कानूनी लड़ाई में छोड़ा साथ हेमंत‍ सोरेन पर आया संकट तो कांग्रेस ने साधी चुप्‍पी

भारतीय जनता पार्टी के साथ जारी राजनीतिक लड़ाई में भले ही कांग्रेस और झामुमो एक साथ मोर्चा लेते दिख रही है, इस बात के संकेत भी स्पष्ट तौर पर उभरने लगे हैं कि कानूनी लड़ाई में पार्टी झामुमो से अलग-थलग ही रहेगी। प्रदेश कांग्रेस प्रभारी अविनाश पांडेय के बयान से यह और स्पष्ट होता है जिसमें उन्होंने कहा था कि पार्टी को न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है। न्यायपालिका पर भरोसा का मतलब उससे टकराने की राह पकड़ने से कांग्रेस बचेगी। अगर कांग्रेस को न्यायपालिका के खिलाफ स्टैंड लेना होता तो विभिन्न माध्यमों से पार्टी ने इसका विरोध शुरू कर दिया होता लेकिन कांग्रेस की चुप्पी झामुमो को भी नसीहत दे रही है।
झारखंड में अलग-अलग राजनीति करनेवाले दोनों दल पिछले चुनाव में एक साथ आकर चुनाव लड़े थे और राज्य की सत्ता पर काबिज होने में इन्हें सफलता भी मिली। लेकिन, सत्ता में आने के बावजूद विभिन्न मुद्दों पर दोनों दलों में कुछ ना कुछ मनभेद भी कायम है। जिन विभागों में गड़बड़ियों के कारण ये कार्रवाई शुरू हुई है उन विभागों के मंत्री स्वयं मुख्यमंत्री हैं और ऐसे में किसी प्रकार का हस्तक्षेप से कांग्रेस बचना चाह रही है।
झारखंड में घपले-घोटाले को लेकर केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई आरंभ से होती रही है। राज्य के बाहर इसी वजह से प्रदेश की बड़े पैमाने पर बदनामी होती है। पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा के कार्यकाल में यह परवान पर रहा। एजेंसियों की कार्रवाई नेताओं के साथ-साथ अधिकारियों पर भी होती रही है। यह भी दुर्भाग्यजनक है कि अविभाजित बिहार में हुए चारा घोटाले की जद में भी यही हिस्सा रहा। भ्रष्टाचार करने में अधिकारी भी पीछे नहीं रहे और ऐसे अधिकारियों की लंबी फेहरिश्त है, जिन्हें दंड भुगतना पड़ा। अफसोसजनक है कि यह अभी भी जारी है, जबकि केंद्र सरकार की सतर्कता एजेंसियों ने लगातार ऐसे मामलों में जांच के बाद तत्परता से कार्रवाई की है।

राज्य कैडर की एक वरिष्ठ अधिकारी के खिलाफ शुक्रवार को हुई कार्रवाई को भी इसी कड़ी में जोड़ा जा सकता है। पूर्व में उनके स्तर से हुई वित्तीय अनियमितता इसकी वजह है, जिसकी परिणति झारखंड समेत देश के अन्य राज्यों में अधिकारी के ठिकानों पर छापेमारी के रूप में हुई है। इससे एक बार फिर राज्य के दामन पर दाग लगा है। छापेमारी के दौरान मिले दस्तावेज के आधार पर आगे कानूनी प्रक्रिया चलेगी, लेकिन एक बार रूककर यह फिर से चिंतन करने की आवश्यकता है कि आखिरकार हम प्रदेश को किस दिशा में ले जाना चाहते हैं।

एक अधिकारी के कारण पूरी जमात को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। ज्यादातर अधिकारी कड़ी मेहनत कर सरकार की विकास और कल्याणकारी योजनाओं को धरातल पर उतारते हैं। झारखंड को विकास की दिशा में आगे बढ़ाने के लिए यह आवश्यक भी है। ऐसे अधिकारियों और कर्मियों पर नकेल कसना भी आवश्यक है जो अनियमितताओं में लिप्त है। एंटी करप्शन ब्यूरो लगातार ऐसे तत्वों के खिलाफ कार्रवाई करता है, फिर भी गलत करने की प्रवृति थम नहीं रही है तो इसके पीछे के कारणों का निदान करना होगा।

अधिकारियों को हर वर्ष संपत्ति का पूरा विवरण देने की बाध्यता है। ऐसे में सतर्कता एजेंसियां भी इसपर सतत निगाह रखें कि कोई आय से अधिक संपत्ति अर्जित कर रहा है अथवा नहीं। इसका सबसे नकारात्मक असर नई पीढ़ी पर पड़ता है। भारतीय प्रशासनिक सेवा में कड़ी मेहनत करने के बाद सफलता मिलती है। इस सेवा से आने वाले अधिकारियों को नई पीढ़ी के लिए आदर्श पेश करना चाहिए।