कौन हैं ये अर्जक लोग, जिन्हें धर्म और ईश्वर क़बूल नहीं

विश्वासों, अंधविश्वासों और ख़ून-खराबे के दौर में कोई मानवता की बात करे तो चौंकना लाज़िमी है। लखनऊ में 1968 में बने अर्जक संघ को वैसे तो नास्तिकों का संगठन माना जाता है। अर्जक संघ की स्थापना उत्तर प्रदेश के पूर्व वित्त मंत्री रामस्वरूप वर्मा ने की थी। 70 के दशक में एक धार्मिक ग्रंथ जलाने को लेकर चर्चा में आए रामस्वरूप वर्मा कभी राम मनोहर लोहिया के साथ भी रहे थे। 1998 में वर्मा के निधन तक अर्जक संघ खूब फला-फूला, लेकिन इसके बाद इसकी लौ धीमी पड़ गई। अभी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड में अर्जक संघ के करीब एक लाख सदस्य हैं। छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में भी कुछ सदस्य हैं। अर्जक संघ के सिद्धांत और संविधान लिखित हैं। अर्जक का मतलब कमेरी (श्रमशील) कौम से है। इसमें किसान, मजदूर, शिल्पी, नाई, धोबी आदि आते हैं।

अर्जक संघ के मेंबर होली, दिवाली, ईद और क्रिसमस जैसे त्योहारों को गैर-बराबरी की वजह मानते हैं। संघ 14 मानवतावादी त्योहार मनाता है। इनमें गणतंत्र दिवस, आंबेडकर जयंती, बुद्ध जयंती, स्वतंत्रता दिवस के अलावा बिरसा मुंडा और पेरियार रामास्वामी की पुण्यतिथियां भी शामिल हैं।

इन सिद्धांतों के समर्थक सनातन विचारधारा के उलट जीवन में सिर्फ दो संस्कार मानते हैं। विवाह और मृत्यु संस्कार। शादी करने के लिए लड़का-लड़की संघ की पहले से तय प्रतिज्ञा करते हैं और एक-दूसरे को वरमाला पहनाते हैं। मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार मुखाग्नि या दफनाना तो होता है, लेकिन बाकी धार्मिक कर्मकांड इसमें नहीं होते। इसके 5 या 7 दिन बाद सिर्फ एक शोकसभा होती है। अर्जक व्यवस्था परिवर्तन की बात करता है।

ईश्वर के अस्तित्व, आत्मा और पुनर्जन्म को नकारने वाले अर्जक संघ के लोग कहते हैं कि भारत के संस्कार ऐसे हैं कि बचपन से ही मां-बाप बच्चों को धार्मिक कामों में शामिल होने की शिक्षा देते हैं। मासूम बच्चे बिना तर्क किए स्वीकार करते हैं जो आजीवन चलता रहता है। वह कहते हैं, हर धर्म के भगवान अलग हैं तो किसी पूजें? हर जाति के महापुरुष अलग हैं तो किसके विचार मानें? वास्तव में भारत और विश्व किसी के विचारों का आदर नहीं करता।

अर्जक संघ यूं तो ईश्वर के अस्तित्व को नहीं मानता, लेकिन इनके विचार काफी हद तक बौद्ध धर्म से निकटता रखते हैं। अर्जक संघ के अनुयायी इस पर कहते हैं, बुद्द के अनुयायियों ने उन्हें भगवान का दर्जा दिया, लेकिन हम उन्हें महामना कहते हैं। बुद्ध ने भी कहा था कि पहले जानो फिर मानो। हमें हर चीज़ को विज्ञान की कसौटी पर परखना होगा।