जहां धर्म, वहां जीत, जानिए कहां से आया है सुप्रीम कोर्ट का ये ध्येयवाक्य

देश के सबसे पुराने और विवादास्पद अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट शनिवार को फैसला सुनाने जा रहा है. 40 दिनों तक चली सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 16 अक्टूबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था. सुप्रीम कोर्ट ने तमाम महत्वपूर्ण मामलों में ऐतिहासिक फैसले दिए हैं और अब पूरे देश की नजरें एक बार फिर न्यायपालिका की तरफ टिक गई हैं. आइए जानते हैं क्या है सुप्रीम कोर्ट का ध्येयवाक्य और इसमें क्या संदेश छिपा है.

सुप्रीम कोर्ट के ध्येयवाक्य में भी न्याय की ही जीत की बात कही गई है. सुप्रीम कोर्ट के लोगो में अशोक चक्र बना हुआ है जिसके नीचे संस्कृत का एक श्लोक लिखा हुआ है- ‘यतो धर्मः ततो जयः’ (या, यतो धर्मस्ततो जयः) है. संस्कृत के इस श्लोक का मतलब है “जहां धर्म है, वहां जय (जीत) है.

महाभारत से लिया गया है ये ध्येयवाक्य

इस ध्येयवाक्य का अर्थ महाभारत के श्लोक ‘यतः कृष्णस्ततो धर्मो यतो धर्मस्ततो जयः से आता है. कुरुक्षेत्र के युद्ध में अर्जुन युधिष्ठिर की अकर्मण्यता को दूर कर उन्हें प्रेरित करने की कोशिश कर रहे थे. वह युधिष्ठिर से कहते हैं, “विजय सदा धर्म के पक्ष में रहती है, और जहां श्रीकृष्ण हैं, वहां धर्म है.

राइट टु इन्फॉर्मेशन (आरटीआई) ऐक्ट के तहत, एक शख्स ने सुप्रीम कोर्ट के ध्येयवाक्य को लेकर जानकारी मांगी थी जिसके बाद केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने सुप्रीम कोर्ट से लोगो के नीचे लिखे सूत्रवाक्य को अपनाने की वजहों को सार्वजनिक करने के लिए कहा था. बता दें कि भारत का राष्ट्रीय चिह्न अशोक चिह्न है और इसमें भी ‘सत्यमेव जयते’ का संदेश दिया गया है.