1956 में आई हॉलीवुड फिल्म दी कॉन्करर (विजेता)। ये मंगोल शासक चंगेज खान की लव स्टोरी थी। ये लव स्टोरी हॉलीवुड के लिए जानलेवा साबित हुई। 1951 से 1955 के बीच अमेरिका ने लगातार न्यूक्लियर टेस्ट किए थे। 1954-55 में ही इस फिल्म की शूटिंग उसी न्यूक्लियर टेस्ट साइट से 220 किमी दूर हो रही थी। जहरीली हवाओं और टेस्ट साइट से उड़कर आई जहरीली धूल ने वो असर दिखाया कि इस फिल्म की 220 लोगों की यूनिट में से 91 को कैंसर हुआ। धीरे-धीरे 46 लोगों की जान इस कैंसर ने ली।
मरने वालों में फिल्म के हीरो, हीरोइन, डायरेक्टर सहित कई लोग शामिल थे। ज्यादा रियल शॉट्स, परफेक्शन और कहानी की डिमांड के नाम पर एक्टर्स से झूठ बोलकर फिल्म की शूटिंग कराई गई। नतीजा, फिल्म की पूरी स्टार कास्ट में से सिर्फ दो-तीन लोग ही बचे थे जिन्हें कैंसर नहीं हुआ और जिंदा बच गए।
फिल्म की शूटिंग साइट पर न्यूक्लियर टेस्ट के रेडिएशन का इतना खतरनाक असर था कि शूटिंग देखने आए कई एक्टर्स के परिवार वालों को भी कैंसर हो गया। इतनी जानें गईं, काफी पैसा लगा, लेकिन फिल्म बहुत बुरी साबित हुई। इसे दुनिया की सबसे वाहियात फिल्मों में शुमार किया गया। सबसे घटिया फिल्म का अवॉर्ड भी मिला। फिल्म ने इससे जुड़े हर आदमी की जिंदगी में भारी निराशा भर दी थी। किसी ने सुसाइड किया, किसी को ड्रग्स की लत लग गई।
द कॉन्करर यानी विजेता। 1956 में आई ये हॉलीवुड फिल्म द कॉन्करर मंगोल के शाासक चंगेज खान की लव स्टोरी पर आधारित है। फिल्म में दिखाया गया है कि चंगेज खान को तातार की राजकुमारी बोरताई से एक तरफा प्यार हो जाता है और वो उसे जबरदस्ती अपने साथ ले आता है। कुछ समय बाद तातार के लोग चंगेज खान को बंदी बना लेते हैं, लेकिन इस समय राजकुमारी बोरताई को चंगेज खान से प्यार हो जाता है। बोरताई उसे छुड़वाने में मदद करती है। चंगेज खान को शक होता है कि मंगोल का कोई शख्स उसे धोखा दे रहा है तो वो उस शख्स को ढूंढकर तातार के खिलाफ जंग लड़कर बोरताई को हासिल करता है।
इस हिस्टोरिकल फिल्म की शूटिंग शुरू होने से पहले प्रोड्यूसर हॉवर्ड हगीज ने टीम को सेंट जोर्ज यूटा में शूटिंग करने की सलाह दी, क्योंकि वहां रेतीली जमीन थी। ये जगह यूका फ्लैट एरिया और नेवादा नेशनल सिक्योरिटी साइट से 220 किलोमीटर दूर थी, जहां परमाणु बम के कई परीक्षण किए गए थे।
हर कोई जानता था कि न्यूक्लियर टेस्टिंग से रेडिएशन का खतरा बढ़ा हुआ है, जिससे प्लांट के आसपास काम करने वाले कई लोग पहले ही गंभीर बीमारियों की चपेट में आ चुके थे। जब कास्ट को पता चला कि उसी जगह में शूटिंग के लिए जाना है तो सभी ने इसका विरोध किया। ऐसे में मेकर्स ने आश्वासन दिया कि जिस जगह में शूटिंग होने वाली है वो जगह पूरी तरह सुरक्षित है। प्रोड्यूसर्स के आश्वासन के बाद 220 कास्ट और क्रू मेंबर्स शूटिंग के लिए राजी हो गए। 1954 पूरी टीम 13 हफ्तों तक न्यूक्लियर प्लांट के पास बसे स्नो केनन, पाइन वैली, लीड्स और हैरिसबर्ग में अजीब परिस्थितियों में काम करती रही।
फिल्म का क्लाइमैक्स एक्शन सीन स्नो वैली में शूट हुआ था। 1951 से हो रहे न्यूक्लियर टेस्ट से जहरीली मिट्टी उड़कर यहां सेट हो चुकी थी। जब टीम शूटिंग करने पहुंची तो जमीन में मिट्टी ठहरी हुई थी, लेकिन एक्शन सीन को रियल और ड्रामेटिक दिखाने के लिए प्रोडक्शन वालों ने बड़े पंखों का इस्तेमाल किया था, जिससे मिट्टी उड़ने लगी थी। फाइट सीन में भीड़ के चलते भी खूब जहरीली धूल उड़ी, जिसके बीच कास्ट ने शूटिंग की। कई सीन में एक्टर्स धूल में लोट-पोट हुए थे, जिससे भी उनके शरीर में जानलेवा जहरीली धूल गई। कई दिनों तक इसी जगह एक्शन सीन की शूटिंग हुई, जहां सभी कास्ट और क्रू के लोगों ने जहरीली धूल के बीच सांस ली।
13 हफ्तों तक टीम उसी जहरीली रेतीली जगह में ठहरी रही और वहीं रोजाना शूटिंग थी। खुले मैदान में कैटरिंग होने के कारण धूल सीधे खाने में जाती थी, जिसमें हमेशा धूल की एक परत होती थी। कम सुविधाओं के चलते सभी को वही जहरीला खाना दिया जाता था।
जब न्यूक्लियर प्लांट के पास शूटिंग पूरी हो गई तो पूरी टीम बचे हुए शेड्यूल के लिए US वापस आ गई। प्रोड्यूसर हावर्ड हगीज को डर था कि कहीं क्लाइमैक्स एक्शन सीन के कुछ शॉट को दोबारा फिल्माना पड़ेगा, इसलिए उन्होंने 60 टन रेडियोएक्टिव जहरीली रेत शिप करवाई और उसे हॉलीवुड ले आए। उस रेत को हॉलीवुड के स्टूडियो में लाया गया, जिससे बचे हुए सीन में इन्हें इस्तेमाल किया जा सके। टीम पूरे जोश और जुनून के साथ बेखौफ शूटिंग करती रही, क्योंकि उन्हें कहा गया था कि ये जगह पूरी तरह से सुरक्षित है। हालांकि चंद सालों में इस बड़ी लापरवाही का जानलेवा अंजाम सामने आने वाला था।
प्रोड्यूसर हावर्ड हगीज का फिल्म के बनने में भी खूब हस्तक्षेप था। वो बिना प्लानिंग के अपनी मन मर्जी से अनस्क्रिप्टेड सीन जोड़ दिया करते थे, जिसकी तैयारी आखिरी समय में करनी पड़ती थी। ऐसे ही उन्होंने डांस करते हुए एक भालू का सीन फिल्माया था। हद तो तब हुई थी जब प्रोड्यूसर हावर्ड हगीज एक सीन के लिए सेट पर ब्लैक पैंथर ले आए। उस पैंथर को संभालना इतना मुश्किल था कि एक्ट्रेस सुजैन की जान जाते-जाते बची।
पेड्रो अर्मनेडारिज का घोड़े से गिरने से जबड़ा टूट गया। वहीं जॉन वेन को स्किन शेड बैलेंस करने के लिए हीटर में रखा जाता था। हीट कंट्रोल करने के लिए उन्हें पिल्स दी जाती थीं, जिससे वो काफी चिड़चिड़े हो गए थे।
फिल्म रिलीज होने के 7 साल बाद जनवरी 1963 को डायरेक्टर पॉवेल डिक की मौत हो गई। उनकी मौत का कारण कैंसर था। डायरेक्टर डिक पॉवेल के बेटे नोर्मन भी शूटिंग में पिता की मदद किया करते थे। कैंसर से ना सिर्फ डिक पॉवेल की बल्कि उनकी पत्नी और उनकी पोती की भी मौत हो गई थी।
1960 में लीड एक्टर्स में से एक पेड्रो आर्मेनडारिज को किडनी का कैंसर डायग्नोज हुआ। उनकी हालत लगातार गंभीर होती जा रही थी। तीन साल बाद 1963 में जब डायरेक्टर की कैंसर से मौत हुई तो पेड्रो काफी डरे हुए रहने लगे। गले के कैंसर के बाद इन्हें किडनी कैंसर भी हो गया। पेड्रो की हालत इतनी बिगड़ गई कि वो अपनी बीमारी से त्रस्त रहने लगे। एक दिन अस्पताल में चल रहे इलाज के दौरान उन्होंने एक गन स्मग्लिंग के जरिए अस्पताल में बुलवाई और उन्होंने अपनी छाती में गोली मारकर आत्महत्या कर ली।
फिल्म में लीड रोल निभाने वालीं अमेरिका की पॉपुलर एक्ट्रेस सुजैन हेवर्ड को 1972 में लंग कैंसर हो गया। ये ऑस्कर में नॉमिनेट हुईं और कांस फिल्म फेस्टिवल में बेस्ट एक्ट्रेस का अवॉर्ड हासिल कर चुकी थीं। एक साल तक लंग कैंसर का इलाज चलने के बाद इन्हें दौरे पड़ने लगे। 1973 में सुजैन को ब्रैन कैंसर हो गया, जो लाइलाज था। 4 मार्च 1975 को सुजैन को दौरे पड़े और घर में ही उनकी मौत हो गई।
2 गोल्डन ग्लोब जीतने वालीं और 4 ऑस्कर में नॉमिनेशन हासिल कर चुकीं एक्ट्रेस एग्नेस मूरेहेड का 30 अप्रैल 1974 को निधन हो गया। इन्हें गर्भाशय में कैंसर था, जिससे ये बच नहीं सकीं। एग्नेस ने जिंदगी में कभी शराब, सिगरेट का सेवन नहीं किया था, इसके बावजूद इनकी मौत का कारण कैंसर बना।
ली वैन क्लीफ को दिल की बीमारी थी, जिसके चलते उनके दिल में पेसकंट्रोलर लगा था। पहले ही दिल की बीमारी से जूझ रहे एक्टर को गले का कैंसर हो गया, जिससे उनकी 64 साल की उम्र में 1986 में मौत हो गई।
फिल्म में छोटा सा रोल निभाने वाले मिशेल वेन को भी मुंह का कैंसर हो गया था, हालांकि मुंह से ट्यूमर हटाए जाने के बाद उनकी जान बच गई।
लीड एक्टर जॉन वेन की भी नहीं बच सकी जान
चंगेज खान का लीड रोल निभाने वाले लीड एक्टर जॉन वेन का भी पेट के कैंसर से निधन हो गया। वॉन चैनस्मोकर थे जो रोजाना 6 पैकेट सिगरेट पीते थे। कई रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि जॉन के पेट के कैंसर का कारण उनकी सिगरेट की लत थी, हालांकि जब दूसरे एक्टर्स को भी एक-एक कर कैंसर होने लगा तो उनकी मौत को भी रेडियोएक्टिव जहरीली रेत से जोड़ा गया।
शूटिंग के दौरान लीड एक्टर जॉन वेन से उनके चंद रिश्तेदार मिलने पहुंचे थे। वहीं जॉन के भाई पैट्रिक को भी ब्रेस्ट कैंसर हुआ। समय रहते उनके ब्रेस्ट से कैंसर ट्यूमर रिमूव करवा दिया गया था।
इन लीड एक्टर्स के अलावा भी की फिल्म मेकिंग से जुड़े कई लोग कैंसर की चपेट में आ गए। मरने वालों में कई लोकल लोग भी थे, जिन्हें 1-2 डॉलर रुपए की दिहाड़ी में रखा गया था। बड़े सितारों के लिए सेट पर सुविधाएं थीं, लेकिन दूसरी कास्ट, क्रू और भीड़ हिस्सा बने लोगों को पूरी शूटिंग के दौरान कड़ी धूप और धूल में रहना पड़ता था। ऐसे में इन लोगों पर रेडिएशन का ज्यादा बुरा असर पड़ा। कैंसर पीड़ित होने वालों में कई लोग ऐसे भी थे जो फिल्म का हिस्सा नहीं थे और सिर्फ शूटिंग देखने या किसी रिश्तेदार से मिलने सेट पर आए थे।
फिल्म में उस जमाने के सबसे पॉपुलर एक्टर जॉन वेन ने चंगेज खान का लीड रोल प्ले किया था, हालांकि ये फिल्म मेकर्स ने मार्लन ब्रांडो को ध्यान में रखते हुए लिखवाई थी। हॉलीवुड लीजेंड की रिपोर्ट के मुताबिक डायरेक्टर डिक पॉवेल ने चंगेज खान के रोल के लिए मार्लन को कास्ट करने का फैसला कर चुके थे, लेकिन संयोग से ये रोल जॉन वेन को मिला। जॉन वेन डायरेक्टर डिक पॉवेल के साथ पहले ही तीन फिल्में कर रहे थे। एक दिन एक फिल्म के सिलसिले में जॉन डायरेक्टर के दफ्तर पहुंचे थे। डायरेक्टर उस समय द कॉन्करर के लिए स्क्रीनप्ले तैयार कर रहे थे। एक सीन तैयार करते हुए जब वो संतुष्ट नहीं हुए तो उन्होंने वो पेपर्स डस्टबिन में फेंक दिया और काम के सिलसिले में चंद मिनटों के लिए बाहर निकल गए। जॉन वेन ने वो स्क्रिप्ट पढ़ी तो उन्हें इतनी पसंद आई कि उन्होंने फिल्म में लीड रोल की डिमांड की। डायरेक्टर मान गए और उन्होंने मार्लन की जगह जॉन को साइन कर लिया।
US के जॉन को एशियन चंगेज खान का रोल प्ले करने पर खूब आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। चंगेज खान सांवला था, हालांकि स्किन पेंट करने के बावजूद जॉन का लुक उनकी तरह तैयार नहीं हो पाया। वहीं एक्सेंट के चलते भी उनका खूब मजाक बना। 220 क्रू और कास्ट के बीच महज 2 एशियन लोगों ने काम किया गया था, जबकि बाकी पूरी टीम विदेशी थी।
फिल्म बजट से दोगुना कमाई करने के बावजूद बड़ी फ्लॉप समझी गई, जिससे प्रोड्यूसर काफी निराश थे। वहीं जैसे ही एक्टर्स और फिल्म से जुड़े लोगों को कैंसर होने की बात सामने आने लगी तो प्रोड्यूसर ने खुद को इसका जिम्मेदार माना। उन्होंने 6 मिलियन डॉलर में बनी फिल्म को दोगुनी कीमत 12 मिलियन डॉलर (98 करोड़ रुपए) में सारी प्रिंट खरीद लीं, जिससे फिल्म द कॉन्करर को कहीं दिखाया न जा सके। हावर्ड को प्रोडक्शन और उससे शुरू हुए जानलेवा कैंसर का ताउम्र पछतावा रहा।
प्रोड्यूसर हावर्ड ने खुद को एक घर में बंद कर लिया और उनकी मानसिक स्थिति बिगड़ने लगी। हावर्ड ज्यादातर समय अपने घर के प्रोजेक्टर रूम में द कॉन्करर फिल्म को देखते हुए बिताते थे। हावर्ड रोज सोने से पहले ये फिल्म जरूर देखते थे और उन्होंने प्रोजेक्टर चलाने वाले व्यक्ति को आदेश दिए थे कि वो जब फिल्म लगाए तो खुद आंखे बंद करके रखे।
हावर्ड इतना ड्रग लेते थे कि उनका वजन घटकर महज 41 किलो रह गया था। आखिरी समय भी हावर्ड का फिल्म देखते हुए बीता। उनकी मौत एक सफर के दौरान हुई थी। जब पोस्टमार्टम हुआ तो पता चला कि हावर्ड की किडनी फेल हो गई थी। उनके शरीर में ड्रग के कई इंजेक्शन की निडल मिलीं, जो ड्रग लेते हुए अंदर ही टूटकर रह गई थीं।
डायरेक्टर हगीज की मौत के 3 साल बाद यूनिवर्सल पिक्चर्स ने फिल्म द कॉन्करर के राइट्स खरीद लिए। लोग इस फिल्म और कास्ट, क्रू की मौत से इतने डरे हुए थे कि 21 सालों तक किसी ने इस फिल्म को देखा ही नहीं।
हॉलीवुड के फिल्म एक्सपर्ट्स ने इस फिल्म को न्यूक्लियर फिल्म का नाम दिया, वहीं कई एक्सपर्ट्स ने इसे जानलेवा फिल्म का नाम दिया। कई लोगों की जान लेने वाली ये फिल्म सालों तक कई रिसर्च का टॉपिक रही। 1980 में पहली बार पीपल्स मैगजीन के अनुसार 220 लोगों में से 91 को कैंसर हुआ जिससे 46 लोग कैंसर से मरे। वहीं दूसरी रिपोर्ट्स के अनुसार मरने वालों की संख्या 100 से भी ज्यादा थी। ये फिल्म दुनिया की सबसे डेडलिएस्ट फिल्म शूटिंग की लिस्ट में भी शामिल है।
नोर्थ कोरिया की सबसे खूबसूरत लड़की वू इन ही, जिसे तानाशाह के खिलाफ जाने पर सजा-ए-मौत दी गई थी। 6000 लोगों के सामने वू इन ही को 120 गोलियां मारी गईं। इतिहास के पन्नों से वू इन ही का नाम इस तरह मिटाया गया कि ना तो उनके परिवार की कोई जानकारी है, ना उनके पैदा होने की कोई तारीख किसी को पता है, ना ही मरने की। सारी तस्वीरें और जितनी फिल्मों में उन्होंने काम किया, सब मिटा दी गईं।