कौन है इंदुरानी जिसने चलाया गोविंदा का घर, मीना कुमारी भी थीं कर्जदार

1931 में रिलीज हुई फिल्म आलम आरा के बाद बोलती फिल्मों का दौर आया, तो कई नए कलाकारों को हिंदी सिनेमा से जुड़ने का मौका मिला। इन नए कलाकारों में से एक थीं इंदुरानी। असली नाम तो इनका इशरत जहां था, लेकिन मुस्लिम परिवार की इशरत जब फिल्मों में आईं तो पिता ने इन्हें इंदु नाम दिया। पहले तो पिता इंदुरानी को फिल्मों में भेजने के खिलाफ थे, लेकिन जब वो जुआरी बने तो उन्होंने अपने खर्च के लिए बेटियों को हथियार बनाया। इंदुरानी फिल्मों में आईं और अपने हुनर से बोलती फिल्मों की स्टार बन गईं, लेकिन चंद गलत फैसलों और बच्चे की मौत के सदमे से इनका करियर बर्बाद हो गया।

इन सबसे इतर इंदुरानी 1940 में भारत की सबसे कम उम्र में घर खरीदने वाली लड़की थीं। फिल्मों में काम करते हुए इन्होंने मीना कुमारी और गोविंदा के पिता अरुण आहूजा की भी आर्थिक मदद की। कई बार तो ऐसा भी हुआ, जब लोगों ने इनकी मदद करने की आदत का फायदा उठाया
इशरत जहां इमामुद्दीन उर्फ इंदुरानी का जन्म 22 जून 1922 को दिल्ली के एक मिडिल क्लास परिवार में हुआ था। ये 7 भाई-बहनों में तीसरी थीं। इंदुरानी की मां मुनव्वर जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी की पहली फीमेल स्टूडेंट थीं। ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद मुनव्वर शाही घराने की डॉक्टर बनीं। इंदुरानी के पिता शेख इमामुद्दीन के पास 17 तांगे थे, जिनका इस्तेमाल वो मिशन गर्ल्स उर्दू स्कूल की फीमेल स्टूडेंट्स को स्कूल छोड़ने के लिए किया करते थे। ऐसे ही इशरत और उनकी बहनों को भी पढ़ने में मदद मिली। एक्ट्रेस सायरा बानो की मां नसीम बानो भी उसी स्कूल की स्टूडेंट थीं।
इंदुरानी की बड़ी बहन रोशन बचपन से ही बेहद बागी तेवर की थीं। एक दिन उन्होंने अपनी कुछ तस्वीरें सरस्वती सिनेटोन फिल्म स्टूडियो को भेज दीं। रोशन की तस्वीरें बेहद खूबसूरत थीं, तो उन्हें कुछ ही समय में 300 रुपए प्रति महीने की तनख्वाह पर स्टूडियो से ऑफर मिल गया। जैसे ही इस बात की खबर पिता इमामुद्दीन को लगी, तो उन्होंने पिटाई कर दी। पिता रूढ़िवादी सोच के थे, जो घर की लड़कियों को फिल्मों में भेजने के सख्त खिलाफ थे।
कुछ समय बाद इंदुरानी के पिता को जुए की लत लग गई। सारी कमाई खत्म होने लगी और परिवार गरीब हो गया। गरीबी में रूढ़िवादी पिता ने भी अपने विचार बदल लिए। कमाई की लालच में वो खुद इंदुरानी और उनकी बड़ी बहन रोशन को अपने साथ पुणे ले आए, जहां कई फिल्में बन रही थीं। उस समय 12 साल की इंदुरानी 8वीं क्लास में थीं।
1931 में पहली बोलती फिल्म आलम आरा रिलीज हुई थी। बोलती फिल्मों का दौर आया तो सभी फिल्ममेकर ऐसे नए लड़कों और लड़कियों की तलाश में थे, जो सुंदर दिखने के साथ-साथ हिंदी और उर्दू बोलने में माहिर हों। पुणे आते ही इंदुरानी और रोशन को दादा साहेब फाल्के के फिल्म स्टूडियो सरस्वती सिनेटोन में काम मिल गया।
पिता ने दोनों बेटियों को फिल्मों में तो लगा दिया था, लेकिन मुस्लिम समुदाय को इस बात से आपत्ति थी। लोगों के तानों से बचने के लिए पिता ने दोनों बेटियों के नाम बदल दिए। इशरत का नाम इंदुरानी रखा और रोशन का सरोजिनी। इनके अलावा भी उस जमाने में ज्यादातर आर्टिस्ट हिंदू नाम रखकर ही फिल्मों में आए थे, जैसे यूसुफ खान- दिलीप कुमार बने और महजबीं बानो- मीना कुमारी।
सरस्वती सिनेटोन में इंदुरानी और सरोजिनी को 300 रुपए महीने तनख्वाह पर काम मिला था। जैसे ही काम मिला तो पिता ने दोनों बेटियों की तनख्वाह एडवांस में ली और दोनों को पुणे में उनकी नानी के घर छोड़कर खुद दिल्ली लौट गए।
इंदुरानी को पहली फिल्म सावित्री मिली थी, जिसमें उन्हें एक साइड रोल दिया गया था। ये फिल्म फ्लॉप हो गई और दादा साहेब फाल्के को बड़ा नुकसान हुआ। इस नुकसान से उबरने के लिए उन्हें स्टूडियो बेचना पड़ा। सरस्वती सिनेटोन बंद होने से दोनों बहनों पर मुसीबत आ गई। ना काम था, ना कमाई का दूसरा कोई जरिया।
साथ काम करते हुए दोनों की मराठी एक्टर वसंतराव पहलवान से अच्छी पहचान हो गई थी, जिनकी मदद से दोनों ने बॉम्बे (अब मुंबई) आने का फैसला किया। वंसतराव की मदद से दोनों ने दादर की हिंदू कॉलोनी में एक किराए का कमरा ले लिया।
कुछ पहचान वालों की मदद से इंदुरानी को दरयानी प्रोडक्शन की फिल्म फिदा-ए-वतन (1936) मिली। आगे उन्हें प्रतिमा (1936), बुलडॉग (1937), इंसाफ (1937) जैसी कई और फिल्में मिलीं। फिल्मों में लगातार काम करते हुए इंदुरानी एक नामी एक्ट्रेस बन गईं।

अपनी शर्तों पर साइन करती थीं फिल्में
पूरी इंडस्ट्री में इंदुरानी और सरोजिनी की चर्चा होने लगी। दोनों काम के अलावा कभी घर से बाहर नहीं निकलती थीं, ऐसे में प्रोड्यूसर्स ही उन्हें साइन करने घर आया करते थे। सबसे पहले वी. शांताराम ने इंदुरानी को अपने प्रोडक्शन में 300 रुपए प्रति महीना की नौकरी ऑफर की।

इंदुरानी को ऑफर तो पसंद था, लेकिन उन्होंने शर्त रखी कि वो तब ही काम करेंगी जब उनकी बहन सरोजिनी और उनके दोस्त वसंतराव पहलवान को भी काम मिलेगा। सरोजिनी के लिए तो वी. शांताराम मान गए, लेकिन उस समय वसंतराव के लिए कोई काम नहीं निकल सका, ऐसे में इंदुरानी ने भी ये ऑफर ठुकरा दिया।
एक दिन सोहराब मोदी ने दोनों बहनों को अपने स्टूडियो मिनर्वा मूवीटोन बुलाया और 450 रुपए प्रति महीना की नौकरी ऑफर की। स्टूडियो में इंदुरानी की नजर अपने जमाने की सबसे बोल्ड एक्ट्रेस लीला चिटनिस पर पड़ी, जो सिगरेट पीती थीं। उन्हें देखकर इंदुरानी ऐसी इम्प्रेस हुईं कि खुद भी उनकी नकल करते हुए सिगरेट पीने लगीं।
इंदुरानी काम को लेकर ऐसी जुनूनी थीं कि एक दिन में डबल शिफ्ट में काम कर पैसे जमा किया करती थीं। लगातार काम करते हुए इंदुरानी ने इतने पैसे जुटा लिए कि उन्होंने महज 18 साल की उम्र में मुंबई के सांताक्रूज में अपना आलीशान बंगला खरीद लिया। उस जमाने में द टाइम्स ऑफ इंडिया ने अपने फ्रंटपेज पर ये स्टोरी छापी थी कि इंदुरानी 18 साल की उम्र में मुंबई में घर खरीदने वाली पहली एक्ट्रेस हैं। उनका घर उस जमाने के फेमस आर्किटेक्ट नूरानी ने डिजाइन किया था।
फिल्म इंसाफ और प्रतिमा में काम करते हुए इंदुरानी को अपने को-स्टार प्रेम अदीब से प्यार हो गया। प्रेम अदीब एक कश्मीरी पंडित थे और इंदुरानी एक मुस्लिम। कुछ समय साथ रहने के बाद इंदुरानी जान चुकी थीं कि प्रेम कभी शादी के लिए अपने परिवार के खिलाफ खड़े होने का साहस नहीं जुटा सकेंगे। ये जानते ही इंदुरानी ने अपना रिश्ता खत्म कर लिया।
मोहन पिक्चर के रमणिकलाल ने दोनों बहनों को 500 रुपए प्रति महीने का ऑफर दिया। ये रकम मिनर्वा मूविटोन से मिलने वाली रकम से काफी ज्यादा थी, साथ ही 500 रुपए 30 के दशक में काफी ज्यादा थे।

दोनों बहनों ने ये ऑफर एक्सेप्ट कर लिया, लेकिन इससे उनके मिनर्वा मूविटोन के साथ काम करने के दरवाजे भी बंद हो गए। उस जमाने में मिनर्वा मूविटोन स्टूडियो काफी पॉपुलर था, लेकिन एक बार स्टूडियो छोड़कर जाने वाले को दोबारा उनकी फिल्मों में जगह नहीं मिलती थी। दोनों ही बहनें इंडस्ट्री में नई थीं और उन्हें सलाह देने वाला भी कोई नहीं था।
1939 में महज 17 साल की उम्र में इंदुरानी ने मोहन पिक्चर के मालिक रमणिकलाल शाह से सीक्रेट शादी कर ली। शादी के बाद जब इंदुरानी 1942 में पहली बार मां बनने वाली थीं तो जन्म से पहले ही बच्चे की मौत हो गई। इस सदमे से इंदुरानी डिप्रेशन में चली गईं।
इंदुरानी की हालत इतनी खराब थी कि उनके पति रमणिकलाल ने उन्हें हालत सुधरने तक फिल्मों से दूर रखा, लेकिन इसका असर ऐसा हुआ कि इंदुरानी को फिल्में मिलना बंद हो गईं।
इंदुरानी और उनके पति रमणिकलाल लोगों की बढ़-चढ़कर मदद करते थे। जब मीना कुमारी बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट फिल्म इंडस्ट्री में आई थीं, तब उनके घर की आर्थिक स्थिति बेहद खराब थी। जब मीना कुमारी के पिता ने इंदुरानी और उनके पति से मदद मांगी तो उन्होंने बिना सोच-विचार किए उन्हें 5 हजार रुपए दे दिए। कुछ सालों बाद जब मीना कुमारी स्टार बनीं तो उन्होंने ये रकम चुकानी चाही, लेकिन दोनों ने वापस लेने से इनकार कर दिया। यही कारण था कि मीना कुमारी इनका बेहद सम्मान करती थीं।सिंगर निर्मला देवी (गोविंदा की मां) और इंदुरानी अच्छी दोस्त हुआ करती थीं। जब इंदुरानी को पता चला कि निर्मला के पति अरुण आहूजा (गोविंदा के पिता) के फिल्मों में लगाए पैसे डूब गए हैं, तो इंदुरानी ने ही दो महीनों तक पूरे परिवार का खर्च उठाया था। अरुण आहूजा ने कर्जे से निकलने के लिए अपना जुहू स्थित बंगला बेच दिया और विरार में एक छोटे से घर में आकर बस गए। बंगला बेचने से जो पैसे जमा हुए, उससे अरुण ने इंदुरानी का कर्ज उतारा था।
40 के दशक के पॉपुलर डायरेक्टर, एक्टर और प्रोड्यूसर नजीर एक दिन अपनी लग्जरी रोल्स रॉयस से इंदुरानी से मिलने उनके घर पहुंचे। नाजिर के साथ उनकी पत्नी और उस जमाने की नामी एक्ट्रेस स्वर्णलता भी पहुंची थीं। बातों-ही-बातों में दोनों ने इंदुरानी से एक बड़ी रकम मांगी और वादा किया कि जल्द ही लौटा देंगे। इंदु ने उन पर विश्वास किया और तुरंत रकम दे दी, लेकिन कुछ समय बाद ही दोनों बिना पैसे लौटाए पाकिस्तान भाग गए।
शादी के बाद 1943 तक इंदुरानी को फिल्में मिलनी लगभग बंद हो गईं, जो चंद फिल्में उन्होंने पहले की थीं, बस वही साल दर साल रिलीज हो रही थीं। एक बच्चे की मौत के बाद इंदुरानी के 5 बच्चे हुए। इंदुरानी पढ़ाई-लिखाई की अहमियत जानती थीं, यही कारण था कि उन्होंने अपने सभी बच्चों को मुंबई के मिशनरी स्कूल और सेक्रेड ब्वॉयज जैसे नामी स्कूल में पढ़ाया। आगे की पढ़ाई के लिए इंदुरानी ने अपने सभी बच्चों को यूएस भेजा था। जब 1978 में उनके पति रमणिकलाल शाह का निधन हुआ तो वो भी भारत में सब छोड़कर बच्चों के पास रहने यूएस चली गईं। जिंदगी के आखिरी 35 साल इंदुरानी ने यूएस में ही गुजारे
आप जैसा कोई मेरी जिंदगी में आए गाने को आवाज देने वाली सिंगर नाजिया हसन। महज 15 साल की उम्र में पाकिस्तानी सिंगर नाजिया ने फिल्मफेयर अवॉर्ड कर ऐसा रिकॉर्ड बनाया था, जो आज भी कायम है। दुनिया नाजिया की आवाज की दीवानी थी, लेकिन उनकी निजी जिंदगी दर्दनाक थी। जिस बिजनेसमैन से इनकी शादी हुई वो इन्हें पीटता था। कई बार तो पति ने ही इन्हें जहर देने की कोशिश की। पति के धोखे, मारपीट और तनाव का असर इनकी हेल्थ पर पड़ा और महज 35 साल की उम्र में ये दुनिया से रुख्सत हो गईं।