कौन थी भानु अथैया जिन्होंने हिंदी सिनेमा का पहला ऑस्कर जीता, आइये जानते हैं उनके बारे में

1983 में भानु अथैया ने ऑस्कर जीतकर हिंदी सिनेमा में इतिहास रचा। ये ऑस्कर जीतने वाली पहली भारतीय थीं। भानु हिंदी सिनेमा की जानी-मानी फैशन डिजाइनर थीं। उन्हें फिल्म गांधी के लिए बेस्ट कॉस्ट्यूम डिजाइनर का अवॉर्ड मिला था।

उन्होंने देव आनंद की फिल्म सीआईडी, गुरु दत्त की फिल्म कागज के फूल से लेकर आमिर की लगान और शाहरुख की स्वदेस जैसी सैकड़ों फिल्मों के लिए कॉस्टयूम डिजाइन किए। इन्हें ऑस्कर के अलावा दो नेशनल और फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से भी नवाजा गया था।

कामयाबी और शोहरत से भरी भानु अथैया की जिंदगी के आखिरी कुछ साल बेहद दर्दनाक रहे। ब्रेन ट्यूमर होने के बाद इनका आधा शरीर काम करना बंद कर चुका था, नतीजतन 3 साल ये बिस्तर पर रहीं। इनकी जिंदगी में एक समय ऐसा भी आया, जब इन्होंने ऑस्कर अवॉर्ड लौटा दिया।
भानु ने 1956 की फिल्म सीआईडी से हिंदी सिनेमा के लिए कॉस्ट्यूम डिजाइनिंग शुरू की। उनकी पहली फिल्म के हीरो देव आनंद थे। आगे उन्होंने गुरु दत्त के साथ प्यासा, चौदहवीं का चांद, साहेब बीवी और गुलाम जैसी कई फिल्में कीं। फिर मेरा नाम जोकर, जॉनी मेरा नाम, तेरे मेरे सपने, सत्यम शिवम सुंदरम, रजिया सुल्तान, राम तेरी गंगा मैली, मिस्टर नटवरलाल, हिना, अग्निपथ जैसी कई सुपरहिट फिल्मों के लिए कॉस्ट्यूम डिजाइन किए। शाहरुख खान की फिल्म स्वदेस और आमिर खान की फिल्म लगान में भी इन्होंने कॉस्टयूम डिजाइन किए थे।
भानु का जन्म 28 अप्रैल 1929 को कोल्हापुर, महाराष्ट्र के ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता अन्नासाहेब मशहूर फिल्ममेकर बाबूराव पेंटर के लिए फोटोग्राफी करते थे। ये 7 भाई-बहनों में तीसरी थीं। जब भानु 11 साल की हुईं तो पिता की मौत हो गई। भानु बचपन से ही आर्ट्स में रुचि रखती थीं। इसी वजह से इन्होंने जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट्स, मुंबई में दाखिला लिया। इतनी टैलेटेंड थीं कि 1951 में उन्हें कॉलेज के दिनों में आर्ट वर्क ‘लेडी इन रीपोज’ के लिए ऊषा देशमुख गोल्ड मेडल से नवाजा गया था।
कॉलेज के दिनों में भानु प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट ग्रुप का हिस्सा बन गईं। इस ग्रुप से जुड़ने वाली भानु पहली महिला थीं। इसके अलावा भानु विमेन मैगजीन ईव्स वीकली और फैशन एंड ब्यूटी के लिए भी फैशन इलस्ट्रेशन तैयार करती थीं।
कुछ सालों बाद जब मैगजीन ईव्स वीकली के एडिटर ने एक फैशन बुटीक खोला तो उन्होंने भानु को ड्रेस डिजाइन करने का ऑफर दिया। बुटीक में दिए गए भानु के डिजाइन इतने पसंद किए जाने लगे कि उन्होंने मैगजीन की नौकरी छोड़कर फैशन डिजाइनिंग में अपना करियर बनाया।
डिजाइनिंग में माहिर थीं तो भानु को गुरु दत्त की टीम में जगह मिल गई। उनकी पहली फिल्म 1956 की सीआईडी रही। बेहतरीन डिजाइनिंग करते हुए भानु ने 100 से ज्यादा फिल्मों में काम किया।
1980 की बात है तब भानु अथैया को फिल्मों में काम करते हुए 25 साल हो चुके थे। भानु हिंदी फिल्मों के अलावा इंटरनेशनल फिल्म सिद्धांता के लिए कॉस्ट्यूम डिजाइन कर चुकी थीं, जिसे कोनरेड रूक ने डायरेक्ट किया था। फिल्म की हीरोइन रहीं सिमी ग्रेवाल, भानु की अच्छी दोस्त थीं।

इसी दौरान करीब 17 सालों तक लगातार भारत के चक्कर लगाने के बाद हॉलीवुड फिल्ममेकर रिचर्ड एटनबरो ने गांधी पर फिल्म बनाने का फैसला किया। रिचर्ड जानते थे कि भारत में कई तरह की भाषा, धर्म और कल्चर के लोग रहते हैं। वो हॉलीवुड फिल्म गांधी में कोई कमी नहीं छोड़ना चाहते थे, ऐसे में उन्हें ऐसे अनुभवी डिजाइनर की जरूरत थी, जो भारतीय कल्चर को समझता हो।

फिल्म गांधी की भारत में कास्टिंग की जिम्मेदारी कास्टिंग डायरेक्टर डॉली ठकोरे के पास थी। उन्होंने सिमी ग्रेवाल से भानु से मुलाकात करवाने को कहा। उस समय भानु के पास टेलीफोन नहीं था तो प्रोडक्शन के लोग सीधे उनके वर्कशॉप पहुंच गए। भानु ये फिल्म करने से घबरा रही थीं, लेकिन सिमी के मनाने पर वो राजी हो गईं।
सिमी ने भानु की डायरेक्टर रिचर्ड एटनबरो से मीटिंग फिक्स करवाई और कहा कि अच्छे कपड़े पहनकर जाना। रिचर्ड ने 15 मिनट की बातचीत में जान लिया कि भानु को भारत की अच्छी समझ है। 15 मिनट बाद ही रिचर्ड ने अपनी टीम को कॉल कर रहा हमें कॉस्ट्यूम डिजाइनर मिल गई है।
फिल्म के लीड एक्टर्स के अलावा भानु को भीड़ में नजर आए हर एक शख्स के लिए कपड़े तैयार करने थे। वो रोजाना अपने 9 असिस्टेंट्स के साथ सुबह 5 बजे सेट पर पहुंचती थीं और रात के 9 बजे तक डिजाइनिंग करती थीं। दिन-रात कॉस्ट्यूम डिजाइनिंग करने के बाद जब फिल्म बनकर तैयार हुई तो इसे देखने तत्कालीन प्रेसिडेंट ज्ञानी जैल सिंह भी पहुंचे थे।
1982 में फिल्म गांधी भारत और यूएस में रिलीज हुई और चर्चा में रही। 22 मिलियन डॉलर में बनी इस फिल्म ने 127 मिलियन डॉलर का कलेक्शन किया था। साथ ही फिल्म रिलीज के बाद गांधी और नेहरू के किरदार द्वारा फिल्म में पहले गए कपड़े विदेश में पहने जाने लगे। सबसे ज्यादा क्रेज खादी के कपड़ों, धोती और नेहरू जैकेट का रहा।
जब भानु अथैया 55वें ऑस्कर अवॉर्ड में बेस्ट कॉस्ट्यूम डिजाइनर की कैटेगरी में नॉमिनेशन मिलने के बाद सेरेमनी में पहुंचीं तो हर कोई अनाउंसमेंट से पहले ही जानता था कि उन्हें ही अवॉर्ड मिलेगा। भानु के दोस्त ने सेरेमनी में ही कहा, मैं जानता हूं कि ये अवॉर्ड तुम्हें ही मिलेगा, क्योंकि तुम डिजर्विंग हो।

जिन लोगों को भानु के साथ नॉमिनेट किया गया था वो भी यही कह रहे थे कि आपने जो काम किया है उसका दायरा बहुत बड़ा है और हम आपको कॉम्पिटिशन नहीं दे सकते। जैसे ही भानु के नाम का अनाउंसमेंट हुआ तो पूरा ऑडिटोरियम तालियों से गूंज उठा, तालियां बजाने वालों में हॉलीवुड डायरेक्टर रिचर्ड भी शामिल थे।
फिल्म चांदनी के गाने मेरे हाथों में नौ-नौ चूड़ियां हैं में भानु अथैया ने ही श्रीदेवी के कॉस्टयूम डिजाइन किए थे। फिल्म में पहने गए श्रीदेवी के सभी कॉस्टयूम उन दिनों लड़कियों के लिए ट्रेंडसेटर साबित हुए थे।

ऐसे ही 1978 की सत्यम शिवम सुंदरम में गांव की लड़की बनीं जीनत अमान ने भी इन्हीं के डिजाइन किए कॉस्टयूम पहने थे। फिल्म ब्रह्मचारी के गाने आज कल तेरे मेरे प्यार के चर्चे हर जुबान पर गाने में नारंगी रंग की साड़ी पहनकर थिरक रहीं मुमताज की डिजाइनर भी यही रहीं।
फिल्म अजूबा में अमिताभ बच्चन का लुक हो या फिर फिल्म राम तेरी गंगा मैली में मंदाकिनी द्वारा पहने गए सारे कॉस्टयूम, ये सब भानु ने ही डिजाइन किए।
भानु ने 1950 में लिरिसिस्ट सत्येंद्र अथैया से शादी की और 1957 में अपना नाम भानुमति से भानु अथैया कर लिया। 2004 में पति की मौत हो गई तो भानु और उनकी बेटी राधिका गुप्ता अकेली पड़ गईं। 2012 में उन्हें ब्रेन ट्यूमर का पता चला। इसी साल उन्होंने ऑस्कर वापस लौटाने का फैसला किया। भानु को लगता था कि उनके बाद परिवारवाले ऑस्कर को सहेज कर नहीं रख पाएंगे, ऐसे में उन्होंने अपनी ट्रॉफी ऑस्कर बोर्ड को लौटा दी।

2010 में उन्होंने आर्ट ऑफ कॉस्ट्यूम डिजाइनिंग नाम की एक बुक लॉन्च की, जिसकी एक कॉपी उन्होंने दलाई लामा को भी दी थी। 2009 में भानु को फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था। गांधी फिल्म के लिए ऑस्कर मिलने के अलावा 2002 में फिल्म लगान और 1991 में फिल्म लेकिन के लिए नेशनल अवॉर्ड भी मिला
ब्रेन ट्यूमर से हुए कॉम्प्लिकेशन के कारण भानु का आधा शरीर पैरालाइज्ड हो गया। 3 साल तक उनकी जिंदगी बिस्तर पर कटी। 15 अक्टूबर 2020 को उनका साउथ मुंबई के मेडिकल सेंटर में निधन हो गया।