दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल बुधवार को लखनऊ में सपा कार्यालय पहुंचे। यहां पर अखिलेश यादव और शिवपाल यादव के साथ मुलाकात की। उनके साथ पंजाब के सीएम भगवंत मान भी थे। आपस में बात करने के बाद अखिलेश यादव, अरविंद केजरीवाल और भगवंत मान ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की।
लखनऊ कोर्ट परिसर में हुए हत्याकांड पर अखिलेश ने कहा, “अगर हम कुछ बोलेंगे तो कहेंगे समाजवादी पार्टी ने मरवा दिया। ये कैसा लॉ एंड ऑर्डर है। जहां चाहो, वहां मार दो। सरकार ने खुली छूट दे रखी है। क्या पता आप लोग में ही कोई बैठा है, जो निकल कर यहां गोली मार दे।”
अखिलेश यादव ने कहा, “अगर हम पूरे यूपी का लॉ एंड ऑर्डर देखें तो लगातार यूपी में कार्यवाहक DGP क्यों हैं? इसका मतलब क्या है? जबकि सबसे ज्यादा महिलाएं और बेटियां यूपी में असुरक्षित हैं। नोएडा में आए दिन घटनाएं हुआ करती हैं। कल बस्ती में FIR के लिए धरना दिया जा रहा था। नोएडा में पांच महीने में 88 रेप हुए हैं। कन्नौज के एक सांसद पुलिस को चौकी में घुसकर पीटते हैं। इसके बाद खुलेआम कार्यक्रम में जा रहे हैं। पुलिस कस्टडी में जान जा रही है। अगर सांसद को पुलिस नहीं पकड़ पा रही है तो हमें सपा को बता दें कि हम पकड़ लेंगे।”
अरविंद केजरीवाल ने कहा, “दिल्ली के लोगों ने लंबा संघर्ष किया। वोट डालकर सरकार को चुना और उम्मीद करते हैं कि उनकी जरूरतें पूरी हों। 2015 में हमारी सरकार बनी। 2 महीने बाद मोदी सरकार ने हमारी पावर छीन ली। उसके बाद भी हम भारी बहुमत से जीते, क्योंकि जनता हमारे साथ थी। लेकिन फिर से हमारे खिलाफ राजनीति की गई। हमारी सरकार फिर से बनते ही केंद्र सरकार ने अधिकारियों को विनियमित करने की शक्ति हमसे छीन ली। बाद में हम 8 साल बाद फिर जीते।”
पंजाब के सीएम भगवंत मान ने कहा, “यह सिर्फ दिल्ली के लोगों की लड़ाई नहीं है, बल्कि 140 करोड़ लोगों के अधिकारों को बचाने की लड़ाई है। भाजपा सिर्फ एक चुनी हुई सरकार को परेशान करना जानती है। जनता जल्द की उनको सबक सिखाएगी।”
हालांकि, केजरीवाल की अखिलेश से मुलाकात का मकसद केंद्र के अध्यादेश को कानून बनने से रोकना है। यह मकसद तभी पूरा हो सकता है, जब केजरीवाल को कांग्रेस का भी सपोर्ट मिले। कांग्रेस के सपोर्ट बिना केंद्र के प्रस्ताव को राज्यसभा में रोकना नामुमकिन है। कांग्रेस के अलावा उनको अन्य सभी विपक्षी दलों का साथ भी चाहिए होगा।
राज्यसभा में अध्यादेश कानून आने और उस पर मतदान होने की स्थिति में 233 सांसद वोट करेंगे। यानी अध्यादेश को कानून में बदलने के लिए 117 सांसदों का समर्थन होना किसी भी पक्ष के लिए जरूरी है। राज्यसभा में भाजपा के अकेले 92 सांसद हैं। साथ ही उसे अपने सहयोगी दलों के कुछ सांसदों का समर्थन भी हासिल है। इसके बावजूद भाजपा को विपक्षी दलों के कुछ ही सांसदों को अपने खेमे में करने की जरूरत है।
वहीं, AAP के राज्यसभा में तीन सांसद हैं। भाजपा के बाद राज्यसभा में सबसे ज्यादा 31 सांसद कांग्रेस के हैं। यानी कांग्रेस का समर्थन हासिल किए बगैर सीएम अरविंद केजरीवाल किसी हालात में केंद्र सरकार की सियासी मुहिम को विफल करने की स्थिति में नहीं होंगे। राज्यसभा में सपा के केवल आठ सांसद हैं। हालांकि, ये सांसद संख्या के लिहाज से काफी मायने रखते हैं। लेकिन सपा के दम पर भाजपा की रणनीति फेल करना संभव नहीं है।
दरअसल, दिल्ली सरकार की शक्तियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल के पक्ष में फैसला सुनाया था। इसके बाद केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ 19 मई को अध्यादेश जारी कर दिया। ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार फिर से उपराज्यपाल के अधिकार क्षेत्र में आ गया। हालांकि यह अध्यादेश सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ था। इसी अध्यादेश के खिलाफ आम आदमी पार्टी केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले है।
केजरीवाल 23 मई से देशव्यापी यात्रा पर हैं, जहां वह इस अध्यादेश के खिलाफ विपक्षी दलों से समर्थन मांग रहे हैं। उन्होंने ममता बनर्जी, उद्धव ठाकरे, हेमंत सोरेन, के. चंद्रशेखर राय, एमके स्टालिन, शरद पवार, नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव से मुलाकात की है। आज अखिलेश यादव से मुलाकात की।