गहलोत सरकार का खतरा टलने के बावजूद राजस्थान कांग्रेस के जारी संग्राम में ‘साम-दाम-दंड-भेद’ के सहारे एक दूसरे को मात देने की सियासत चरम पर पहुंच गई है। कांग्रेस ने सचिन पायलट और उनके समर्थकों पर नोटिस के जरिये कार्रवाई का डंडा चलाया तो पायलट ने भी सीधे शब्दों में भाजपा में नहीं जाने का ऐलान कर इस डंडे की धार कमजोर कर दी। तब कांग्रेस ने भी वापस गेंद अपने बागी नेता के पाले में डालते हुए साफ संदेश दिया कि भाजपा के सियासी जाल से निकल कर पायलट और उनके समर्थक घर लौट आते हैं तो उनके लिए पार्टी के दरवाजे खुले हैं।
सियासत बचाने की इस जंग में पायलट भी अपने पत्ते सधे तौर पर खेलते हुए अलग पार्टी बनाने से लेकर कांग्रेस में वापस लौटने के राजनीतिक-कानूनी पहलुओं को तौल रहे हैं। कांग्रेस की राजनीति के लिए सचिन पायलट की मौजूदा दौर में जरूरत और अहमियत को देखते हुए पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने सभी विधायकों के खिलाफ नोटिस के तौर पर चलाए गए अनुशासन के डंडे के बाद भी पायलट को वापस लौट आने का आखिरी निजी संदेश भेजा है।
पार्टी के उच्चपदस्थ सूत्रों ने कहा कि हाईकमान की ओर से अंतिम कोशिश के तहत पायलट को लौट आने पर उनकी राजनीतिक प्रतिष्ठा बहाल करने का भी संकेत दिया गया है। साफ है कि पायलट को कांग्रेस में रहना है या बाहर जाना है, इसके लिए उन्हें दो दिन की मोहलत दी गई है। विधायकों को कारण बताओ नोटिस का जवाब 17 जुलाई तक देना है। हालांकि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से बौखलाए सचिन पार्टी में वापस लौटने की दुविधा से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। इसीलिए कांग्रेस विधायक दल की बैठक में नहीं जाने को लेकर विधानसभा स्पीकर के जरिये आए नोटिस को लेकर पायलट अपने कानूनी सलाहकारों से मशविरा किया।
पायलट ने दिल्ली में गहलोत के खिलाफ तीर चलाए तो जयपुर में गहलोत ने पायलट की धज्जियां उड़ाई। कांग्रेस की ओर से नोटिस के तौर पर अनुशासन का डंडा चलाए जाने से विधायकों की सदस्यता पर मंडराते खतरों को देखते हुए ही अपने कानूनी सलाहकारों की राय के अनुरूप सचिन पायलट ने बुधवार सुबह भाजपा में नहीं जाने और कांग्रेस का सदस्य होने का बयान जारी किया। राजस्थान के प्रभारी महासचिव अविनाश पांडेय ने तब ट्वीट के जरिये सचिन को भाजपा के मायाजाल से बाहर आने की सलाह देते हुए कहा कि वे ऐसा करते हैं तो कांग्रेस के दरवाजे उनके लिए खुले हैं।
सुरजेवाला का यह दांव स्पष्ट रूप से पायलट और उनके विधायकों को मौका नहीं दिए जाने की किसी तरह की कानूनी गुंजाइश का रास्ता बंद करना है। कांग्रेस के इस सियासी दांव को पढ़ते ही पायलट भी अपने कानूनी सलाहकारों और विधायकों से आगे की रणनीति पर गंभीर मंत्रणा कर रहे हैं। वैसे इस लड़ाई में मुख्यमंत्री गहलोत राजनीतिक और कानूनी दोनों मोर्चे पर पायलट पर भारी पडे़ हैं और कांग्रेस नेतृत्व भी उनके साथ मजबूती से खड़ा है।
पायलट के पास इतने विधायक नहीं कि वे गहलोत सरकार को गिरा सकें, ऐसे में वे अपने समर्थकों से नई पार्टी बनाने के विकल्पों पर गहन मंथन कर रहे हैं। इसमें भी पायलट की चुनौती इस लिहाज से बढ़ गई है कि विधायकी जाने के डर से उनके कैंप के कुछ विधायक वापस गहलोत के खेमे में लौटने का संदेश भेज रहे हैं। ऐसे में अगर दर्जन भर विधायक भी अपनी कुर्बानी देने के लिए तैयार नहीं हुए तब पायलट को न चाहते हुए भी कांग्रेस में लौटने का जहर पीने का विकल्प अपनाना पड़ सकता है।