कौन थे भारत भूषण जिसके पास थीं एक लाख किताबें, जानिए

आज फिल्म एक्टर भारत भूषण की 104वीं जयंती है। फिल्मों में सबसे शरीफ एक्टर की बात की जाए तो भारत भूषण उसमें पूरी तरह फिट बैठते थे। बोलने, चलने के अंदाज से लेकर कपड़ों तक उन्हें फिल्मी दुनिया के सबसे शरीफ और शालीन एक्टर का दर्जा मिला हुआ है। 14 जून 1920 को मेरठ में जन्मे भारत भूषण अपने पिता की मर्जी के खिलाफ फिल्मों में आए। फिल्म बैजू बावरा से उन्हें सुपर स्टार माना गया।

वे अपने जमाने के सबसे स्टाइलिश एक्टर भी थे। एक कमरा भरकर कपड़े उनके कलेक्शन में हुआ करते थे। मुंबई और पुणे में तीन आलीशान बंगले और कोई एक लाख किताबों का कलेक्शन। अपने एक्टिंग करियर में इतनी सफलता देखने वाले भारत भूषण जब फिल्म प्रोड्यूसर बने तो कंगाली की कगार पर आ गए। तीनों बंगले, किताबें तक बिक गईं। वो फ्लैट में रहने लगे और फिल्मों में साइड रोल करने लगे।

आज उनकी 104वीं बर्थ एनिवर्सरी पर हमने बात की उनकी बेटी अपराजिता भूषण से। अपराजिता भी एक्टर हैं और 1987 में आए टीवी सीरियल रामायण में मंदोदरी के रोल के लिए जानी जाती हैं। अपराजिता ने अपने पिता की जिंदगी के कई अनछुए पहलुओं को हमारे साथ शेयर किया।
पापा जी (भारत भूषण) का जन्म 14 जून 1920 को मेरठ में हुआ था। उनके पिता रायबहादुर मोतीलाल भल्ला सरकारी वकील थे। जब वो दो साल के थे, तभी उनकी मां का स्वर्गवास हो गया। मां की मौत के बाद पिता ने उन्हें और उनके भाई को अलीगढ़ में दादा-दादी के पास भेज दिया।

बचपन से ही उनको फिल्में देखने का बहुत शौक था। एक बार पिता घर आए, लेकिन वो वहां मौजूद नहीं थे। पूछने पर पता चला कि वो फिल्म देखने गए थे। इस बात से पिता इतना नाराज हुए कि उन्होंने पापा जी की पिटाई कर दी। इन्हीं सब वजहों से दादा जी और उनमें अलगाव हो गया था।

दादा जी चाहते थे पापा जी वकील बनें
पापा जी और उनके दादा जी में फिल्मों को लेकर हमेशा से मतभेद रहा। पढ़ाई पूरी होने के बाद दादा जी चाहते थे कि वो भी उन्हीं की तरह वकील बने। वहीं पापा जी का सपना एक्टर बनने का था और वो अपनी बात पर अड़े रहे।

दादा जी के लाख मना करने के बाद भी वो फिल्मों में काम करने के लिए पहले कोलकाता गए और फिर मुंबई। कोलकाता इसलिए गए थे क्योंकि पहले वहीं अधिकतर फिल्में बनती थीं।
कई जगह ये लिखा है कि भारत भूषण की पहली फिल्म 1941 की चित्रलेखा थी, लेकिन इस बात को नकारते हुए अपराजिता बताती हैं, पापा जी की पहली फिल्म भक्त कबीर थी। हालांकि उन्हें पहचान 1952 की फिल्म बैजू बावरा से मिली थी।

फिल्म बैजू बावरा के पहले उन्होंने फिल्म मां में काम किया था। इसमें उनके काम को बहुत सराहना मिली। इसी दौरान किसी ने उनका रेफरेंस विजय भट्ट को दिया और इस तरह विजय भट्ट ने उन्हें इस फिल्म में कास्ट किया।

एक लाख किताबें, बंगलों और फोटोग्राफी के शौकीन थे
भारत भूषण महंगी गाड़ियों, कपड़ों और बंगलों के शौकीन थे। इस पर अपराजिता कहती हैं, फिल्म बैजू बावरा से पहले पापा जी ने सांताक्रूज में आशा पारेख के बंगले के बगल में एक बंगला लिया था। जब ये फिल्म हिट रही तो वो पाली हिल के एक बंगले में शिफ्ट हो गए थे, जो एक आलीशान बंगला था। पुणे में भी उनका एक शानदार बंगला था।

पापा जी बहुत स्टाइलिश थे। मुझे याद है पाली हिल के बंगले में एक पूरा कमरा उनके कपड़ों से भरा रहता था। उन्हें स्टाइलिश कपड़े पहनने का बहुत शौक था। उन्हें शेरवानी खास तौर से पसंद थी।

कपड़े के अलावा उन्हें किताबों का भी शौक था। उनकी एक पर्सनल लाइब्रेरी थी, जिसमें करीब एक लाख किताबें थीं। फोटोग्राफी के भी वो शौकीन थे। उनके पास कई कैमरे भी थे, जिनसे वो खूबसूरत तस्वीरें कैद करते थे। वो फोटोज के रील प्रोसेस पर भी खुद ही काम करते थे।
फिल्मों में भारत भूषण की इमेज बहुत ही शरीफ आदमी की थी। फैंस उनकी उसी इमेज के दीवाने थे। किस्सा शेयर करते हुए अपराजिता ने बताया, 1954 की फिल्म चैतन्य महाप्रभु की सफलता के बाद वो कहीं बैठ कर सिगरेट पी रहे थे। वहीं उनका एक फैन था, जो उन्हें सिगरेट पीते देख रहा था। उसे ये बात पसंद नहीं आई। फैन उनके पास गया और बोला – आपके हाथ में सिगरेट देखकर अच्छा नहीं लगा।

इस घटना के बाद तो मैंने भी पापा जी के हाथ में कभी सिगरेट नहीं देखी। हालांकि वो इन चीजों से बहुत दूर भी थे।
मधुबाला से शादी करना चाहते थे, बेटी बोलीं- मेरी मां की वो अच्छी दोस्त थीं
1958 की फिल्म फागुन में उन्होंने मधुबाला के साथ काम किया था। दोनों की केमिस्ट्री लोगों को बहुत पसंद आई। खबरें सामने आई थीं कि शूटिंग के दौरान भारत भूषण मधुबाला को पसंद करने लगे थे और शादी भी करना चाहते थे, लेकिन मधुबाला ने किशोर कुमार से शादी कर ली।

इस बात पर अपराजिता कहती हैं, मुझे इस बारे में नहीं पता। बस इतना पता है कि मधुबाला जी मेरी मां सरला की बहुत अच्छी दोस्त थीं। घर पर उनका आना-जाना लगा रहता था। मैंने सुना है कि जब मेरी पैदाइश के वक्त मां सरला का निधन हो गया, तब उन्होंने कहा था- मैंने अपनी सबसे अच्छी दोस्त को खो दिया।

मुझे भी उनसे मिलने का मौका मिला। उनकी मौत के पहले उन्होंने पापा जी से हमें मिलाने के लिए कहा था, तब मैं उनसे मिलने गई थी।

पापा जी अपनी पर्सनल लाइफ के बारे में ज्यादा बात नहीं करते थे। वो बहुत रिजर्व थे। को-स्टार के बारे में भी बहुत ज्यादा बाद नहीं करते थे। इस वजह से मुझे ये बात नहीं पता।
एक्टिंग करने के बाद पापा जी ने अपने बड़े भाई के कहने पर प्रोडक्शन में भी हाथ आजमाया। उनकी प्रोड्यूस की गईं बस दो फिल्में बसंत बहार और बरसात की रात हिट रहीं। फिर उन्होंने और भी फिल्में प्रोड्यूस कीं। 1964 की फिल्म दूज का चांद में उन्होंने अपनी सारी जमा-पूंजी लगा दी थी, लेकिन फिल्म बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप रही।
हालांकि इतनी खराब स्थिति के बाद भी उन्होंने किसी के सामने हाथ नहीं फैलाए। उन्होंने काम करना नहीं छोड़ा। जब उन्हें अपनी लाइब्रेरी से किताबें बेचनी पड़ीं, तो वो जरूर टूट गए क्योंकि किताबें ही थीं, जिनके सहारे वो अपने दुख को कम किया करते थे। उनकी किताबों की देखभाल मैं ही करती थीं। उन्हें अपने पास रखना चाहती थी, लेकिन किसी कारणवश वो मैं कर ना सकी, जिसका अफसोस मुझे आज भी है।

जब ये सब हुआ, तब मैं 12 साल की थी। जब मैं शादी के बाद मां बनी, तब मैंने पापा जी से पूछा कि उन्होंने इन सब परेशानियों को कैसे फेस किया? उन्होंने कहा- ‘तुम भी तो देव साहब की फैन हो। उनका गाना ‘जिंदगी का साथ निभाता चला गया’ के हिसाब से मैं अपनी लाइफ जीता हूं। जीवन के जिस पड़ाव पर जो मिलता है, उसी को तकदीर मानकर खुश रहना चाहिए। जिन चीजों को मैंने खो दिया है, उनका मुझे बिल्कुल भी अफसोस नहीं है।’

शायद वो किस्मत की बात थी कि प्रोडक्शन में बनी दो फिल्म हिट रही, बाकी फ्लाॅप। इसके लिए किसी इंसान को दोष देना गलत होगा। स्थिति खराब हो जाने के बाद भी पापा जी और उनके भाई के बीच कोई मतभेद नहीं हुए। वो अपने भाई से बहुत प्यार करते थे।

पापा जी ने कभी वॉचमैन की नौकरी नहीं की
खबरें ये सामने आई थीं कि भारत भूषण आखिरी समय में बस से जाते थे और उन्होंने गुजारे के लिए वॉचमैन की नौकरी की थी। इस बात को अपराजिता ने सिरे से नकार दिया और कहा- ये सारी बातें बेबुनियाद हैं। हां, पापा जी के पास आखिरी समय में गाड़ियां नहीं थीं, लेकिन फिर भी उन्होंने कभी भी बस से ट्रैवल नहीं किया। वो फिल्मों के सेट पर टैक्सी से जाया करते थे। जब कभी लेट हो जाएं तो वो रिक्शा कर लिया करते थे।

भला उन्हें वॉचमैन की नौकरी क्यों करनी पड़ेगी। सारी प्रॉपर्टी बिक जाने के कुछ समय बाद उन्होंने बांद्रा में एक 3 BHK फ्लैट खरीद लिया था। अंतिम समय में वो वहीं रहे थे। इतना ही नहीं, मेरी बड़ी बहन अनुराधा के लिए उन्होंने एक बड़ा सा घर रेंट पर लिया था।27 जनवरी 1992 को भारत भूषण का निधन हो गया था। मौत के 15 दिन पहले उन्होंने अपराजिता से मुलाकात की थी। इस दिन को याद करते हुए वो कहती हैं, एक दिन मैं फिल्म की शूटिंग में बिजी थी। तभी एक मेकअप दादा ने आकर बताया कि बगल वाले सेट पर पापा जी शूटिंग कर रहे हैं। बहुत दिनों से मैं उनसे मिली नहीं थी, तो मैं भाग कर उनसे मिलने गई। वो अपना शाॅट दे रहे थे। जैसे ही उन्होंने मुझे देखा, वो मेरे पास आए और लगभग 5-6 मिनट बात की। फिर दूसरा शॉट देने चले गए। मैं तब तक उनका इंतजार करती रही।

फिर वो वापस आए और 10-15 मिनट मुझे से बात की। जैसे वो जाने लगे, मैंने कहा- पापा जी आप जा रहे हैं? इस पर उन्होंने कहा- हां बेटा, मेरा पैकअप हो गया है। सच में उनका पैक हो गया था। इस मुलाकात के ठीक 15 बाद उनकी मौत हो गई थी।

खबरें तो ये भी थीं कि उनकी बाॅडी को ट्रक में लादकर ले जाया गया था, जो कि सरासर झूठ है। लोगों को पता नहीं मरे हुए इंसान के बारे में ऐसी बातें करते हैं। निधन के बाद उनका अंतिम संस्कार भी बहुत ही अच्छे तरीके से हुआ था। कई नामी लोग इसमें शामिल हुए थे, जो इसके गवाह हैं।