रानी बेगम पाकिस्तानी फिल्म इंडस्ट्री की वो लीजेंड्री एक्ट्रेस हैं, जिन्हें वहां की तवायफों की जिंदगी बदलने का क्रेडिट दिया जाता है। पाकिस्तानी फिल्म उमराव जान में इन्होंने ऐसा डांस किया कि तवायफों ने इनके लिए सोने के घुंघरू बनवाकर गिफ्ट किए। इस फिल्म का लोगों पर ऐसा असर पड़ा कि कई लोगों ने तवायफों से ही शादी कर ली।
इनकी निजी जिंदगी बहुत दर्दनाक रही। ड्राइवर की बेटी थीं, जिन्हें मशहूर गायिका मुख्तार बेगम ने गोद लिया, क्योंकि पिता पाल नहीं सकते थे। जब ये फिल्मों में आईं तो इन पर मनहूस हीरोइन का ठप्पा लगा। एक के बाद एक इनकी दो दर्जन फिल्में फ्लॉप हो गईं। फिर, इनके डांस के हुनर ने पहचान दिलाई और इतनी सफल हुईं कि इन्हें डांसिंग क्वीन ऑफ पाकिस्तान का तमगा मिल गया।
इन्होंने 3 शादियां कीं, लेकिन कोई शादी नहीं टिकी। दूसरे पति ने तो इन्हें इसलिए छोड़ दिया क्योंकि इन्हें कैंसर था। जिस पाकिस्तानी क्रिकेटर को इन्होंने चुनाव में जीत दिलाई, उसने भी इन्हें ठुकराया। एक बार कैंसर से जंग जीती लेकिन वो दोबारा लौट आया। इनकी एक ही ख्वाहिश थी, अपनी बेटी की शादी। 1993 में आज ही के दिन ये दुनिया छोड़ गईं।
रानी बेगम उर्फ नसीरा का जन्म 8 दिसंबर 1946 को लाहौर में हुआ। उनके पिता मोहम्मद शफी पाकिस्तान की नामी सिंगर मुख्तार बेगम के ड्राइवर हुआ करते थे। चंद मौकों पर रानी की मुलाकात मुख्तार बेगम से हुई थीं, जिन्हें देखते हुए उन्होंने भी हीरोइन बनने का सपना देखा।
जब रानी ने होश संभाला तो सिंगर मुख्तार बेगम ने अपने ड्राइवर की गरीबी देखकर उसकी बेटी को गोद लेने का फैसला किया, क्योंकि उनकी अपनी कोई संतान नहीं थी। मुख्तार ने ही नसीरा को रानी बेगम नाम दिया था।
मुख्तार बेगम, रानी को भी अपनी ही तरह सिंगर बनाने के लिए क्लासिकल म्यूजिक की ट्रेनिंग दिया करती थीं, लेकिन जब उन्हें समझ आया कि रानी की आवाज सिंगर बनने लायक नहीं है, तो उन्होंने फैसला बदल दिया।
रानी को हीरोइन बनाने के लिए मुख्तार बेगम उन्हें फिल्ममेकर फजल अली करीम के कराची स्थित घर ले गईं। मुख्तार के कहने पर रानी ने सबके सामने डांस करके दिखाया और एक प्ले की चंद लाइनें भी सुनाईं। फजल अली अपनी फिल्म ‘चिराग जलता रहा’ में एक्ट्रेस दीबा को ले चुके थे, तो उन्होंने रानी को फिल्ममेकर जी.ए. गुल के पास भेज दिया, जो नई लड़की की तलाश में थे। जी.ए. गुल ने रानी को फिल्म ‘महबूब’ में साइन किया, जिसे अनवर कमाल पाशा ने डायरेक्ट किया।अनवर ऐसे फिल्ममेकर थे, जिनकी सारी फिल्में सुपरहिट होती थीं, लेकिन रानी के साथ बनाई उनकी फिल्म ‘महबूब’ (1962) बुरी तरह फ्लॉप हो गई। उन्होंने रानी को अपनी दूसरी फिल्मों में भी काम दिया, लेकिन वो फिल्में भी फ्लॉप रहीं। एक महान फिल्ममेकर की फिल्में फ्लॉप होने का ठीकरा रानी के सिर फूटा और उन्हें मनहूस हीरोइन का टैग मिल गया।
इस समय डायरेक्टर अनवर कमाल पाशा ने रानी की मदद की और लगातार उन्हें अपने प्रोडक्शन की फिल्मों में लेते रहे। फिल्म ‘जोकर’ की शूटिंग के दौरान रानी और कमाल बेहद करीब आ गए। दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगे, लेकिन कमाल ने अचानक एक्ट्रेस शमीम बानो से शादी कर ली। कमाल की बेवफाई से रानी बुरी तरह टूट गईं। लेकिन, उन्होंने इसका असर अपने फिल्मी करियर पर नहीं पड़ने दिया।
1966 में पाकिस्तान के पॉपुलर प्रोड्यूसर्स वहीद मुराद दोस्तों के दबाव में फिल्मों में आए और हिट हुए। देवर-भाभी में वहीद के साथ रानी को कास्ट किया गया। ये फिल्म इतनी जबरदस्त हिट रही कि रानी बेगम इंडस्ट्री की टॉप एक्ट्रेस बन गईं। कहा गया कि लेडी किलर के नाम से मशहूर एक्टर वहीद मुराद, रानी के लिए लकी साबित हुए। मशहूर एक्टर वहीद मुराद के साथ रानी ‘अंजुमन’, ‘दिल मेरा, धड़कन तेरी’, ‘खलिश’, ‘बहारों फूल बरसाओ’, ‘दीदार’, ‘सहेली’, ‘बहन-भाई’ जैसी कई हिट फिल्मों में नजर आईं।
1968 की ‘चन मखना’, ‘सज्जन प्यारा’, ‘दिल मेरा, धड़कन तेरी’ और ‘बहन भाई’ जैसी रानी की फिल्मों ने रिकॉर्डतोड़ कमाई की। ‘दीया और तूफान’ ने रानी को शोहरत और कामयाबी की बुलंदियों पर पहुंचा दिया। रानी इतनी पॉपुलर हो गईं कि हर डायरेक्टर उन्हें अपनी फिल्म में लेना चाहता था।
हसन तारीक ही वो डायरेक्टर थे, जिन्होंने फिल्म ‘देवर-भाभी’ के जरिए रानी बेगम पर लगा मनहूस एक्ट्रेस का टैग हटाया था। आगे उन्होंने रानी को ‘बहन-भाई’, ‘मेरा घर, मेरी जन्नत’ जैसी फिल्मों में भी काम दिया। 1970 की फिल्म ‘अंजुमन’ में रानी के एक्सप्रेशन और एक्टिंग देखकर डायरेक्टर हसन तारीक उन्हें चाहने लगे
रानी भी उन्हें पसंद करने लगीं, बावजूद इसके कि हसन पहले ही 2 शादियां कर चुके थे। 1970 में दोनों ने शादी की और कुछ सालों बाद रानी ने बेटी राबिया को जन्म दिया। मां बनने के बावजूद रानी की परफॉर्मेंस या उनके करियर पर कोई बुरा असर नहीं पड़ा।
हसन तारीक ने पत्नी रानी बेगम के लिए फिल्म ‘उमराव जान अदा’ बनाने का फैसला किया। उन्होंने रानी को मोहम्मद हादी रुस्वा उपन्यास उमराव जान अदा पढ़ने को दिया, जिस पर फिल्म बनने वाली थी। रानी ने दिलचस्पी दिखाते हुए ये नॉवेल 4 बार पढ़कर रट डाली। इस रोल के लिए रानी ने कथक की इंटेंस ट्रेनिंग ली।
डेढ़ सौ साल पुरानी ये नॉवेल लखनऊ की तवायफ उमराव जान पर लिखी गई थी, जिसे उसके घरवालों ने कोठे पर बेच दिया था। उमराव ने मजबूरन खुद को तवायफों के बीच ढाल लिया। एक नवाब को उससे प्यार हुआ और दोनों ने शादी की, लेकिन परिवार के दबाव में उस नवाब ने उमराव को ठुकरा दिया। ये कहानी खुद उमराव ने उर्दू राइटर मोहम्मद हादी रुसवा को सुनाई, जिन्होंने उसकी कहानी पर उर्दू नॉवेल लिख दी।
फिल्म ‘उमराव जान अदा’ में रानी बेगम ने उमराव का किरदार इतने इमोशनल अंदाज में पेश किया कि फिल्म ने पाकिस्तानी बॉक्स ऑफिस पर गोल्डन जुबली मनाई। फिल्म का क्लाइमैक्स सॉन्ग, ‘जो बचा था वो लुटाने के लिए आए हैं..’ नूरजहां ने गाया, जिस पर रानी बेगम के थिरकते कदमों ने फिल्म में जान डाल दी।
रानी ने इस गाने की तैयारी करते हुए मशहूर कथक डांसर सिद्दीक सम्राट से कहा था कि वो इस गाने को हमेशा के लिए अमर करना चाहती हैं, ऐसे में उन्हें जो कुछ आता है वो सब इसी गाने में डाल दें। सिद्दीक ने ऐसा ही किया और वाकई ये गाना पाकिस्तानी सिनेमा में अमर हो गया।
उमराव जान अदा, उमराव जान पर बनी पहली पाकिस्तानी फिल्म थी।
उमराव जान अदा, उमराव जान पर बनी पहली पाकिस्तानी फिल्म थी।
ये फिल्म भी पाकिस्तान की सबसे यादगार फिल्मों में गिनी जाती है। चैनल इंकलाब के अनुसार, फिल्म रिलीज के बाद कई रईसों ने पाकिस्तान की तवायफों से शादी की। कई लड़कियों को नई जिंदगी मिल गई।फिल्म रिलीज और कामयाबी के बाद लाहौर की तवायफों ने रानी बेगम को सोने के घुंघरू बनवाकर दिए थे। कारण था रानी ने तवायफों की जिंदगी को इस बेहतर तरीके से पर्दे पर उतारा था कि समाज की सोच बदलने लगी थी
‘उमराव जान अदा’ के बाद रानी बेगम को नाम, शोहरत, कामयाबी की नई ऊंचाइयां तो मिलीं, लेकिन इसके चंद सालों बाद ही उनकी निजी जिंदगी की उथल-पुथल शुरू हो गई। 70 के दशक के आखिरी में पति हसन तारीक से उनके झगड़े इतने बढ़ गए कि दोनों ने तलाक ले लिया। बेटी की जिम्मेदारी रानी ने अकेले ही उठाई।
प्रोड्यूसर मियां जावेद कमर रानी बेगम को हमेशा से चाहते थे। डॉन डॉट कॉम के अनुसार, उनका रानी को लेकर दीवानापन ऐसा था कि वो रानी जहां कदम रखती थी, जावेद उस जमीन को चूम लेते थे। जब रानी का तलाक हुआ तो मियां जावेद ने अपनी मोहब्बत का इजहार कर दिया। अकेले बेटी की परवरिश कर रहीं रानी भी मियां जावेद से शादी करने के लिए राजी हो गईं।
दूसरी शादी के चंद सालों बाद ही रानी को कैंसर हो गया। रानी ने जैसे ही ये खबर अपने पति मियां जावेद को दी, तो उन्होंने रानी का इलाज करवाने की बजाय उन्हें तुरंत तलाक दे दिया। रानी फिर एक बार अपनी बेटी के साथ अकेली रह गईं।सरी शादी टूटने के बाद रानी ने ताउम्र अकेले रहने का फैसला किया, लेकिन लंदन में ट्रीटमेंट करवाते हुए उनकी मुलाकात पाकिस्तानी क्रिकेटर सरफराज नवाज से हो गई। दोनों की दोस्ती हुई और फिर मोहब्बत। दरअसल, सरफराज रानी के फैन हुआ करते थे और उन्हें हमेशा से ही पसंद करते थे। ऐसे में रानी के कैंसर का उनके रिश्ते पर असर नहीं पड़ा। आखिरकार 1985 में दोनों ने शादी कर ली।
जब क्रिकेटर पति सरफराज पाकिस्तानी राजनीति में उतरे तो रानी बेगम ने अपने स्टारडम की मदद से उनके लिए बढ़-चढ़कर कैंपेन में हिस्सा लिया। रानी जानती थीं कि रैलियों में लोग उन्हें देखने पहुंचेंगे, ऐसे में रानी अपनी मॉडर्न ड्रेसेस और भारी ज्वेलरी पहनकर ग्लैमरस अवतार में पहुंचती थीं। पार्टी के लोग उन पर सादे कपड़े पहनने का दबाव बनाते थे, लेकिन वो कभी राजी नहीं हुईं। आखिरकार 1985 के जनरल इलेक्शन में सरफराज को जीत हासिल हुई। सरफराज का हर कदम पर साथ देने के बावजूद वो उन्हें छोड़ गए। तीसरी शादी टूटने के बाद रानी अकेली पड़ गई थीं।
80 के दशक में कैंसर का लगातार इलाज करवाते हुए भी रानी बेगम फिल्मों में आती रहीं और लीड रोल निभाती रहीं। लंदन में इलाज करवाने के बाद रानी बेगम कैंसर फ्री हुईं, लेकिन ये टेंपरेरी था। 1962-89 तक ऐसा कोई साल नहीं रहा, जब रानी बेगम की फिल्म रिलीज ना हुई हो। लेकिन, जब दोबारा कैंसर लौटा तो इनका करियर भी खत्म हो गया।
जब 80 के दशक के आखिर में रानी बेगम की जिंदगी में दोबारा कैंसर लौटा तो वो समझ चुकी थीं कि उनके पास ज्यादा समय नहीं है। उन्हें कैंसर के इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती करवाया गया तो उन्होंने जीने की ख्वाहिश छोड़ दी और अपने परिवार वालों के सामने आखिरी ख्वाहिश का इजहार किया। रानी अपने जीते जी बेटी राबिया की शादी देखना चाहती थीं।
रानी की ख्वाहिश के अनुसार 1993 में राबिया ने डॉ. अनवर से शादी कर ली, हालांकि रानी ये शादी अटेंड नहीं कर सकीं। बेटी की शादी के चंद दिनों के बाद ही रानी बेगम का 27 मई 1993 को कैंसर से निधन हो गया। 46 साल की उम्र में पाकिस्तान की लक्स गर्ल और डांसिंग क्वीन रानी ने कराची के आगा खान हॉस्पिटल में दम तोड़ दिया।
रानी बेगम की मां को उनकी मौत की खबर नहीं दी गई थी, लेकिन रानी की मौत के ठीक 33 दिनों बाद वो भी गुजर गईं। 3 महीने बाद रानी की इकलौती बहन की भी मौत हो गई। रानी और उनकी मां की कब्र लाहौर के मुस्लिम कब्रिस्तान में साथ बनाई गई है।