कौन किसकी सुध ले, आज भी गटर में मरते हैं लोग : आदर्श कुमार

हम किस युग में जी रहे हैं? मानव जीवन का क्या कोई मूल्य नहीं रह गया है? हमारा देश तरक्की कर रहा है। स्मार्ट सिटी बन रहे हैं। लेकिन हम हृदय विहीन होते जा रहे हैं। नगरों में हो रही सीवर सफाई के दौरान सफाई कर्मचारियों की मौतों पर हम मुँह बंद किये बैंठे हैं। इंसानों से सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई करवाना बंद करने की सालों से उठ रही मांगों के बावजूद यह अमानवीय काम आज भी जारी है। इसी के साथ ही सीवर और सेप्टिक टैंकों में हर साल कई लोगों की जान जा रही है। उदारणतः 40 साल पहले एनसीआर में सीवर सफाई के दौरान जहरीली गैसों से कमर्चारियों की मौतें होती थी, वो आज भी हो रही हैं जबकि इन वर्षाे के दौरान ऐसी मौतों को रोकने के लिए कई प्रावधान बनाए गए। अत्याधुनिक मशीनें, उपकरण, रोबोट आदि इस काम के लिए निर्माण किए गए। लेकिन सीवर सफाई के दौरान हो रही मौतों का सिलसिला थम नहीं रहा है। एक गाइडलाइन में सीवर सफाई के लिए 45 प्रकार के सुरक्षा उपकरण मुहैया कराए जाने की बात की गई है, लेकिन वह मात्र कागजों तक ही सीमित रह गयी। हमारी हुकूमतें यहां तक कह रही है कि हम रोबोट ला रहे हैं । रोबोट के जरिए जमीन से 8 मीटर नीचे मैनहोल, स्लज और ब्लॉकेज की सफाई की जा सकेगी। इस रोबोट में एक स्वचालित कैमरा भी लगा हुआ होगा, जिससे बाहर बैठकर ही लोग सीवर सफाई का कार्य संचालित कर सकेंगे। लेकिन तबतक न जाने कितनी मौतें हो चुकी होंगी।

बीते माह भी राजस्थान में सीकर जिले के फतेहपुर इलाके में सीवर टैंक की सफाई करने उतरे तीन मजदूरों की दम घुटने से मौत हो गई। टैंक में सफाई के दौरान गंदगी और जहरीली गैस फैलने की वजह से उनकी मौत होना कारण बताया गया। वैसे कई आंकड़े कहते हैं कि हर साल हमारे देश में सीवर सफाई के मामलों में कम से कम 100 से ज्यादा मौतें होती हैं। भारत में आमतौर पर सीवर सफाई का अब भी पुराने तौर तरीकों से चलता है। हालांकि कुछ मशीनें कुछ शहरों में जरूर विदेशों से मंगाई गईं लेकिन मोटे तौर पर अब भी मजदूर मेनहोल में नीचे उतरते हैं। कई बार उसमें फंसने तो कई बार उसकी गैस से दम घुटने के कारण वो जान से हाथ धो देते हैं। इसे लेकर लंबे समय से आवाज उठाई जाती रही है। हैरानी की बात है कि हमारे देश में सीवर और सीवेज सफाई सिस्टम अब भी पूरी तरह पुराने तौरतरीकों से चल रहा है। अदालती आदेशों के बावजूद इसका मशीनीकरण या आटोमेशन नहीं हो पाया है। सुप्रीम कोर्ट और अदालतें सीवर की मैन्युअल यानि मानवआधारित सफाई को गैरकानूनी ठहरा चुकी हैं।

कानून के मुताबिक सफाई एजेंसियों के लिए सफाई कर्मचारियों को मास्क, दस्ताने जैसे सुरक्षात्मक उपकरण देना अनिवार्य है, लेकिन एजेंसियां अकसर ऐसा नहीं करतीं। कर्मचारियों को बिना किसी सुरक्षा के सीवरों में उतरना पड़ता है। सीवर और सेप्टिक टैंकों की इंसानों के हाथों सफाई मैन्युअल स्कैवेंजिंग या मैला ढोने की प्रथा का हिस्सा है, जो भारत में कानूनी रूप से प्रतिबंधित है। कानून का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति या एजेंसी को एक लाख रुपये तक का जुर्माना या दो साल जेल की सजा हो सकती है। हालांकि जमीन पर इस प्रतिबंध का पालन नहीं होता है जिसकी वजह से यह प्रथा चलती चली जा रही है। जरूरी है इस पर पूर्ण रूप से लगाम लगे ताकि अब कोई व्यक्ति गटर में न मर पाय।

आदर्श कुमार ( सम्पादक दस्तक मीडिया ग्रुप)

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