने सलीम के साथ फिल्म ‘शोले’ लिखना शुरू किया, तो कॉमेडी के लिए नाहर सिंह से मिलता-जुलता किरदार ‘सूरमा भोपाली’ तैयार कर दिया।
एक दिन जावेद अख्तर ने उन्हें फिल्म शोले की कहानी सुनाई। जगदीप को लगा कि दोस्ती की वजह से उन्हें काम मिलेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
फिल्म की लगभग पूरी शूटिंग हो गई, तब एक दिन अचानक उन्हें डायरेक्टर रमेश सिप्पी का फोन आया। उन्होंने जगदीप को फिल्म में सूरमा भोपाली का रोल ऑफर किया। इस पर जगदीप ने कहा कि फिल्म की शूटिंग तो पूरी हो गई। तब सिप्पी ने कहा कि अभी कुछ सीन्स की शूटिंग बाकी है। इसके बाद उन्होंने सूरमा भोपाली का रोल निभाया, जो आज भी अमर है।।

शोले और सूरमा भोपाली का रोल, दोनों ही हिट रहे। इस सक्सेस के बाद जगदीप ने इसी किरदार पर फिल्म सूरमा भोपाली बनाने के बारे में सोचा। उन्होंने ये फिल्म बनाई भी, जो 1988 में रिलीज हुई थी। ये भारत के बहुत से राज्य में फ्लाॅप रही, लेकिन मध्यप्रदेश में इस फिल्म के प्रशंसक बड़ी तादाद में रहे।
फिल्म सुरक्षा की शूटिंग के दौरान जगदीप का गला खराब हो गया था। कई दिनों के आराम के बाद भी कोई सुधार नहीं हुआ। आखिरकार मेकर्स ने उन्हें उसी आवाज में डायलॉग बोलने के लिए कहा।
जब फिल्म रिलीज हुई, तो दर्शकों को दबी आवाज में भी जगदीप का अंदाज काफी पसंद आया। इसके बाद कई फिल्मों में इसी तरह से दबी आवाज में डायलाॅग बोलने के लिए कहा गया।
किस्सा ये भी है कि धर्मेंद्र को पुराने सिक्के जमा करने का बहुत शौक था। इस वजह से जगदीप उन्हें अठन्नी- चवन्नी के सिक्के दिया करते थे। इस बात का खुलासा खुद धर्मेंद्र ने भास्कर के ही एक इंटरव्यू के दौरान कहा था। उन्होंने बताया था- जगदीप ने मुझे कुछ पुराने सिक्के दिए, खासकर अठन्नी लाकर मुझे दी और कहा- पाजी मुझे पता है कि आपको पुराने सिक्कों का बहुत शौक है।
जगदीप की पर्सनल लाइफ भी कम फिल्मी नहीं है। उन्होंने 3 शादियां की थी, जिससे उन्हें 6 बच्चे हुए थे। पहली पत्नी नसीम बेगम, दूसरी सुघ्र बेगम और तीसरी नजीमा थीं। तीसरी पत्नी से शादी करने का किस्सा भी अलग ही है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, जगदीप के बेटे को लड़की वाले देखने आए थे, लेकिन बेटे नावेद को शादी नहीं करनी थी।
जिस लड़की का रिश्ता आया, उसकी बड़ी बहन जगदीप को पहली नजर में ही पसंद आ गई। उन्होंने उस लड़की को प्रपोज भी किया, जिसके बाद दोनों की शादी हो गई। इस शादी से उन्हें बेटी मुस्कान जाफरी थीं।
जगदीप के दूसरे बेटे जावेद जाफरी भी फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े हुए हैं। मीडिया रिपोर्ट्स का दावा था कि जाफरी और जगदीप के बीच रिश्ते अच्छे नहीं थे। वजह ये थी कि एक समय ऐसा था कि जगदीप बहुत ज्यादा शराब पीने लगे थे और जुए की भी लत लग गई थी। उनकी ये आदत जाफरी को बिल्कुल भी पसंद नहीं थी, जिस वजह से आए दिन उनके बीच बहस होती रहती थी। उन्होंने जगदीप को बहुत बार मना भी किया था। हालांकि कुछ समय बाद दोनों के रिश्ते पहले से बेहतर हो गए थे।
81 साल की उम्र में जगदीप बीमारियों से जूझ रहे थे। कोरोना लॉकडाउन के दौरान वो काफी कमजोर हो गए थे। आखिरकार 8 जुलाई 2020 को वो अपने पीछे 6 बच्चों और नाती-पोतों से भरा परिवार छोड़कर दुनिया को अलविदा कह गए।