कौन थीं कानन देवी, जिसके लिए रवींद्रनाथ टैगोर को मिली थीं धमकियां ?

हिंदी सिनेमा की शुरुआती सिंगर और एक्ट्रेस कानन देवी को गुजरे आज 31 साल बीत चुके हैं। कानन देवी वो शख्सियत थीं, जो 30 के दशक में महज चंद घंटों की एक फिल्म करने के लिए 5 लाख रुपए और गाने के 1 लाख रुपए लिया करती थीं, जबकि उस दौर में फिल्में ही 15-20 हजार में बन जाया करती थीं। ये इतनी बड़ी हस्ती थीं कि इन्हें हाई सिक्योरिटी में रखा जाता था।
सिंगिंग और एक्टिंग से तो कानन ने खूब नाम, दौलत और शोहरत कमाई, लेकिन इनकी निजी जिंदगी उथल-पुथल भरी रही। कानन देवी के असली मां-बाप कौन थे, ये आज भी रहस्य है। लावारिस कानन को कोलकाता के एक परिवार ने गोद लिया, लेकिन उनका साथ भी कुछ सालों में छिन गया। जिन रिश्तेदारों ने मदद की, उन्होंने नौकरानी बना लिया। जब उन रिश्तेदारों ने एक दिन जलील कर घर से भगा दिया, तो कानन के जहन पर इसका बुरा असर पड़ा। हुनर से जब कानन मशहूर हुईं। लेकिन संघर्ष तब भी खत्म नहीं हुआ। जब कानन ने अपने एक फैन से शादी की तो पूरे कोलकाता शहर में इसका विरोध हुआ। जब रवींद्रनाथ टैगोर ने समर्थन करते हुए उन्हें शादी की शुभकामनाएं दीं, तो उन्हें भी जान से मारने की धमकियां मिली थीं।
कानन देवी का जन्म 22 अप्रैल 1916 को वेस्ट बंगाल के हावड़ा के एक गरीब परिवार में हुआ था। ना पिता का नाम पता था, ना मां का। इनकी बायोग्राफी के अनुसार कानन देवी को दंपत्ति रतन चंद्र दास और राजोबाला ने पाला तो वो उन्हें ही अपने माता-पिता समझने लगीं। गोद लेने वाले रतन उन्हें असल बेटी से भी बढ़कर प्यार देते और संगीत से जुड़ी ट्रेनिंग देते, लेकिन पिता की मौत से पूरे परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा।
घर में कमाने वाला कोई नहीं था। जो मां के जेवर थे वो भी रतन का कर्ज चुकाने में बिक गए। अब परिवार भुखमरी की हालत में था। किराए के घर से भी मां-बेटी को निकाल दिया गया। राजोबाला 6 साल की बेटी के साथ कोलकाता के रईस लोगों के घर काम करने जाने लगीं और बेटी भी उनकी छोटे-मोटे कामों में मदद करवाने लगी। पढ़ाई की उम्र में कानन एक नौकरानी बन चुकी थीं।
मां-बेटी की हालत पर तरस खाकर एक रिश्तेदार उन्हें घर ले आया, लेकिन उन्हें परिवार की तरह रखने के बजाए वो रिश्तेदार इनसे घंटों काम करवाते और बुरा व्यवहार करते थे। रिश्तेदारों के जुल्म बढ़ने लगे और एक दिन हद पार हो गई। रजोबाला के हाथों एक चीनी की प्लेट टूटते ही रिश्तेदारों ने उन्हें खूब जलील किया। कानन से ये बर्दाश्त नहीं हुआ और वो मां को लेकर निकल पड़ीं। कानन ने रोज जलील होने से बेहतर भूखा मरना समझा। 7 साल की कानन देवी ने फैसला कर लिया कि वो अब किसी के भी घर में नहीं रहेंगी।
7 साल की उम्र में किए गए इस फैसले पर कानन ने ताउम्र अमल किया। दो शादियां कीं, लेकिन उन्होंने पति के घर रहने की बजाए उन्हें अपने घर में रखा। जब कानन स्टार बन गईं तो वही रिश्तेदार उनसे मदद मांगने आए, लेकिन उसूलों की पक्की कानन ने मदद करने से इनकार कर दिया। मां ने समझाया तो कानन ने मदद की, लेकिन कभी उन्हें मां का अपमान करने के लिए माफी नहीं दी।
खैर, कानन देवी के बचपन में वापस लौटते हैं..रिश्तेदारों का घर छोड़ने के बाद कानन और रजोबाला हावड़ा लौट आईं। यहां उन्होंने एक वैश्यालय के पास रहना शुरू किया। मां-बेटी की आर्थिक हालात पर तरस खाते हुए एक फैमिली फ्रैंड तुलसी बनर्जी (स्टेज आर्टिस्ट), जिन्हें कानन काका बाबू कहती थीं, ने 10 साल की कानन का मदन थिएटर और ज्योति थिएटर में परिचय करवाया। कानन कम उम्र से ही बेहद खूबसूरत और तेज दिमाग की लड़की थीं
मदन मूवी स्टूडियो ने खूबसूरती से इंप्रेस होकर इन्हें 5 रुपए महीने की पगार में जयदेव फिल्म में साइन किया। फिल्म जयदेव में एक छोटा सा रोल मिला। दरअसल कानन का कॉन्ट्रैक्ट 25 रुपए का था, लेकिन थिएटर वाले उन्हें सिर्फ 5 रुपए ही देते थे। 1928-31 तक कानन ने चंद फिल्मों में काम किया और इस दौरान उन्होंने म्यूजिक कंपोजर हिरेन बोस, लिरिसिस्ट धिरेन दास और कवि काजी नाजरुल इस्लाम के साथ कुछ गाने भी रिकॉर्ड किए।
ये वो दौर था जब महिलाओं की फिल्म इंडस्ट्री में काफी कमी थी। फिल्मों में आने वाली ज्यादातर महिलाएं या तो तवायफ थीं या विदेशी। फिल्मों में आने वाली महिलाओं के साथ कभी सम्मानजनक बर्ताव नहीं किया जाता था। कानन देवी जब मजबूरी में फिल्मों में आईं और उन्हें पहचान भी मिली, लेकिन सम्मान नहीं मिला। सुंदर थीं तो कई डायरेक्टर्स उन पर बुरी नजर रखते थे, लेकिन कानन ने कभी आत्मसम्मान से समझौता नहीं किया। कई फिल्में हाथ से निकलीं और कई फिल्मों से निकाली गईं।
कानन बचपन में आर्थिक तंगी के चलते कभी स्कूल नहीं जा सकीं, लेकिन पैसे आते ही कानन ने अपने लिए पुराण, इंग्लिश, गणित, इतिहास की जानकारी हासिल करने के लिए पर्सनल ट्यूटर रखा था।

कानन ने शंकराचार्य, रिशिर प्रेम, जोरेबारात, विष्णु माया, प्रहलाद जैसी कई बेहतरीन फिल्मों में अभिनय की गहरी छाप छोड़ी। विष्णु माया और प्रहलाद फिल्म में कानन देवी ने पुरुष का लीड रोल प्ले किया था। मनमयी गर्ल्स स्कूल से कानन का नाम कानन बाला पड़ा और फिर इन्होंने अपना नाम कानन देवी कर लिया। 21 साल की उम्र में कानन देवी अपनी खूबसूरती और बेहतरीन अदाकारी के लिए मशहूर हो चुकी थीं।
राधा फिल्म कंपनी के साथ काम करते हुए कानन देवी एक सुपरस्टार बन चुकी थीं। ये अपने जमाने की हाईएस्ट पेड एक्ट्रेस थीं। जब फिल्म का बजट 15-5- हजार रुपए और टिकट करीब 30 पैसे हुआ करती थी उस जमाने में कानन एक गाने के 1 लाख रुपए और एक फिल्म की 5 लाख रुपए फीस लेती थीं।
फिल्मों में कानन देवी के पहने गए कपड़े, गहने और उनकी हेयर स्टाइल को हर तबके के लोगों द्वारा कॉपी किया जाने लगा था। वो जहां जातीं वहां एक नजर पाने के लिए चाहनेवालों की भीड़ लग जाती। इन्हें हाई सिक्योरिटी के साथ ही कहीं आना-जाना होता था।
अपने अभिनय करने में कानन ने कुल 57 फिल्मों में काम किया, वहीं इन्होंने करीब 40 गानों को आवाज दी। ये फिल्म जगत की पहली महिला थीं, जिन्हें पुरुष सत्तात्मक इंडस्ट्री में मैडम कहकर बुलाया जाता था। रुतबा ऐसा था कि कोलकाता के एक फंक्शन में स्टेट गवर्नर भी इन्हें आता देख अपनी सीट छोड़कर खड़े हो गए थे।
साइलेंट एरा के बाद साउंड फिल्मों में कामयाबी हासिल की और फिर ये स्टार बन गईं। भारत ही नहीं कानन देवी को हॉलीवुड मैग्जीन में भी गिफ्टेड सिंगर कहा जाता था। बेहतरीन गायिकी के कारण कानन देवी को मेगाफोन ग्रामोफोन कंपनी ने बतौर सिंगर हायर कर लिया। कानन ने भीष्मदेव चटर्जी, अनादि दास्तिदर जैसे दिग्गजों से संगीत की ट्रेनिंग ली। ये न्यू थिएटर्स कंपनी की टॉप सिंगर बनीं, लेकिन उन्होंने 1941 में कंपनी से कॉन्ट्रेक्ट खत्म कर दिया और हिंदी और बंगाली फिल्मों में फ्रीलांस काम करने लगीं
हिंदी सिनेमा में कानन देवी ने यहां के दिग्गज कलाकारों केएल सहगल, पंकज मलिक, प्रथमेश बरुआ, पहाड़ी सानयाल, छबि बिस्वास, अशोक कुमार के साथ भी काम किया।
1930 में कानन देवी की मुलाकात अशोक मैत्रा से हुई। ये सिटी कॉलेज के प्रिंसिपल और ब्रह्म समाज के लीडर हेराम्बा चंद्र मैत्रा के बेटे थे। दोस्तों के साथ जन्मदिन का जश्न मनाते हुए अशोक ने अपने दोस्तों से कहा कि उनका जन्मदिन तब ही सफल होगा जब कानन देवी उनसे मिलेंगी। अशोक नशे में थे। दोस्तों ने नशे में चूर अशोक को कानन देवी के कपालीतला लेन स्थित घर में उतार दिया। आधी रात को कानन देवी ने देखा कि सूट-बूट पहना एक नौजवान शख्स उनके घर के नीचे नींद में है। जब नीचे पहुंची तो अशोक नींद में जमीन पर लेटे हुए थे। कानन देवी जमीन पर बैठीं और अशोक का सिर अपनी गोद में रख लिया। अशोक नींद और नशे में थे, तो उन्हें लगा वो सपना देख रहे हैं और वो सोते रहे। ये दोनों की पहली मुलाकात थी।
देखते-ही-देखने दोनों के बीच दोस्ती हुई और फिर प्यार, लेकिन जब शादी का समय आया तो परिवार खिलाफ हो गया। अशोक के पिता ब्रह्म समाज के लीडर थे और कानन देवी कलकत्ता की सेक्स सिंबल बन चुकी थीं। कानन का करियर परिवार को दागदार कर सकता था इस डर से घरवाले कानन को अपनाने के लिए तैयार नहीं हुए।
जब अशोक मैत्रा के पिता हेराम्बा का निधन हुआ तो उन्होंने कानन देवी से समाज के खिलाफ जाकर 1940 में शादी कर ली। 25 साल की कानन ने जब 36 साल के अशोक से शादी की तो हंगामा मच गया। खबरें आते ही पूरे कोलकाता शहर के लोग विरोध करने लगे कि ब्रह्म समाज में एक हीरोइन बहू कैसे बन सकती है।
रवींद्रनाथ टैगोर ने अशोक और कानन देवी को शादी में आशीर्वाद दिया था, साथ ही खुद की एक तस्वीर अपने ऑटोग्राफ के साथ भेजी थी
जब उन्होंने तोहफे में कानन को अपना साइन की हुई एक तस्वीर भेजी और ये खबर अखबारों में छपी तो लोग उनके भी खिलाफ हो गए। कई लोगों ने रवींद्रनाथ को फोन कर उनकी निंदा की और धमकियां दीं। कई लोगों का ये भी मानना रहा कि एक सेक्स सिंबल महिला के घर ऊंचे कवि का ऑटोग्राफ और तस्वीर कैसे हो सकती है। दरअसल कानन देवी ने रवींद्रनाथ द्वारा लिए गानों को आवाज दी थी, जिससे उनकी दोस्ती थी।
कानन के पास दो विकल्प थे। या तो शादीशुदा जिंदगी बचातीं या फिल्मी करियर, लेकिन अपनी शर्तों पर जीने वालीं कानन ने शादी भी की और फिल्मों में काम करना जारी रखा। जबकि उस जमाने में ज्यादातर एक्ट्रेसेस शादी के बाद फिल्में छोड़ दिया करती थीं।
जब कानन ने समाज के बहिष्कार के बावजूद फिल्मों में काम किया तो उनके घर के बाहर रोजाना विरोध प्रदर्शन होने लगा। लोग भद्दी गालियां देते और ब्रह्म परिवार पर भी शादी तोड़ने का दबाव बनाते। कानन जहां जातीं वहां भीड़ उनके खिलाफ नारेबाजी करती थी।
जो भीड़ पहले कानन की एक झलक के लिए खड़ी होती थी, वही भीड़ अब विरोधियों में तब्दील हो चुकी थी। रोजाना के विरोध से परेशान होकर कानन देवी ने पहले पब्लिक इवेंट में जाना छोड़ दिया और फिर घर ने निकलना बंद कर दिया। खुद को दुनिया की नजरों से छिपाने के लिए कानन अपने ही 11ए कबीर रोड स्थित घर के बरामदे में तक नहीं जाती थीं।
लोगों का बर्ताव कानन को लेकर बदल चुका था। उन्हें हैरेस करने वालों में इंडस्ट्री के लोग भी थे। एक पॉपुलर डायरेक्टर ने कानन देवी से पूछा था कि पति के साथ बिताई हुई उनकी पिछली रात कैसी रही, वहीं एक ने कहा कि उन्हें शादी के बाद तैयार नहीं होना चाहिए और ना बिंदी लगानी चाहिए, क्योंकि इससे वो सुंदर दिखने लगती थीं और लोग आकर्षित होते थे।
ये कानन की जिंदगी का सबसे बुरा समय रहा जब पति ने साथ देने के बजाए विरोध शुरू कर दिया। शहर भर के विरोध से पति पर भी बुरा असर पड़ा। वो भी कानन के फिल्मों में काम करने के खिलाफ हो गए। मीडिया, आम जनता के बाद अब घर में लड़ाई शुरू हुई। 10 साल की उम्र में फिल्मों में काम कर पेट पालने वालीं कानन फिल्में छोड़ने के लिए तैयार नहीं थीं।
जब भी इंडस्ट्री से जुड़े किसी व्यक्ति का कॉल आता तो कानन के घर में झगड़े शुरू हो जाते। हालात इतने बद्तर हो गए कि पति उनके हाथ से फोन तक छीन लिया करता था। कानन देवी अपने साथ होते इस असॉल्ट से टूट चुकी थीं। जब पति के जुल्म बढ़ने लगे तो कानन ने फिल्में छोड़ने के बजाए 1945 में पति को तलाक दे दिया। हालांकि, सास कुसुमकुमारी मैत्रा से उनके रिश्ते बरकरार रहे। कुसुमकुमारी ने सालों बाद कानन के हाथों में ही दम तोड़ा।
तनाव भरी शादीशुदा जिंदगी जीते हुए कानन देवी की हॉस्पिटल (1943), चंद्रशेखर (1947) जैसी कई फिल्में बुरी तरह फ्लॉप हो गईं। आखिरकार उन्होंने फिल्मों से दूरी बना ली।
1947 में कानन देवी विदेशी फिल्म इंडस्ट्री को करीब से समझने के लिए विदेश चली गईं। वहां उन्हें हॉलीवुड के लीजेंड्री एक्टर क्लार्स गैबल, स्पेंसर ट्रेसी, रॉबर्ट टेलर जैसी कई हस्तियों से रूबरू होने का मौका मिला। वापस आकर कानन ने चंद फिल्में कीं और फिर खुद का प्रोडक्शन हाउस श्रीमती प्रोडक्शन शुरू किया। 1948 की फिल्म चंद्रशेखर के बाद कानन देवी ने फिल्मों से संन्यास ले लिया। ये आखिरी फिल्म कानन ने अशोक कुमार के साथ की थी। 1947 बाद उन्होंने कोई फिल्म बतौर साइन नहीं की।1966 में कानन देवी ने फिल्म प्रोडक्शन से भी संन्यास ले लिया। उनका आखिरी कॉन्सर्ट इंडिया हाउस, लंदन में हुआ था
1949 में कानन देवी ने हरिदास भट्टाचार्या से दूसरी शादी की, जो बंगाल सरकार में ADC थे। दोनों की मुलाकात टोलीगंज, कोलकाता के एक स्कूल फंक्शन के दौरान हुई थी। 1949 में ही कानन ने बेटे सिद्धार्थ को जन्म दिया। शादी के बाद हरिदास ने पद छोड़कर कानन का साथ दिया और 1952 से उनके प्रोडक्शन में बनने वाली फिल्में डायरेक्ट करना शुरू कर दीं। हरिदास ने कई हिट फिल्में डायरेक्ट कीं, लेकिन उन्हें हमेशा कानन देवी के नाम से ही पहचाना गया, ये भी दोनों के झगड़ों का एक कारण बना। झगड़ों की वजह बदलती गईं और आखिरकार 4 अप्रैल 1987 को हरिदास ने कानन का घर छोड़ दिया।
हरिदास ने कानन से रिश्ता तो खत्म कर लिया, लेकिन तलाक नहीं दिया। जब कानन बीमार रहने लगीं तो हरिदास ने ही उनका इलाज करवाया। कानन की आई सर्जरी में भी हरिदास ने साथ दिया। लंबी बीमारी के बाद 17 जुलाई 1992 में कानन का निधन हो गया, लेकिन हरिदास ने उनके अंतिम संस्कार में आना जरूरी नहीं समझा।